आज अपने इस ख़ास आर्टिकल में हम आपको होली से जुड़ी एक ऐसी ख़ास जानकारी बताने जा रहे हैं जिसे अपनाने से आप होली के इस त्यौहार को अपने और अपने परिवार के लिए और भी ज़्यादा ख़ास बना सकते हैं।
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जैसा की ये बात तो हम सब जानते हैं कि होली रंगों का त्यौहार है और ऐसे में हम इस त्यौहार का फायदा हर रंग के साथ खेलकर उठाते हैं, लकिन क्या आप जानते हैं कि अगर आप अपनी राशि के अनुसार बताये गए रंगों के साथ होली खेलते हैं तो इससे आपको काफी फायदा और सकारात्मक प्रभाव भी मिल सकता है ? तो अपने इस ख़ास ‘होली-विशेष’ आर्टिकल में आज हम आपको बताएँगे कि आपको आपकी राशि के अनुसार किस रंग से होली खेलनी चाहिए।
सबसे पहले हम बात करेंगे मेष राशि और वृश्चिक राशि की। इन दोनों ही राशियों के स्वामी मंगल होते हैं, और मंगल को ऊर्जा और गुस्से का कारक कहा गया है। ऐसे में अगर मेष और वृश्चिक राशि के जातक मित्र रंगों का प्रयोग करते हैं तो ये उनके लिए अति शुभ साबित हो सकता है। मित्र रंग में गुलाबी रंग, पीला रंग आपके लिए शुभ साबित हो सकता है।
इसके बाद हम बात करते हैं वृषभ और तुला राशि की। वृषभ और तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं और आपका शुभ रंग सिल्वर माना जाता है लेकिन इस रंग का प्रयोग आपके लिए ज़्यादा शुभ साबित नहीं होगा। ऐसे में इन दोनों राशि के जातकों को आसमानी और हल्के नीले रंग का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। इन रंगों के प्रयोग से आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी।
अब बात करते हैं मिथुन और कन्या राशि की। इन दोनों ही राशियों के स्वामी का दर्जा बुध को दिया गया है। ऐसे में अगर होली पर आप हल्का हरा रंग, पीला रंग, गुलाबी रंग, नारंगी रंग, या आसमानी रंग का इस्तेमाल करते हैं तो इससे आपका त्यौहार कई गुना खुशनुमा बन सकता है।
इसके बाद बात करते हैं कर्क राशि की। कर्क राशि के स्वामी का दर्ज़ा चन्द्रमा को दिया गया है। चन्द्रमा को सफ़ेद रंग से जोड़ कर देखा जाता है। ऐसे में सफ़ेद रंग या किसी भी रंग में दही मिलाकर उसे इस्तेमाल करने से आपको इसके सकारात्मक फल मिल सकते हैं। दही को रंग में मिलाकर उपयोग करने से रंग के हानिकारक प्रभाव को भी कम किया जा सकता है। कर्क राशि के जातकों को वैसे भी भावुक माना जाता हैं ऐसे में उनके साथ होली की मस्ती सादगी से ही की जाये तो अच्छा माना जाता है।
अब बारी आती है सिंह राशि की। सिंह राशि के स्वामी का दर्जा सूर्य को दिया गया है। ऐसे में इस राशि के जातक सुनहरे रंगों से होली खेलें तो ये उनके लिए काफी शुभ साबित हो सकता है। सुनहरे रंगों में आपके पास विकल्प काफी आ जाते हैं जैसे गुलाबी, हल्का हरा, नारंगी, पीला इत्यादि। इसके अलावा सिंह राशि के जातक आमतौर पर काफी उत्साही होते हैं, इन्हे अपने जीवन में नीरसता ज़्यादा पसंद नहीं होती है। ऐसे में आप इनके साथ उत्साह से भरी होली भी बड़े ही आराम से खेल सकते हैं।
इसके बाद बारी आती है धनु और मीन राशि के जातकों की। धनु और मीन, इन दोनों ही राशि के जातकों का स्वामी ग्रह गुरु को माना है। इन दोनों राशि के जातकों के लिए पीले और नारंगी रंग काफी फलदायी हो सकते हैं।
आखिर में बात करते हैं मकर और कुम्भ राशि के जातकों की। मकर और कुंभ राशि के स्वामी ग्रह का दर्ज़ा शनि को दिया और इनके लिए शुभ रंगों की बात करें तो इसमें नीला और फिरोज़ी रंग शामिल होता है।
इस वर्ष होली का त्यौहार पूरे भारत में 29 मार्च को मनाया जायेगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त जानने के लिए यहाँ क्लिक करें, होलिका मुहूर्त
होली पर क्यों जलाई जाती है होलिका?
होली के इस त्यौहार के बारे में प्रह्लाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी काफी प्रचिलित है। इस पौराणिक कथा के अनुसार बताते हैं कि, ‘प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानते थे। जबकि प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त हुआ करते थे। ऐसे में हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के विरोधी हो चुके थे। प्रह्लाद की इस बात से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने पहले तो उन्हें विष्णु भक्ति करने से रोका लेकिन जब प्रह्लाद नहीं माने तब हिरण्यकश्यप ने उन्हें मारने का प्रयास किया।
प्रह्लाद को जान से मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका ने भी भाई की मदद के लिए हाँ कर दी क्योंकि उसे आग में ना जलने का वरदान मिला हुआ था। होलिका तब प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गयीं। तब भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन होलिका उसी अग्नि में जलकर भस्म हो गयीं। तब से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मानाने का रिवाज़ शुरू हो गया है।
इसी बात के प्रतीक के तौर पर आज भी पूर्णिमा को लोग होलिका जलाते हैं, और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं।
होली का पौराणिक महत्व
वेदों और पुराणों में इस बात का उल्लेख है कि पूरे भारतवर्ष में होली का त्यौहार वैदिक काल के समय से ही मनाया जा रहा है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, होली के त्यौहार को नए संवत् की शुरूआत माना जाता है। इस दिन के साथ कई सारी मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। कहते हैं कि इसी दिन पृथ्वी पर पहले इंसान का जन्म हुआ था, इसी दिन कामदेव का भी पुनर्जन्म हुआ था, भगवान विष्णु के नरसिंह का रूप धरकर इसी दिन हिरणकश्यप का वध भी इसी दिन किया था।
कहते हैं कि होली के त्यौहार को भगवान कृष्ण बड़ी ही धूमधाम से मनाया करते थे। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा शुरू की गयी ये परंपरा आज भी कृष्ण की नगरी मथुरा में देखने को मिलती है। भगवान कृष्ण अपने बालस्वरूप से ही यहां होली बड़े ही उत्साह के साथ मनाते थे। त्यौहार के इस जश्न में गोपियाँ और राधा भी उनका जमकर साथ देती थीं इसलिए ही तो आज भी मथुरा में फूलों की होली मनाई जाती है। जबकि राधा के गांव बरसाने की लट्ठमार होली तो देश और दुनिया भर में प्रचिलित हो चुकी है। होली प्रेम का पर्व है, जिसमें लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे के साथ खुशियां बांटते हैं और एक दूसरे के रंग में रंग जाते हैं।
होली में ज़रूर बरतें ये सावधानी
- होली खुशियों का त्यौहार है लेकिन ज़रा सी चूक रंग में भंग का काम कर सकती है। ऐसे में यहाँ बेहद ज़रूरी है कि आप होली खेलते समय कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें जिससे किसी को कोई परेशानी ना हो और आप अपना त्यौहार खुशियों से मना सकें।
- रंगों के इस त्यौहार को हमेशा से ही प्राकृतिक रंगो से खेला जाता रहा गया है लकिन बदलते समय के साथ रंगों में केमिकल्स का उपयोग किया जाने लग गया है जो हमारी त्वचा के लिए हानिकारक हो सकता है। अथवा रंगों के चयन में सावधानी बरतें साथ ही कोई भी समस्या महसूस हो तो तुरंत चिकित्सक की सलाह लें।
- किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन ना करें। इससे रंग में भंग पड़ने के अलावा और कुछ नहीं होता है।
- जितना हो सके जानवरों से इन रंगों को दूर ही रखें। बाकी खुद भी त्यौहार का आनंद लें और आस-पास भी खुशियां बांटे।