हिंदू धर्म में होली एक प्रमुख त्यौहार है। हिंदू पंचांग के अनुसार होली का पर्व चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस साल यानि 2021 में होली का त्यौहार 29 मार्च को मनाया जा रहा है। होली बसंत ऋतु में मनाये जाने वाला प्रसिद्ध त्यौहार है।
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हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को यह त्यौहार मनाया जाता है। रंगों का पर्व कहा जाने वाला यह त्योहार पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। बता दें इसे प्रमुखता से भारत के साथ-साथ नेपाल में भी मनाया जाता है। पहले दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है तो दूसरे दिन धुलेंडी यानि होली खेली जाती है। होली को बसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं और ढोल बजाकर होली के गीत गाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि लोग इस दिन आपसी दुश्मनी को भूलकर गले मिलते हैं और एक दूसरे के दोस्त बन जाते हैं।
होली का इतिहास
हिंदू धर्म को मानने वाले लोग होली के त्यौहार को आज से नहीं बल्कि बहुत पहले से मनाते आ रहे हैं। इस बात के साक्ष्य मिले हैं कि प्राचीन विजयनगर सम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी में भी होली मनाई जाती थी इससे संबंधित एक चित्र मिला है, जिसमें होली के त्योहार को उकेरा गया है। इस चित्र में राजकुमारों और राजकुमारियों को दासियों सहित रंग और पिचकारी के साथ राज दंपत्ति को होली के रंग में रंगते हुए दिखाया गया है। इसके अलावा विंध्य पर्वत के पास स्थित रामगढ़ में एक ईसा से 300 साल पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है।
होली पर करें ये काम
हिंदू धर्म के हर त्यौहार का पौराणिक महत्व होता है। हर त्यौहार को हम अपने रीति-रिवाज और परंपरा से मनाते हैं। यह त्यौहार के महत्व को दर्शाता है। होली पर करें ये काम-
- होलिका दहन का दर्शन ज़रूर करें। इस दर्शन से शनि, राहु और केतु के दोष से शांति मिलती है।
- अगर किसी कारणवश आप होलिका दहन के दर्शन नहीं कर पाते हैं तो अगले दिन सुबह के समय होलिका के पास जाकर तीन परिक्रमा करें और होली में अनाज की बालियां डालें।
- मान्यता है कि होली की भस्म को पुरुषों के मस्तिष्क पर और महिलाओं के गले पर लगाना चाहिए, इससे जीवन में ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।
- साथ ही होली के भस्म का टीका लगाने से नज़र दोष , प्रेत बाधा से रक्षा और मुक्ति मिलती है।
- होली खेलने से पहले भगवान को सुबह-सुबह रंग चढ़ाकर आशीर्वाद लेना चाहिए । इसके बाद ही परिवार-दोस्तों के साथ होली खेलनी चाहिए।
पौराणिक कथाएं
होली से जुड़ी कई तरह की कथाएं इतिहास-पुराण में पाई जाती हैं। तो आइए जानते हैं उनमें से कुछ कथाओं के बारे में-
- रंगवाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए किया जाता है। कथा के मुताबिक, असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल पसंद नहीं थी, क्योंकि वह खुद को ही भगवान मानता था और चाहता था कि उसके राज्य का हर व्यक्ति बस उसकी पूजा करे। लेकिन खुद के पुत्र को भगवान विष्णु की भक्ति करता देख वह उसे मारने की कोशिश करने लगा, लेकिन वह अपनी चाल में कभी भी कामयाब नहीं हो पाया। इसलिए बालक प्रह्लाद को भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप ख़ुद होलिका ही आग में जल गयी। अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ।
- रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। कथा के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं। यशोदा ने मज़ाक में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली। जिसके बाद से यह पर्व रंगों के त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा।
- कहते हैं कि भगवान शिव के श्राप के कारण धुण्डी नामक राक्षसी को पृथु के लोगों ने इस दिन भगा दिया था, जिसकी याद में होली मनायी जाती है।
होली पर्व के अलग-अलग नाम
भारत में होली पर्व को अलग-अलग राज्यों में अलग तरीके से मनाया जाता है। जैसे ब्रज की होली आज भी पूरे देश के लिए आकर्षण का केंद्र होती है। वहीं बरसाने की लठमार होली भी काफी मशहूर है। इसमें पुरूष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का त्यौहार मनाया जाता है। वहीं हरियाणा की बात करें तो धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन और पंजाब के होला मोहल्ला में सिखों द्वारा शक्ति प्रदर्शन करने की परंपरा है। दक्षिण गुजरात के अदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीत की अद्भूत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में इस त्योहार को बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।