शिव के अवतार, आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती पर जानें इस दिन का महत्व

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों में इनके बारे में बताया गया है कि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल राज्य के कालड़ी में एक नबुन्दरी ब्राह्मण दंपत्ति शिवगुरु नामपुद्र और विशिष्टा देवी के घर में हुआ था।आदि शंकराचार्य एक महान दार्शनिक एवं हिन्दू धर्मगुरु थे। इस वर्ष आदि शंकराचार्य जयंती 28 अप्रैल 2020 को है। 

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गुरु शंकराचार्य को भगवान शिव का एक रूप भी माना जाता है। ऐसे में इनसे संबंधित ग्रंथों में बहुत सी मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं। आगे जानें क्यों गुरु शंकराचार्य को भगवान शिव का रूप माना गया है? 

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महज़ 2 साल की उम्र में गुरु शंकराचार्य ने उपनिषद के ज्ञान और वेद प्राप्त कर लिए थे।

जी हां, यह बात सुनने में जितनी आश्चर्य करने वाली है उतनी ही सत्य भी। गुरु शंकराचार्य के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने महज 2 साल की उम्र में वेद, उपनिषद का ज्ञान प्राप्त कर लिया था, और इसके बाद 7 साल की उम्र में उन्होंने सन्यासी जीवन में प्रवेश कर लिया था। 

आदि शंकराचार्य जयंती का महत्व 

आदि शंकराचार्य जयंती के दिन मंदिरों और मठों में पूजा हवन इत्यादि किया जाता है। इस दिन सनातन धर्म के अनुयाई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और इस दिन को बेहद ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। शंकराचार्य जयंती के दिन कई जगहों पर शोभायात्रा भी निकाली जाती है जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। शोभा यात्रा के दौरान श्रद्धालु भजन कीर्तन करते हैं। इसमें वैदिक विद्वानों द्वारा सस्वर प्रस्तुत किया जाता है।

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जीवन की हर सफलता के पीछे था माँ का हाथ

कहा जाता है कि गुरु शंकराचार्य के जीवन में उनकी हर सफलता के पीछे उनके मां का हाथ था। शंकराचार्य की माँ ने ना ही केवल अपने पुत्र को शिक्षा दी बल्कि उन्हें जगतगुरु बनने के मार्ग पर भी आगे बढ़ने के लिए सदैव अग्रसर किया।  

गुरु शंकराचार्य जयंती पर जाने उनके जीवन के कुछ प्रमुख किस्से

गुरु शंकराचार्य के जन्म के संबंध में जो कथाएं बताई जाती है उनके अनुसार शिव गुरु ने अपनी पत्नी के साथ पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की पूजा की। इस पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र का वरदान दिया, लेकिन भगवान शिव ने यहां उनसे इस बात की शर्त भी रखी कि उनका यह पुत्र सर्वज्ञ तो होगा लेकिन वह बेहद ही अल्पायु का भी होगा। लेकिन, अगर उनको दीर्घायु की पुत्र की कामना करनी है तो वह पुत्र सर्वज्ञ नहीं होगा।

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ऐसे में शिव गुरु ने अल्पायु सर्वज्ञ पुत्र की कामना की। इस बात से बेहद प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वयं ही उनके घर पर जन्म लेने का वरदान दिया। इसके बाद वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन भगवान शिव ने आदि गुरु के रूप में ब्राह्मण दंपत्ति के घर में जन्म लिया। आदि गुरु के रूप में जन्म लेने वाले इस बालक का नाम रखा गया शंकर, और शंकर से बना शंकराचार्य। 

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अपने जीवन काल में गुरु शंकराचार्य ने कई पीठों की स्थापना की

बताया जाता है कि भारत देश के चारों कोनों में वेदांत मत का प्रचार करने के साथ ही हर दिशा में पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, में इन्होंने मठों की स्थापना की, और धर्म की रक्षा की।

शंकराचार्य ने सबसे पहले दक्षिण भारत में वेदांत मठ की स्थापना की। इस मठ को ‘प्रथम मठ’ “ज्ञान मठ” भी कहा जाता है। 

इसके बाद पूर्व में इन्होंने जगन्नाथ पुरी में दूसरे मठ “गोवर्धन मठ” की स्थापना की। 

इसके बाद गुरु शंकराचार्य ने पश्चिम में यानी द्वारकापुरी में तीसरे मठ “शारदा मठ” की स्थापना की इस मठ को “कलिका मठ” भी कहा जाता है। 

और अंत में यानी कि उत्तर भारत में चौथी मठ बद्रिकाश्रम की स्थापना की जिसे “ज्योतिपीठ मठ” कहा जाता है।

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इस तरह से गुरु आदि शंकराचार्य ने अपने जीवन में चारों दिशाओं में घूमकर चार मठों की स्थापना की और पूरे देश में धर्म का प्रचार किया। इसी के चलते मान्यता है कि हर साल आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती के उपलक्ष में चारों मठों के साथ-साथ पूरे देश में जप, तप, पूजा, हवन इत्यादि किया जाता है और आजीवन गुरु शंकराचार्य के दिखाए पथ पर चलने का प्रण लिया जाता है। 

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