शनिवार 3 अगस्त के दिन समस्त देश की सुहागिन महिलाएं हरियाली तीज का त्यौहार मनाने जा रही हैं। इस दिन को उत्तर भारत में जहाँ हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है वहीं पूर्वी भारत में इसे कजरी तीज के नाम से मनाते हैं। इस दिन खासतौर से विवाहित महिलाएं व्रत रखकर अपने अखंड सौभाग्य के लिए प्रार्थना करती हैं। ये त्यौहार सावन माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। आज हम आपको इस त्यौहार को मनाने के प्रमुख कारणों के बारे में बताने जा रहे हैं।
हरियाली तीज का महत्व
बता दें कि सावन के माह में आने वाले इस त्यौहार को विशेष रूप से शिव और पार्वती को समर्पित माना जाता है। हिन्दू धर्म में इसे श्रावणी तीज या मधुश्रवा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। नवविवाहित स्त्रियां इस दिन पूजा पाठ करके माता पार्वती और भगवान् शिव से अपने सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना करती है। इस साल हरियाली तीज 3 अगस्त शनिवार के दिन मनाई जायेगी।
क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार
पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कई सौ सालों तक कठोर तप किया था। उन्होनें शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए करीबन 107 बार जन्म लिया था लेकिन इसके वाबजूद भी शिव उन्हें पति के रूप में नहीं मिले थे। इसके बाद जब उन्होनें फिर से कठोर तप के बाद 108 वीं बार जन्म लिया तब वो शिव की अर्धांगिनी बनी। माना जाता है कि जिस दिन शिव जी ने माता पार्वती की तपस्य से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया वो दिन सावन माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। इसी आधार पर ही तब से लेकर आज तक सुहागिन महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और विधि पूर्वक माता पार्वती और भगवान् शिव की पूजा अर्चना करती हैं।
हरियाली तीज की प्रमुख रस्में
चूँकि इस तीज का नाम ही हरियाली तीज है इसलिए आज क दिन महिलाएं विशेष रूप से हरे रंग के नए कपड़े पहनती हैं। इसके साथ ही साथ सोलह श्रृंगार करती हैं जिसमें सबसे ज्यादा ख़ास मेहँदी को माना जाता है। आज एक दिन शादी शुदा महिलाएं अपने हाथों पर मेहँदी लगाती हैं और घर के सभी बड़े बजुर्ग का आशीर्वाद लेती हैं। हरियाली तीज के दिन माता की पूजा के दौरान भी उन्हें सोलह श्रृंगार की सभी वस्तुएं उपहार स्वरुप भेंट चढ़ाई जाती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखते हुए झूला भी झूलती हैं। सदियों से चली आ रही इस परंपरा में झूला झूलना भी ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है।