होलाष्टक रंगो के त्यौहार होली के आठ दिन पहले से ही शुरू हो जाता है। यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगता है। माना जाता है कि होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है। होलिका दहन के बाद ही सारे मांगलिक कार्य करने चाहिए।
आइए जानते है होली के आठ दिन पहले क्यों शुरू हो जाता है होलाष्टक और क्या है इसका महत्व।
क्या है होलाष्टक?
शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दिन ही प्रेम के देवता कामदेव को भगवान भोलेनाथ ने भस्म कर दिया था। कहा जाता है कि काम देव ने शिवजी की तपस्या को भंग कर दिया था जिसके कारण महादेव अत्यंत क्रोधित हो गये थे और अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था। किन्तु शिवजी की तपस्या को भंग करने के पीछे कामदेव की मंशा बुरी नही थी उन्होंने देवताओं के हित के लिए ऐसा किया था।
काम देव की मृत्यु से सभी देवी देवता शोक में डूब गए। बाद में उनकी पत्नी रति ने भोलेनाथ से कामदेव को वापस जीवित करने के लिए प्रार्थना की तब भगवान ने कामदेव को द्वापर में जीवन देने की बात कही
होलाष्टक के दौरान नहीं करें कोई भी शुभ कार्य
वर्ष 2018 में होलाष्टक 23 फरवरी को लगेगा और यह 1 मार्च तक रहेगा। शास्त्रों के अनुसार अगर कोई भी शुभ कार्य शुभ मूहर्त में किया जाए तो उसका फल भी उत्तम मिलता है। किन्तु होलाष्टक के दौरान अगर हम विवाह, गृह निर्माण गृह प्रवेश आदि जैसे शुभ कार्य करते है तो हमे कई सारी पीड़ाओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे घर में कलह, बीमारी और अकाल मृत्यु।
एक अन्य कथा के अनुसार राजा हिरणकश्यप के पुत्र प्रह्लाद ने जब विष्णु जी की भक्ति नहीं छोड़ी तब हिरणकश्यप ने उसे सात दिन तक तरह तरह की यातनाएं दी और ठीक आठवें दिन हिरणकश्यप की बहिन होलिका, जिसे ब्रह्मा जी द्वारा अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गयी थी। किन्तु उस विष्णु भक्त बालक को कुछ नहीं हुआ और होलिका अग्नि में जल कर भस्म हो गयी।
उसी समय से इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली से आठ दिन पूर्व दाह-कर्म की तैयारी की जाती है। यह मृत्यु का सूचक है। इस दुःख के कारण इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य नही होता है।
होलाष्टक के बाद रंगो का पर्व होली प्रह्लाद के जीवित बचने की खुशी में मनाई जाती है।
क्या करते हैं होलाष्टक में
वास्तव में होलाष्टक, होली के आगमन का पूर्व-सूचक है और इसका होलिका दहन से बहुत ही गहरा संबंध है, क्योंकि इसी दिन से होलिका दहन की विधिवत तैयारियां शुरू हो जाती।
होलाष्टक आरंभ होते ही दो डंडों को स्थापित किया जाता है,इसमें एक होलिका का प्रतीक है और दूसरा प्रह्लाद से संबंधित है। इससे पूर्व होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है फिर हर रोज़ इसमें गोबर के उपल लकड़ी घास और जलने में सहायक चीज़ें डाल कर इसे बड़ा किया जाता है।
इस प्रकार होलिका दहन से होलाष्टक समाप्त हो जाता है।