हिंदू कैलेंडर के अनुसार दिवाली के अगले दिन “गोवर्धन पूजा” का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन गौ माता, गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने का विधान है। गोवर्धन पूजा का त्यौहार इस साल 15 नवंबर 2020-रविवार के दिन मनाया जायेगा। पूजा करने का शुभ मुहूर्त 15 बज-कर 18 मिनट 37 सेकंड से 17 बज-कर 27 मिनट 15 सेकंड तक है। 2 घंटे 8 मिनट की इस कुल अवधि में लोग पूजा-अर्चना कर सकते हैं। माना जाता है कि इस त्यौहार पर पूरे विधि विधान से पूजा करने से भगवान श्री कृष्ण बहुत खुश होते हैं, और अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। गोवर्धन की पूजा बिना कथा का पाठ किये अधूरी मानी जाती है। तो चलिए आज इस लेख में आपको बताते हैं, गोवर्धन पूजा की पूरी कथा –
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जब देवराज इन्द्र को हो गया था अभिमान
गोवर्धन पूजा से जुड़ी एक लोककथा बेहद प्रचलित है। कहा जाता है कि एक समय की बात है, जब देवराज इन्द्र को बहुत अहंकार हो गया था। इन्द्र का घमंड खत्म करने के लिए श्री कृष्ण ने एक लीला रचाई। एक दिन बृजवासी पकवान आदि बना कर, किसी पूजा की तैयारी में जुटे थे। तब श्री कृष्ण ने यशोदा मां से पूछा कि ” मईया ये सभी लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं”? कृष्ण के सवाल के जवाब में मैया यशोदा बोली कि हम सब देवराज इन्द्र की पूजा करने के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। माँ के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण ने बोला कि हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? फिर यशोदा ने जवाब में कहा कि इन्द्र वर्षा करते हैं, जिससे हमारे अनाज उगते हैं, और उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि फिर हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं। इस लिहाज़ से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है। इन्द्र तो अहंकारी हैं, वैसे भी कभी दर्शन नहीं देते और यदि उनकी पूजा न की जाये तो वे क्रोधित भी होते हैं।
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प्रलयकारी वर्षा से बचाने के लिए उठाया गोवर्धन पर्वत
कृष्ण की लीला और माया से सभी बृजवासियों ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। इसे अपना अपमान समझ देवराज इन्द्र बहुत क्रोधित हुए और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी गुस्से में भगवान कृष्ण को कोसने लगे। तब मुरलीधर ने मुरली अपनी कमर में डाली और प्रलयकारी वर्षा से लोगों की रक्षा करने के लिए अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया। कृष्ण ने सभी बृजवासियों को अपने गाय और बछडे़ समेत गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण लेने को कहा। कृष्ण की यह लीला देखकर इन्द्र और भी ज़्यादा क्रोधित हुए और वर्षा की गति को तेज कर दी। इन्द्र के अभिमान को खत्म करने के लिए श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग को कहा कि आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
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जब इन्द्र को हुआ अपनी गलती का एहसास
इन्द्र ने लगातार सात दिनों तक मूसलाधार वर्षा कराई। काफी समय बीत जाने के बाद इंद्र को यह एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई साधारण इन्सान नहीं हो सकता। अपनी इस दुविधा को लेकर वे ब्रह्मा जी के पास गए और सारी बात उन्हें बताई। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिनकी बात कर रहे हैं, वह कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं। ब्रह्मा जी की बात यह सुनते ही इन्द्र बेहद लज्जित हुए और श्री कृष्ण के पास जाकर अपनी भूल के लिए क्षमायाचना कि और कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका, इसलिए भूल कर बैठा। इसके बाद देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा की और उन्हें भोग लगाया।
तब से ही गोवर्घन पूजा करने परंपरा शुरू हुई। लोग इस दिन गोवर्घन पर्वत और गायों की पूजा कर भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करते हैं।
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