महाभारत काल के 5000 साल पुराने वृक्ष, जानें इनमें छुपे रहस्य

महाभारत काल को आज भी भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है। महाभारत की कथा, विचार के साथ उस समय के स्थापित तीर्थ स्थान आज भी लोगों की श्रद्धा का विषय है। इसके अलावा उस समय के कुछ वृक्ष आज भी मौजूद हैं, जिनके हरे पत्ते लहराकर उस समय की गाथा सुनाते हैं, तो आइए जानें 5000 साल से भी ज्यादा पुराने वृक्षों के बारे में, जो आज भी धरती पर मौजूद हैं और महाभारत काल के कई सारे रहस्य अपने अंदर छुपाए बैठे हैं।

पारिजात वृक्ष, बाराबंकी

बाराबंकी के किंतूर गांव में स्थापित पारिजात वृक्ष का इतिहास माता कुंती और श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने माता कुंती के साथ इस किंतूर गांव में निवास किया था। इस दौरान पांडवों ने यहां भगवान भोलेनाथ का एक मंदिर स्थापित किया था, जिसका नाम कुंतेश्वर महादेव हो गया। कहा जाता है कि, भोलेनाथ की पूजा के लिए माता कुंती ने अपने बेटों से पारिजात वृक्ष के पुष्प लाने को कहा था। माता कुंती की इस इच्छा को पूरा करने के लिए अर्जुन स्वर्ग से पारिजात वृक्ष लेकर आए और किंतूर गांव में स्थापित किया। इसके अलावा श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने भी इस पुष्प की मांग की थी, जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण उनके लिए स्वर्ग से वृक्ष लेकर आए थे। पारिजात के पुष्प की खुशबू काफी सुंगधित होती है। हालांकि इसकी एक खास बात यह है कि, यह पुष्प केवल रात को ही खिलता है सुबह होते ही मुरझा जाता है। इस वृक्ष की आयु 1 से 5 साल तक बताई गई है।

अक्षय वट

मुजफ्फरनगर के मोरना में स्थित अक्षय वट वृक्ष का इतिहास ऋषि व्यास पुत्र श्री शुकदेव मुनि महाराज से जुड़ा है। कहा जाता है कि श्री शुकदेव जी ने हस्तिनापुर के तत्कालीन महाराज परीक्षित को श्रीमद्भागवत सुनाई थी। शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित को श्रवण पान कराकर श्राप से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की प्राप्ती करवायी थी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि महाराज परीक्षित को श्राप मिला था कि उनकी मृत्यु तक्षक नाग के डसने से होगी। जैसा कि इस वृक्ष के नाम से ज्ञात होता है कि अक्षय वट यानि कभी क्षय ना हो। यही वजह है कि मौसम कैसा भी हो इस पेड़ की कोई क्षति नहीं होती है। यहां तक की पतझड़ आने पर इस वृक्ष के पत्ते कभी सूखते नहीं हैं। इसके अलावा इतने पुराने वृक्ष होने के बाद इसमें जटाएं नहीं हैं।

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इस वृक्ष में गूंजती है कान्हा की बंसी की धुन

मथुरा में स्थित बंसीवट की अपनी ही महिमा है। कहते हैं भगवान श्री कृष्ण यहां गाय चराने आया करते थे। यहीं नहीं वो राधा रानी का श्रृंगार भी इसी वृक्ष के नीचे किया करते थे। मान्यता है कि अगर आज भी आप इस वृक्ष पर कान लगाकर सुनेंगे तो कान्हा की बाँसुरी की धुन आपको सुनाई देती है। लेकिन इसके लिए आपका मन साफ और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति पूर्णत: समर्पित होना चाहिए।

अक्षय वट- यहां अर्जुन को मिला था गीता उपदेश

कुरुक्षेत्र से 8 किमी की दूरी पर है ज्योतिसर और इसी जगह पर स्थापित है अक्षय वट। मान्यता है कि, जब अर्जुन ने महाभारत में अपनों के खिलाफ शस्त्र उठाने से मना कर दिया था, उस वक्त भगवान श्रीकृष्ण ने इसी वृक्ष के नीचे अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के 18 अध्याय सुनाए थे। कहते हैं कि, यह इकलौता वृक्ष महाभारत के दौरान दिए गीता उपदेश का साक्षी है।

पीपल वृक्ष- आज भी नए पत्तों में होते हैं छेद

इस पेड़ के पीछे एक कथा है, कहते हैं कि यह वही वृक्ष है जिसके पत्तों को बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर एक ही बाण से छेद दिया था। यही वजह है कि आज भी इसमें निकलने वाले नए पत्तों में छेद होते हैं। पौराणिक कथा कुछ ऐसी है कि, जब महाभारत के युद्ध की शुरुआत हुई थी उस समय भीम के पौत्र और घटोत्कच के बेटे बर्बरीक ने अपनी मां को वचन दिया कि, वो लड़ाई में उस पक्ष का साथ देंगे जो कमजोर होगा। इसके लिए उन्होंने भगवान शिव की अराधना की और तीन अजेय बाणों को प्राप्त किया। जब भगवान श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला तो वो ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक के पास पहुंचे और मजाक उड़ाते हुए कहा कि- ‘महज तीन बाण में तुम महाभारत जैसा युद्ध कैसे जीत सकते हो? ‘ जिसके बाद बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण को बाणों के बारे में बताया कि, यह कोई आम बाण नहीं बल्कि अजेय बाण हैं, जिसे उसने भोलेनाथ की आरधना करके हासिल किया है। इसके बाद श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति से बाणों के प्रभाव को खत्म कर दिया था।

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