महर्षि कश्यप के पुत्र थे पक्षीराज गरुड़। यही पक्षीराज गरुड़ बाद में श्री हरि विष्णु के वाहन बने। कहा जाता है कि एक बार गरुड़ देवता ने श्री हरि विष्णु से प्राणियों के जीवन और मृत्यु तथा कर्मों के अनुसार मिलने वाले फल व योनि संबंधी कुछ बेहद ही गूढ प्रश्न पूछे थे। तब गरुड़ देवता की जिज्ञासा को शांत करते हुए भगवान विष्णु ने उनके सारे प्रश्नों का जवाब दिया। गरुड़ देवता और भगवान विष्णु के बीच इसी संवाद का लेखा-जोखा है गरुड़ पुराण।
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सनातन धर्म में कुल अठारह पुराणों में से एक गरुड़ पुराण के आचार कांड में इस बात की जानकारी दी गयी है कि एक मनुष्य को किस तरह के मनुष्यों के घर पर कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए अन्यथा पाप के भागीदार बनेंगे। ध्यान रहे कि न सिर्फ घर पर भोजन बल्कि इन मनुष्यों के द्वारा दिया गया भोजन भी ग्रहण करने से जातक पाप का भागीदार बनता है।
ऐसे में आज हम आपको इस लेख में गरुड़ पुराण के अनुसार उन दस लोगों के बारे में बताने वाले हैं जिनके द्वारा दिया गया भोजन ग्रहण करना आपको पाप का भागीदार बनाता है।
पहला
गरुड़ पुराण यह कहता है कि किसी अपराधी के यहाँ हमें कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से उस अपराधी के गुण हमारे अंदर भी आ सकते हैं। इसलिए पाप की कमाई से अर्जित किया हुआ अन्न भी पाप का ही संचार करता है।
दूसरा
गरुड़ पुराण के अनुसार किसी ऐसे व्यक्ति के घर हमें भोजन नहीं करना चाहिए जो लंबे समय से किसी बीमारी से पीड़ित हो। ऐसे में इस बात की आशंका रहती है कि वह बीमारी आपको भी न हो जाये। इसलिए ऐसे घरों में भोजन करने से बचें।
तीसरा
वह व्यक्ति जो सूद पर पैसा देता हो या सूद के पैसे से अपनी जीविका चलाता हो, ऐसे व्यक्तियों के यहाँ भी भोजन करने से बचना चाहिए। अन्यथा गरुड़ पुराण के अनुसार आप पाप के भागीदार बनेंगे।
चौथा
किसी किन्नर के यहाँ भी भोजन करने से गरुड़ पुराण में मनाही है। इसमें कहा गया है कि चूंकि किन्नरों को भले मनुष्य के साथ-साथ पापी मनुष्यों का भी दान मिलता है, ऐसे में किन्नरों के हाथ से दिया गया भोजन या फिर किन्नरों के घर पर भोजन नहीं करना चाहिए।
पांचवा
गरुड़ पुराण के अनुसार हमें किसी चरित्रहीन स्त्री के घर का भोजन नहीं करना चाहिए। अन्यथा हम पाप के भागीदार बन सकते हैं।
छठा
गरुड़ पुराण में ऐसे किसी भी मनुष्य के घर पर भोजन करने को लेकर मनाही है जो किसी प्रकार का नशा करता हो या फिर नशे का सामान बेचता हो। ऐसे जातकों और इनके घर भोजन करने से बचना चाहिए।
सातवां
हमें ऐसे व्यक्ति के घर भोजन नहीं करना चाहिए जो दूसरों की चुगली करता हो। ऐसा व्यक्ति अपनी बातों से आपको भी किसी मुसीबत में डाल सकता है। ऐसे में इन व्यक्तियों से जितनी दूरी हो, बना कर रखने में ही भलाई है।
आठवां
ऐसा व्यक्ति जो स्वभाव से क्रोधी हो, उसके यहाँ भोजन करने अथवा उसके हाथ से भोजन ग्रहण करने पर गरुड़ पुराण में मनाही है। क्रोधी व्यक्ति के यहाँ भोजन करने से उसका यह स्वभाव आपके अंदर भी आ सकता है।
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नौवां
ऐसा व्यक्ति जो स्वभाव से निर्दयी हो उसके यहाँ कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति जैसा होता है उसके घर का अनाज भी वैसी ही प्रकृति का हो जाता है। यही वजह है कि गरुड़ पुराण में निर्दयी और क्रूर व्यक्ति के घर भोजन करने को पाप कर्म बताया गया है।
दसवां
भले ही कोई राजा कितना ही तेजस्वी और भाग्यशाली हो लेकिन अगर वह राजा अपनी जनता पर अत्याचार करता हो तो उसके घर पर भोजन नहीं करना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार ऐसे राजा के हाथों दिया गया भोजन मनुष्य को पाप का भागीदार बनाता है।
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