जानिए गणपति विसर्जन का शुभ मुहूर्त और इस दिन का महत्व !

गणेश चतुर्थी का यह त्यौहार जिसे गणेशोत्सव के नाम से भी जाना जाता है, इसे प्रत्येक वर्ष भारत में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार को मुख्य रूप से महाराष्ट्र, हैदराबाद और गुजरात में मनाया जाता है। दस दिनों तक भगवान गणेश की भक्ति में डूबे हुए लोगों का हर्षोल्लास देखने लायक ही होता है। हालाँकि इन दस दिनों के आयोजन के बाद बाप्पा की विदाई के साथ ही भक्त थोड़े उदास और ग़मगीन जरूर हो जाते हैं, लेकिन उन्हें इस बात की संतुष्टि रहती है की बप्पा अगले साल फिर उनके घर पधारेंगे। 

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गणेश विसर्जन के साथ ही इस दिन अनंत चतुर्दशी का व्रत भी मनाया जायेगा। इस व्रत के बारे में एक अनोखी मान्यता के अनुसार, जो कोई भी इंसान लगातार चौदह वर्षों तक इस व्रत को करता है उसे मृत्युपर्यन्त विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। 

तो आइये इस लेख में जानते हैं गणेश विसर्जन के साथ ही अनंत चतुर्दशी के शुभ मुहूर्त और इस दिन की उचित पूजन विधि के बारे में संपूर्ण जानकारी। साथ ही जानिए कि गणपति विसर्जन के दौरान आपको क्या काम करने से बचना चाहिए।

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कब मनाया जायेगा अनंत चतुर्दशी व्रत?

इस वर्ष अनंत चतुर्दशी व्रत 1 सितम्बर 2020, मंगलवार के दिन मनाया जायेगा। इसके अलावा बात करें अगर इस दिन के शुभ मुहूर्त की तो, 

अनंत चतुर्दशी शुभ मुहूर्त 

अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त : 05:59:17 से 09:40:54 तक

अवधि :3 घंटे 41 मिनट

(अपने शहर के अनुसार अनंत चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त जानने के लिए यहाँ क्लिक करें)

गणपति विसर्जन की सही विधि और मुहूर्त 

प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – 09 बज-कर18 मिनट से 02 बज-कर 01 मिनट  

अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – 03 बज-कर 35 मिनट से 05 बज-कर10 मिनट 

सायाह्न मुहूर्त (लाभ) – 08बज-कर10 पी एम से 09 बज-कर 35 मिनट 

रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – 11 बज-कर 01 मिनट से 03 बज-कर 18 मिनट सितम्बर 02

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 31, 2020 को 08 बज-कर 48 मिनट 

चतुर्दशी तिथि समाप्त – सितम्बर 01, 2020 को 09 बज-कर 38 मिनट

अब जानते हैं कि, गणेश विसर्जन के दिन किस विधि से गणपति भगवान की पूजा करनी चाहिए और साथ ही इस दिन किन बातों का ख्याल रखकर आप भगवान गणेश की असीम कृपा पा सकते हैं।

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अनंत चतुर्दशी पूजन विधि 

अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन किया गया है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने का विधान है। अनंत चतुर्दशी की पूजा दोपहर के समय की जाती है। इस व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है-

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद पूजा-व्रत का संकल्प लें और पूजा वाली जगह पर कलश की स्थापना करें।
  • इसके बाद कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें। इसके अतिरिक्त आप यदि चाहें तो भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगा सकते हैं।
  • इसके बाद एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर उससे अनंत सूत्र तैयार कर लें। यहाँ इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इस अनंत सूत्र में चौदह गांठें होनी चाहिए।
  • अब इस सूत्र को भगवान विष्णु की तस्वीर के समक्ष रख दें। (अनंत चतुर्दशी का अनंत चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम जानने के लिए यहाँ क्लिक करें)
  • इसके बाद भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें। पूजा पूरी करने के बाद बनाये गए अनंत सूत्र को अपनी बाजू में बांध लें।

   अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।

   अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

  • अनंत सूत्र बांधते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि पुरुष अनंत सूत्र को दांये हाथ में बांधे और महिलाएं बांये हाथ में बांधे।
  • पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

गणेश विसर्जन पूजन-विधि 

  • गणेश विसर्जन से पहले भगवान गणपति को उनके पसंदीदा चीजों जैसे, मोदक और लड्डुओं का भोग लगाएं। 
  • सामान्य दिन की ही तरह इस दिन भी गणेश भगवान की पूजा-अर्चना करें।
  • पूजा के बाद स-परिवार मिलकर भगवान गणेश के पवित्र मंत्रों का जाप करें और भगवान की आरती करें।
  • इसके पश्चात् लकड़ी का एक पटरा लेकर उससे गंगाजल छिड़क-कर साफ़ करें और उसपर सुंदर और स्वच्छ एक कपड़ा बिछा लें।
  • लकड़ी पर स्वास्तिक बनाएं और अक्षत रखें।
  • अब इस लकड़ी पर भगवान गणेश को स्थापित करें।
  • गणेश भगवान की स्थापना के बाद उन्हें धूप-दीप-सुगंध इत्यादि अर्पित करें।
  • साथ ही लड्डू और मोदक भी भगवान के साथ ही लकड़ी के पटरे पर रख दें।
  • अब उन्हें विसर्जन वाली जगह पर ले जायें, और विसर्जन से पहले भी आरती करें और अंत में बप्पा का आशीर्वाद लें और अपनी मनोकामना उनसे कहें। 

यह तो बात हो गयी पूजन विधि की, लेकिन इस दिन हमें कुछ बातों का ख़ास ख्याल भी रखना चाहिए। अब क्या है वो बातें आइये जानते हैं।

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इस दिन क्या करें-क्या ना करें

 

  • विसर्जन से पहले दस दिनों में जाने-अनजाने में अगर आपसे कोई गलती हुई हो तो उसकी क्षमा अवश्य मांग लें। 
  • विसर्जन के दौरान बहुत से लोग केवल प्रतिमा को पानी में फेंकने तक से नहीं झिझकते हैं। यह गलत है। प्रतिमा को पानी में फेंके नहीं, बल्कि स-सम्मान उनका विसर्जन करें। साथ में वस्त्र, फल-फूल इत्यादि चीज़ें भी भगवान के साथ बहते जल में प्रवाहित कर दें।
  • कोशिश करें कि बदलते समय के साथ आप भी बदलें और बाप्पा की इको-फ्रेंडली मूर्ति घर पर लायें। इसे बेहद ही आसानी से घर में ही विसर्जित किया जा सकता है और उसके बाद उस पानी को आप आराम से पेड़ों में डालकर पानी का सदुपयोग भी कर सकते हैं।
  • विसर्जन के समय हंसी-ख़ुशी के साथ बाप्पा को विदा करें। संकल्प लें कि अगले बरस उन्हें दोबारा अपने घर अवश्य लायेंगे।
  • विसर्जन के दिन काले कपड़े पहनने से बचें। रंगीन कपड़े पहनें। लाल-पीला-नीला-हरा-गुलाबी-कोई भी रंग पहनें।
  • इस दिन किसी भी तरह का कोई नशा ना करें।
  • किसी को गलत शब्द ना कहें। क्रोध ना करें। अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें।
  • जब भी गणेश विसर्जन के लिए जाएं तो आदिपूज्य भगवान लंबोदर, वक्रतुंड, विघ्नहर्ता, मंगलमूर्ति जैसे नामों को जरूर पुकारें। 
  • शास्त्रों में लिखा है कि हिन्दू धर्म में जब भी किसी को विदाई दी जाती है तो उसे दोबारा आने के लिए जरूर कहना चाहिए। ऐसे में बुलंद शब्दों में आप भी बाप्पा को अगले साल दोबारा आने को अवश्य कहें।

गणेश विसर्जन का महत्व 

हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ या मांगलिक काम से पहले भगवान गणपति को याद अवश्य किया जाता है। इसीलिए उन्हें प्रथम पूज्य देवता का दर्जा भी दिया गया है। खासकर मांगलिक कार्यों के दौरान गणेश वंदना और उनकी स्तुति करना महत्वपूर्ण माना जाता है। यही वजह है कि गणेश चतुर्थी के दौरान पूरे देश में हिन्दू धर्म को मानने वाले श्रद्धा भाव के साथ गणेश जी को अपने घर लाते हैं, अपनी यथाशक्ति भर उनका आदर-सत्कार और उनकी पूजा अर्चना करते हैं। 

दस दिनों तक चलने वाले इस भव्य और पावन त्यौहार का अंत गणपति विसर्जन से होता है। जिस दिन भगवान गणेश की मूर्तियाँ पानी में विसर्जित कर दी जाती हैं। लेकिन क्या इस खूबसूरत त्यौहार के बारे में आप यह जानते हैं कि गणेश विसर्जन केवल एक धार्मिक उत्सव ही नहीं है बल्कि इसे राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने का प्रतीक भी माना जाता है?

आइये आपको बताते हैं इसके पीछे की वजह। दरअसल सालों पहले सबसे पहले लोगों के बीच एकता को बनाये रखने के लिए छत्रपति शिवाजी ने महाराष्ट्र में दस दिनों के सार्वजनिक गणेश उत्सव त्यौहार की शुरुआत की थी। इसके बाद एक बार पुनः 1857 में लोकमान्य तिलक ने मराठा शक्ति को एकजुट करने के लिए हर साल गणेश उत्सव मनाये जाने की परंपरा की शुरुआत की थी। बताया जाता है कि तब से ही हर साल गणेश चतुर्थी का आयोजन भव्य पैमाने पर किया जाता है।

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‘गणपती बाप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या’

भगवान गणेश की कृपा सदैव आप पर और आपके परिवार पर बनी रहे।
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