गुरु पूर्णिमा 2019: शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

भारतीय सभ्यता में गुरु को ईश्वर से भी बड़ा दर्जा दिया गया है। इस परंपरा को बनाये रखने के लिए हर साल आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है। इस साल आगामी 16 जुलाई को इस महत्वपूर्ण पर्व को मनाया जाएगा। गुरु की महिमा का गुणगान हमारे शास्त्रों में भी किया गया है। इसके साथ ही मध्य काल में कबीर दास जी ने भी गुरु की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांए। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताएं।” कबीर के इस दोहे से साफ़ साबित होता है की ईश्वर का ज्ञान देने वाले गुरु का स्थान ईश्वर से भी पहले है। गुरु पूर्णिमा के दिन मुख्य रूप से महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना करने वाले ऋषि वेद व्यास जी की पूजा की जाती है। आइये विस्तार से जानते हैं गुरु पूर्णिमा के महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा की संपूर्ण विधि के बारे में।

गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त

जुलाई 16, 2019 को 01:50:24 से पूर्णिमा आरम्भ होकर जुलाई 17, 2019 को 03:10:05 पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी।

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा के लिए पूर्णिमा तिथि का सूर्योदय के बाद तीन मुहूर्तों में रहना आवश्यक माना जाता है। यदि वर्तमान दिन पूर्णिमा तीन तिथि से कम हो तो इस पर्व को पहले दिन भी मनाया जा सकता है।

गुरु पूर्णिमा पूजा विधि

  • इस दिन सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत होकर साफ़ सुथरे कपड़े पहने।
  • गुरु पूजा करने के लिए केवल सफ़ेद या नीले रंग का वस्त्र ही धारण करें।
  • इसके बाद वेद व्यास जी की प्रतिमा लेकर उनपर फूल अर्पित करें।
  • उनकी चित्र पर फूल और माला आदि चढ़ाते हुए सच्चे मन से गुरु का मनन करें।
  • गुरु की पूजा करते समय अपना और अपने गोत्र का नाम लेते हुए हाथों में जल लेकर गुरु पूजा का संकल्प करें।
  • यदि आपको कोई गुरु मंत्र मिला है तो उस मंत्र का जाप इस पूजा के दौरान जरूर करें।
  • विधि पूर्वक गुरु पूजा करने के बाद भगवान सत्यनारायण की कथा भी अवश्य पढ़ें।
  • इस दिन पूर्णिमा होने की वजह से सत्यनारायण पूजा संपन्न करवाना भी ख़ासा महत्व रखता है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

“महाभारत” और “श्रीमद्भगवद” ऐसे महान साहित्यों के रचनाकार वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन हुआ था। ऋषि पराशर के पुत्र वेदव्यास को तीन कालों का ज्ञाता माना गया है। पौराणिक धर्मशास्त्रों के अनुसार वेदव्यास जी को काफी पहले ही अपनी दिव्य दृष्टि से इस बात का ज्ञान हो गया था की कलयुग में लोगों की रुचि धर्म कर्म के प्रति कम हो जायेगी। इसलिए वेद व्यास जी ने लोगों की रुचि धर्म कर्म में बनाये रखने के लिए वेदों को चार भागों में बाँट दिया- ऋग्ग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों को चार हिस्सों में बाँटने की वजह से भी उन्हें वेदव्यास के नाम से जाना गया। गुरु पूर्णिमा के दिन वेद व्यास जी के साथ उनका अंश अपने गुरुओं में मानकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन को गुरुओं से मंत्र प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।