विवाहित महिलाओं के लिए गौरी पूजन का व्रत विशेष महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं माता पार्वती की पूजा करती हैं और उनसे अपनी मनोकामना पूर्ति की इच्छा ज़ाहिर करती हैं। गौरी पूजन जीवन में सुख समृद्धि की कामना के लिए किया जाने वाला व्रत है।
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कहते हैं कि इस दिन की पूजा से माता पार्वती प्रसन्न होने पर अपने भक्तों के जीवन में खुशियाँ भर कर उनके जीवन में धन-धान्य से जुड़ी खुशियाँ बढ़ा देती हैं। ये पूजन-व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को भी सुधारने वाला साबित होता है। इसके अलावा अगर आपके जीवन में शादी-विवाह से संबंधी कोई परेशानी आ रही है या आपको मनचाहा साथी चाहिए हो तो इसके लिए भी आप ये व्रत कर सकती हैं।
कब है गौरी पूजन?
इस वर्ष गौरी पूजन का पर्व 27 मार्च 2020, शुक्रवार को मनाया जायेगा। इसके अलावा जानिए गौरी पूजन का समय,
तृतीया तिथि की शुरुआत | 19: 50 (26 मार्च, 2020) |
तृतीया तिथि समाप्त | 22:10 (27 मार्च, 2020) |
गौरी पूजा का महत्व
गौरी पूजा के दिन सुहागिन महिलाएं माता पार्वती की पूजा करती हैं। ये त्यौहार मुख्यतः महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इस दिन पार्वती जी का आवाहन किया जाता है। भगवान शंकर और माता पार्वती की असीम कृपा पाने के लिए किया जाने वाला ये व्रत माघ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है। जीवन के किसी भी प्रकार के कष्ट-परेशानी, या समस्या से मुक्ति पाने के लिए ये व्रत सबसे उपयुक्त बताया गया है। मान्यता है कि जो कोई भी इंसान इस व्रत को रखता है उसकी सभी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
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कैसे करें गौरी पूजन?
- भगवान गणेश को सर्वप्रथम पूजन का वरदान प्राप्त हैं। ऐसे में इस दिन भी सबसे सर्वोपरि भगवान गणेश की पूजा से शुरुआत करें।
- भगवान गणेश को गंगाजल से स्नान कराएं।
- पंचामृत से दोबारा भगवान गणेश को स्नान कराएं और फिर उन्हें पोछकर साफ़ वस्त्र पहनाकर आसन पर बिठाएं।
- इसके बाद माँ गौरी का आवाहन करें और उनसे अपने घर में विराजमान होने की कामना करें।
- अब उन्हें वस्त्र इत्यादि अर्पण करें और उन्हें धूप-दीप-नवैद्य इत्यादि चढ़ाएं और उनकी पूजा करें।
- उन्हें प्रसाद, दक्षिणा इत्यादि अर्पित करें और पूजन के समय ‘ऊं गौर्ये नम: व ऊं पार्वत्यै नम:’ इस मंत्र का जाप करें।
- घी या तेल का दीपक जलाएं और आरती करें।
पूजा के दौरान इन बातों का रखें विशेष ध्यान
इस पूजा के दौरान आपको कुछ विशेष बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। जैसे कि कहा गया है कि देवी पार्वती की मूर्ति हमेशा भगवान शिव की मूर्ती के बाईं और स्थापित करनी चाहिए। ऐसे में भगवान का आसन लगते वक़्त आपको इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा किसी भी पूजापाठ की ही तरह इस दिन भी स्नान-ध्यान से पवित्र होकर ही पूजा की विधि शुरू करने की सलाह दी जाती है। पूजा शुरू करने से पहले माता पार्वती की मूर्ती को पहले जल से और फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं और तब उन्हें आसन पर विराजित करें। मान्यतानुसार गौरी माता के चरण से लेकर उनके मस्तक की विशेष अंग पूजा किये जाने का महत्व बताया जाता है। कहा जाता है कि गौरी माता की अंग पूजा बेहद फलदायी मानी जाती है। मस्तक से लेकर चरण तक पूजन विधि को नखशिख पूजा कहते है।
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गौरी पूजन से मिलने वाले लाभ
- गौरी पूजन से जीवन में सुख-समृद्धि की सौगात मिलती है।
- प्रसन्न होने पर माता भक्तों के घर को ख़ुशियों से भर देती हैं।
- सच्चे मन से पूजा करने से भक्तों के धन-धान्य में बढ़ोतरी आती है।
- इस व्रत को करने से पति-पत्नी के रिश्तों में सुधार आता है।
- शादी में अगर कोई बाधा आ रही हो तो इस व्रत को करने से उससे भी छुटकारा पाया जा सकता है, साथ ही इस व्रत के प्रभाव से मनचाहा और योग्य जीवनसाथी भी मिलता है।
गौरी पूजन कथा
प्राचीन समय में एक धर्मपाल नाम का एक सेठ हुआ करता था जो अपनी पत्नी के साथ बेहद ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन यापन कर रहा था। धर्मपाल के जीवन में सभी खुशियाँ थीं लेकिन उसे हमेशा एक बात का दुःख सताता था कि उनके कोई संतान नहीं थी। सेठ प्रतिदिन पूजा-पाठ इत्यादि भी किया करते थे। काफी समय बाद उनके नेक कर्मों और पूजा-पाठ के फल से उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई। लेकिन बहुत ही कम समय में धर्मपाल को इस बात का पता चल गया कि उनका पुत्र अल्पायु है। ये जानकर उन्हें बहुत दुःख हुआ। तब उनकी पत्नी ने उन्हें समझाया कि दुखी होने से क्या ही प्राप्त होगा? अर्थात बेहतर होगा कि हम सब कुछ भगवान पर ही छोड़ दें। पत्नी की बात मानकर सेठ ने सही उम्र होने पर अपने पुत्र का विवाह एक संस्कारी सुयोग कन्या से करवा दिया। ये कन्या बचपन से ही माता गौरी का व्रत किया करती थी जिसके फलस्वरूप उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे सेठ धर्मपाल का पुत्र दीर्घायु हो गया।
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