भारतवर्ष में गाय को माता के समान दर्जा दिया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार गौ माता के अंदर सभी लाखों-करोड़ों देवी, देवता निवास करते हैं। ऐसे में जो भी व्यक्ति सच्ची भावना से गौ माता की पूजा या सेवा करता हैं तो उसे सभी देवी-देवताओं की पूजा करने के समान ही पुण्य की प्राप्ति होती है।
गोपाष्टमी का पौराणिक महत्व
इसी विशेष कारण को देखते हुए भी गोपाष्टमी पर्व एवं व्रत का महत्व बढ़ जाता है। क्योंकि इसी दिन भगवान कृष्ण एवं गौ माता की पूजा करने का सबसे शुभ विधान माना गया है। पौराणिक मान्यताओं अनुसार द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने अपने भाई बलराम संग अपने बचपन में ही गौकुल में रहते हुए गौ सेवा से पुण्य प्राप्त किया था। अपने नाम के अनुसार ही गौकुल ग्वालों की नगरी मानी जाती थी। जिसमें ग्वालों को गाय पालक कहा जाता था। उस समय श्री कृष्ण और बलराम ने गाय की सेवा, रक्षा आदि का प्रशिक्षण तक हासिल किया था और जिस दिन इन दोनों ने गाय पालन का पूरा ज्ञान हासिल किया वही दिन गोपाष्टमी के रूप में विख्यात हुआ।
गोपाष्टमी का शुभ मुहूर्त
हर साल आने वाला गोपाष्टमी पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाया जाता है, जिस दौरान गौ-माता और भगवान कृष्ण को समर्पित व्रत रखते हुए उनकी पूजा-अर्चना की जाती हैं। ऐसे में इस वर्ष 2019 में यह शुभ तिथि 4 नवंबर, सोमवार को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी विशेष दिन श्री कृष्ण अपने भाई बलराम संग गाय पालन की सभी शिक्षा ग्रहण कर, एक अच्छे ग्वाला बने थे, जिसके संबंध में हर वर्ष ये पर्व मनाया जाता है।
गोपाष्टमी 2019 मुहूर्त |
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अष्टमी तिथि शुरू: | 4 नवंबर को 07:04 बजे से |
अष्टमी तिथि समाप्त: | 5 नवंबर को 09:40 बजे तक |
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गोपाष्टमी का धार्मिक महत्त्व
सनातन धर्म में हमेशा से ही गाय को विशेष स्थान दिया जाता रहा है। माना जाता है कि जिस प्रकार एक मां का स्वभाव अपने बच्चे के प्रति बेहद कोमल होता है ठीक उसी प्रकार गौ माता जिसमें सभी देवी-देवताओं का निवास होता है, उसका दिल भी मनुष्यों के लिए स्नेह-पूर्ण व कोमल होता है। एक मां की भाँती ही गाय भी सभी मनुष्य जाति को कई प्रकार के लाभ प्रदान करती हैं। जैसे: गाय का दूध, गाय का घी, दही, पनीर, छांछ आदि सभी पदार्थ मनुष्यों के लिए अमृत रूपी फायदा पहुँचते हैं। इतना ही नहीं गाय का मूत्र भी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है। आज भी गाय के गोबर से घर में पुताई करना शुभ माना जाता है। ऐसे में गाय की सुरक्षा और सेवा करना स्वयं संपूर्ण मनुष्य जाती का परम कर्तव्य बनता है। इसी बात को हमे स्मरण कराते हुए गोपाष्टमी पर्व ये सीख देता है कि जिस प्रकार भगवान कृष्ण तक ने अपने भाई के साथ स्वयं गौ माता की सेवा की, उसी प्रकार कलयुगी मनुष्य को भी गौ माता की सेवा का पुण्य प्राप्त करना चाहिए।
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गोपाष्टमी की संपूर्ण पूजा विधि
-गोपाष्टमी पर विशेष रूप से गाय की पूजा किये जाने का विधान है।
-इसके लिए सुबह जल्दी उठकर अपने सभी कार्यों को करने के पश्चात स्नान-ध्यान कर सबसे पहले गौ माता के चरण स्पर्श करें।
-गोपाष्टमी के दिन गौ माता और भगवान कृष्ण की पूजा-आराधना पूर्ण रीती-रिवाज से कराने के लिए किसी पंडित या विशेषज्ञ की मदद लें।
-पूजा के लिए सुबह ही गौ माता और उसके बछड़े को अच्छे से नहलाकर तैयार करें।
-इसके लिए उनका पूर्ण श्रृंगार करें। गाय के पैरों में घुंघरू बांधे व उन्हें अन्य आभूषण भी पहनायें।
-पूजा के दौरान गाय माता की हाथ जोड़कर परिक्रमा करें। इस दौरान सुबह गाय की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाएं।
-इस दिन ग्वालों को भी दान-दक्षिणा दिए जाने का विधान है।
-ग्वालों को नए वस्त्र देकर उन्हें तिलक करें और मुमकिन हो तो उन्हें भोजन भी कराए।
-चारा खाकर जब गाय घर लौटे तो उसकी सपरिवार पूजा करें और उन्हें आज कुछ विशेष खाने के लिए दें। इस दिन गाय को मुख्यतौर से हरा चारा खिलाया जाता हैं।
-इस दौरान जिन भी लोगों के घर गाय नहीं होती वो किसी भी गौ शाला जाकर गाय की पूजा कर पुण्य कमा सकते हैं।
-गाय की पूजा करते हुए उन्हें गंगा जल, फूल चढ़ाएं और गाय को तिलक लगाकर उनके समक्ष शुद्ध घी का दीप जलाते हुए उनकी आरती करें और भोग में उन्हें गुड़ खिलाएँ।
-इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है।
-कई लोग इस पर्व पर गौशाला में खाना और अन्य समान का दान भी करते है।
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हम आशा करते है कि इस गोपाष्टमी पर भगवान कृष्ण और गौ माता का आपको आशीर्वाद प्राप्त हो। आप सभी को गोपाष्टमी व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ।