हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने सौ पुत्रों और एक पुत्री को जन्म दिया था। महाभारत काल में उनके पुत्रों को कौरव कहा जाता था। एक ही माँ की कोख से एक सौ एक सन्तानों के जन्म लेने के पीछे का रहस्य आज हम आपको इस लेख के द्वारा बतायेंगे।
इस तरह जन्म हुआ कौरवों का
गांधार नरेश सुबल की पुत्री गांधारी का विवाह विचित्रवीर्य के पुत्र धृतराष्ट्र से हुआ था। विवाह के पश्चात जब गांधारी को यह पता चला की उसके पति नेत्रहीन है तो उसने जीवन भर के लिए अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली। एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए और गांधारी की सेवा सत्कार से बहुत प्रसन्न हुए जिसके फलस्वरूप उन्होंने उसे सौ पुत्रों का वरदान दिया। महर्षि के वरदान के अनुसार समय पर गांधारी गर्भवती हुई किन्तु दो वर्ष बीत जाने पर भी जब उसके शिशुओं का जन्म नहीं हुआ तो वह घबरा गयी और गुस्से में अपने पेट पर मुक्का मार कर अपना गर्भ गिरा दिया।
गर्भ गिराने के पश्चात उसके पेट से लोहे के समान एक मांस पिंड निकला। योगदृष्टि से जब महर्षि को इस बात की जानकारी हुई तो वह तुरंत गांधारी के पास गए और शीघ्र ही उसे सौ कुण्ड तैयार करके उनमें घृत भरने को कहा। आज्ञा अनुसार गांधारी ने सौ कुण्ड बनवा दिए जिसके पश्चात वेद व्यास ने उस मांस पिण्ड पर गांधारी को जल छिड़कने को कहा। जल छिड़कते ही उन मांस पिंडों के एक सौ एक टुकड़े हो गये और तब महर्षि ने गांधारी से कहा की उन मांस पिंडों को घृत से भरे कुंडों में डाल दे और फिर उन्हें दो वर्षों के बाद ही खोले।
दो वर्षों के उपरान्त उन्हीं कुण्डों में से सबसे पहले दुर्योधन का जन्म हुआ और फिर गान्धारी के 100 पुत्रों और एक पुत्री की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के बाद ऋषियों ने भविष्यवाणी की, की गांधारी का यह पुत्र कुल के नाश का कारण बनेगा इसलिए इसका त्याग करना ही उचित होगा। किन्तु पुत्र मोह के कारण धृतराष्ट्र और गांधारी दुर्योधन का त्याग नहीं कर पाए।
तो ये हैं 100 कौरवों के नाम
गांधारी के सौ पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं–
- दुर्योधन, 2. दुःशासन, 3. दुस्सह, 4. दुश्शल, 5. जलसंध, 6. सम, 7. सह, 8.विंद, 9.अनुविंद, 10. दुद्र्धर्ष, 11. सुबाहु, 12. दुष्प्रधर्षण, 13. दुर्मुर्षण, 14. दुर्मुख, 15. दुष्कर्ण, 16. कर्ण, 17. विविंशति, 18. विकर्ण, 19. शल, 20. सत्व, 21. सुलोचन, 22. चित्र, 23. उपचित्र, 24. चित्राक्ष, 25.चारुचित्र, 26. शरासन, 27.दुर्मुद, 28. दुर्विगाह, 29. विवित्सु, 30. विकटानन, 31. ऊर्णनाभ, 32. सुनाभ, 33. नंद, 34.उपनंद, 35. चित्रबाण, 36. चित्रवर्मा, 37. सुवर्मा, 38. दुर्विमोचन, 39.आयोबाहु, 40. महाबाहु, 41.चित्रांग, 42. चित्रकुंडल, 43. भीमवेग, 44. भीमबल, 45. बलाकी, 46. बलवद्र्धन, 47.उग्रायुध, 48. सुषेण, 49. कुण्डधार, 50. महोदर, 51. चित्रायुध, 52. निषंगी, 53. पाशी, 54. वृंदारक, 55. दृढ़वर्मा, 56. दृढ़क्षत्र, 57. सोमकीर्ति, 58. अनूदर, 59. दृढ़संध, 60. जरासंध, 61. सत्यसंध, 62. सद:सुवाक, 63.उग्रश्रवा, 64. उग्रसेन, 65. सेनानी, 66. दुष्पराजय, 67. अपराजित, 68. कुण्डशायी, 69. विशालाक्ष, 70. दुराधर, 71. दृढ़हस्त, 72. सुहस्त, 73. बातवेग, 74. सुवर्चा, 75. आदित्यकेतु, 76. बह्वाशी, 77. नागदत्त, 78. अग्रयायी, 79. कवची, 80. क्रथन, 81. कुण्डी, 82. उग्र, 83. भीमरथ, 84. वीरबाहु, 85. अलोलुप, 86. अभय, 87. रौद्रकर्मा, 88. दृढरथाश्रय, 89. अनाधृत्य, 90. कुण्डभेदी, 91. विरावी, 92. प्रमथ, 93. प्रमाथी, 94. दीर्घरोमा, 95. दीर्घबाहु, 96. महाबाहु, 97. व्यूढोरस्क, 98. कनकध्वज, 99. कुण्डाशी और 100. विरजा।
कौरवों की बहन
गांधारी की एक पुत्री भी थी। महाभारत के अनुसार उसका नाम दुशाला था, जिसका विवाह राजा जयद्रथ के साथ हुआ था। उसके पुत्र का नाम सुरथ था, जो अर्जुन के हाथों जयद्रथ के वध के बाद दुशाला की देख-रेख में सिन्धु देश के सिंहासन पर बैठा था।