12 ज्योतिर्लिंगों में पहले स्थान पर आने वाले “सोमनाथ मंदिर” का हिन्दू धर्म में अपना एक अलग ही स्थान है। ऐसा माना जाता है कि महादेव के इस दर पर आने वाला कोई भी भक्त खाली नहीं लौटता। सोमनाथ मंदिर में आकर अपना मन भगवान को अर्पण करने वालों की हर मुराद पूरी होती है। श्रद्धालु उम्मीदों की खाली झोली लिए भगवान सोमनाथ के दर्शनों के लिए यहाँ आते हैं और महादेव भी अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है, कि इसका निर्माण चंद्र देव ने करवाया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। चलिए आज इस लेख में आपको सोमनाथ मंदिर के विषय में कुछ रोचक जानकारी देते हैं –
ऐसे होती है मंदिर में पूजा
सोमनाथ मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह मे स्थित है। मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले भक्तों की भेंट भगवान शिव के प्रिय वाहन नंदी से होती है। मंदिर के जिस भी कोने में व्यक्ति कि नजर पड़ती है, भगवान के चमत्कार का कोई न कोई रूप दिखता है। मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए महादेव को सबसे पहले पंचामृत स्नान कराया जाता है। स्नान के बाद उनका भव्य और अलौकिक श्रृंगार किया जाता है। शिवलिंग पर चदंन से ॐ अंकित कर बेलपत्र अर्पित करते हैं। भगवान सोमनाथ की पूजा के बाद मंदिर के पुजारी भगवान के हर रूप की आराधना करते हैं, और अंत में महासागर की आरती उतारी जाती है। हर रोज यहाँ हजारों श्रद्धालु पूरे देश दुनिया से पहुंचते हैं। पितृगणों के श्राद्ध कर्मो के लिए भी यह तीर्थ काफी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्र, कार्तिक महीने में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना गया है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है, और आपको बता दें कि इस त्रिवेणी स्नान का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है।
श्राप से मुक्ति के लिए चंद्रमा ने की आराधना
धर्मग्रन्थों के अनुसार प्राचीन काल में राजा दक्ष की 27 बेटियां थी, जिनका विवाह उन्होंने चंद्रमा से कर दिया। चंद्रमा को 27 कन्याओं में से केवल एक रोहिणी अधिक प्यार था, जिसे चंद्रमा ने अपनी पत्नी का दर्जा दिया था। दक्ष ने अपने दामाद, चंद्रमा को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन जब उन्होंने दक्ष की बात नहीं मानी। क्रोधित हो कर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोगी होने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से चंद्र देव की कांति धूमिल पड़ने लगनी। चंद्रमा अपनी परेशानी लेकर ब्रह्मदेव के पास पहुंचे। चाँद यानी सोम की समस्या को सुनकर ब्रह्मा ने उनसे कहा कि उन्हें इस समस्या से सिर्फ महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं। चंद्रमा ने निरोग होने के लिए कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया। चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति पाने के लिए यहां शिव जी की आराधना की थी, इसलिए चंद्रमा यानी सोम के नाम पर ही इस मंदिर का नाम सोमनाथ पड़ा था।
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