शारदीय नवरात्रि 2024 के इस भव्य और 9 दिवसीय उत्सव की समाप्ति दुर्गा विसर्जन के साथ हो जाती है। मां दुर्गा की प्रतिमा को विजयदशमी या दशहरा के दिन विसर्जित किया जाता है। आषाढ़ मास में मनाए जाने वाले इस त्यौहार को भारत में मुख्य रूप से पूर्वी राज्यों, पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा और बिहार, महाराष्ट्र के कुछ भागों में बेहद ही ज़ोरों-शोरों से मनाए जाने की परंपरा है।
आज के हमारे इस विशेष ब्लॉग के माध्यम से हम जानेंगे कि वर्ष 2024 में दुर्गा विसर्जन किस दिन किया जाएगा, इसका शुभ मुहूर्त क्या रहने वाला है और इस दौरान आपको किन बातों के प्रति विशेष रूप से सावधानी बरतने की आवश्यकता रहेगी। तो चलिए आगे बढ़ने से पहले सबसे पहले जान लेते हैं 2024 में दुर्गा विसर्जन कब किया जाएगा।
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दुर्गा विसर्जन 2024 की तारीख और मुहूर्त
2024 में दुर्गा विसर्जन 13 अक्टूबर 2024 रविवार के दिन किया जाएगा। बात करें इसके विसर्जन मुहूर्त की तो,
दुर्गा विसर्जन समय :06:20:57 से 08:39:23 तक
अवधि :2 घंटे 18 मिनट
हालांकि यह मुहूर्त नई दिल्ली के लिए मान्य है। अगर आप अपने शहर के अनुसार इस दिन का शुभ मुहूर्त जानना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
दुर्गा विसर्जन के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखना होता है कि, दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त प्रात काल या अपराह्न काल में विजयदशमी तिथि लगने पर शुरू हो जाता है इसीलिए प्रातः काल या अपराह्न काल में जब विजयदशमी तिथि व्याप्त हो तब ही मां दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जित किया जाना चाहिए। हालांकि अगर श्रवण नक्षत्र और दशमी तिथि अपराह्न काल में एक साथ व्याप्त हो तो यह समय दुर्गा विसर्जन के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
देवी दुर्गा के ज्यादातर भक्त विसर्जन के बाद ही नवरात्रि व्रत की पारणा करते हैं अर्थात अपने 9 दिवसीय व्रत को खोलते हैं। दुर्गा विसर्जन के बाद विजयदशमी का त्यौहार मनाया जाता है। कहते हैं इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था और देवी दुर्गा ने इस दिन महिषासुर का वध किया था।
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दुर्गा पूजा के दौरान सिंदूर उत्सव का महत्व
दुर्गा पूजा के दौरान सिंदूर उत्सव पश्चिम बंगाल में मनाए जाने वाली एक बेहद ही खूबसूरत और अनोखी परंपरा है। विजयादशमी के दिन दुर्गा विसर्जन से ठीक पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है। इस मौके पर विवाहित महिलाएं एक दूसरे पर सिंदूर उड़ाती हैं, उन्हें सिंदूर लगाती हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देती हैं। सिंदूर उत्सव को सिंदूर खेला भी कहते हैं।
दुर्गा विसर्जन 2024- उत्सव
मान्यता के अनुसार इसी दिन माता दुर्गा अपने आध्यात्मिक निवास कैलाश पर्वत पर वापस लौट जाती हैं इसी के चलते मां दुर्गा के भक्तों के लिए यह दिन बेहद ही महत्वपूर्ण होता है। जैसा कि हमने पहले भी बताया कि बहुत से लोग इसी दिन नवरात्रि पारणा करते हैं। दुर्गा विसर्जन के दिन भक्त माता के माथे पर सिंदूर लगाकर उनकी पूजा करते हैं, आरती उतारते हैं।
इसके बाद मां दुर्गा की प्रतिमा को सजाकर विशाल जुलूस के साथ विसर्जन के लिए नदी तक ले जाया जाता है। इस जुलूस में हजारों की संख्या में श्रद्धालु नृत्य करते हैं, भक्त ढोल की धुन पर धुनुची नृत्य करते हैं। हाथ में धूप, कपूर और नारियल के भूसे से भरे मिट्टी के पात्र में धुआँ किया जाता है तथा ढकी की ताल पर आदमी और औरत पारंपरिक नृत्य करते हैं।
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दुर्गा पूजा क्यों मनाई जाती है?
क्या है इसका इतिहास,महत्व और परंपरा
दुर्गा पूजा की उत्पत्ति का पता प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के माध्यम से लगाया जा सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर एक मायावी राक्षस था जिसे भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि उसे कोई भी देवता या मनुष्य पराजित नहीं कर सकेगा। इससे वह और शक्तिशाली हो गया और उसने स्वर्ग में देवताओं को कष्ट पहुंचाना शुरू कर दिया। तब मदद के लिए सभी देवता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे जिन्होंने मिलकर देवी दुर्गा की उत्पत्ति की और उन्हें महिषासुर से युद्ध करने के लिए अपनी सर्वोच्च शक्तियां प्रदान की।
महिषासुर और देवी दुर्गा के बीच भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में कई बार राक्षस ने खुद को भैसें के रूप में परिवर्तित कर लिया। देवी और राक्षस के बीच यह युद्ध तकरीबन 10 दिनों तक चलता रहा। इसके अंत में देवी दुर्गा ने भैंस का सिर काटकर और महिषासुर को हराकर जीत हासिल की। कुल मिलाकर कहा जाए तो दुर्गा पूजा का त्योहार 10 दिनों तक चलने वाला एक बेहद ही खूबसूरत त्यौहार है जो इस महाकाव्य युद्ध की याद दिलाता है जिसमें अंतिम दिन विजयदशमी के रूप में जाना जाता है।
विजयदशमी का दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न के रूप में मनाया जाता है। साथ ही देवी दुर्गा की अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता के घर की यात्रा का जश्न भी मनाया जाता है। यह उत्सव महालय के साथ शुरू होता है जो देवी दुर्गा की पृथ्वी की यात्रा की शुरुआत का प्रतीक होता है। औपचारिक उत्सव छठे दिन अर्थात महाषष्ठी से शुरू होता है जिसमें पारंपरिक भाग ड्रम बजाने वाली धातुओं की जीवंत धुनि के बीच मां दुर्गा की मूर्ति का अनावरण किया जाता है। यह पूजा बंगाली परंपरा का एक प्रमुख हिस्सा है।
इस त्यौहार का अगला दिन महा सप्तमी के नाम से जाना जाता है जिसमें सुबह-सुबह केले के पेड़ को पानी में डुबोने की रसम से शुरुआत की जाती है। इस परंपरा के अनुसार केले के पेड़ को दुल्हन के रूप में तब्दील कर दिया जाता है, इसे लाल बॉर्डर वाली साड़ी पहनाई जाती है और भगवान गणेश के बगल में रखा जाता है। “कोला बौ” की व्याख्या कुछ लोगों द्वारा गणेश की दुल्हन के रूप में की जाती है जबकि अन्य लोगों के अनुसार इसे स्वयं देवी दुर्गा का प्रतिनिधित्व या देवी दुर्गा के रूप में देखा और जाना जाता है।
महा अष्टमी आठवां दिन होता है। यह बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन महिषासुर पर दुर्गा मां की विजय का जश्न मनाया जाता है। इस दिन भक्तों द्वारा अंजलि के साथ प्रार्थना करने और उत्सव में खिचड़ी का आनंद लेने जैसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान शामिल होते हैं।
इसके बाद अगला दिन महानवमी का होता है जिसकी शुरुआत संधी पूजा के बाद शुरू होती है और इसका समापन भव्य महा आरती के साथ होता है। इसमें भाग लेने के लिए भारी मात्रा में भीड़ उमड़ती है।
इस बेहद ही खूबसूरत और भव्य उत्सव का समापन दसवें दिन दशमी को होता है जिसमें माँ दुर्गा और अन्य देवताओं की मूर्तियों को गंगा नदी में विसर्जन कर दिया जाता है। इसी समारोह को दुर्गा विसर्जन कहते हैं। इस विसर्जन से पहले विवाहित महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर सिंदूर खेला में भाग लेती हैं। यह दिन जुलूस और खुशी के साथ विजय दशमी की शुभकामनाएं देते हुए समाप्त होता है।
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नवरात्रि के दौरान दुर्गा विसर्जन का क्या है महत्व?
सनातन परंपरा में विसर्जन का विशेष महत्व माना जाता है। विसर्जन का अर्थ होता है पूर्णता जीवन की पूर्णता, आध्यात्मिक ज्ञान या प्रकृति। जब कोई इकाई पूर्णता प्राप्त कर लेती है तो उसका विसर्जन अनिवार्य हो जाता है। आध्यात्मिक क्षेत्र में विसर्जन अंत का नहीं बल्कि पूर्णता का प्रतीक माना गया है। मां दुर्गा के विसर्जन के पीछे यही एकमात्र कारण माना जाता है।
शारदीय नवरात्रि शुरू होते ही हम देवी की प्रतिमाओं को बनाते हैं और उन्हें अपने घर लाते हैं, उन्हें खूबसूरत वस्त्रों और आभूषणों से सजाते हैं, 9 दिनों तक देवी की श्रद्धापूर्वक पूजा और भक्ति करते हैं और आखिरी दिन उनका विसर्जन कर दिया जाता है। विसर्जन की यह खूबसूरत परंपरा केवल सनातन धर्म में ही निभाई जाती है।
इस परंपरा का मानना है कि रूप के केवल आरंभ है और समापन हमेशा निराकार होता है। यहां निराकार का अर्थ निराकार से नहीं बल्कि सर्वव्यापी रूप होने से होता है। नवरात्रि के यह 9 दिन इस बात का प्रतीक होते हैं कि हमें खुद को किसी एक रूप की पूजा तक सीमित नहीं रखना चाहिए। इसके बजाय हमें अपना आध्यात्मिक ध्यान पूरा करना चाहिए, अपने देवता का विसर्जन करना चाहिए ताकि वह निराकार्ता को प्राप्त कर सकें।
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विसर्जन की रस्म
दुर्गा विसर्जन की रस्म कन्या पूजन के बाद प्रारंभ होती है।
- कन्या पूजन के बाद हथेली में एक फूल और कुछ चावल के दाने लेकर संकल्प लें।
- पात्र में रखे नारियल को प्रसाद के रूप में स्वयं लें और अपने परिवार के सदस्यों को भी खिलाएं।
- पात्र के पवित्र जल को पूरे घर में छिड़कें और फिर पूरे परिवार को उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण कराएं।
- सिक्के अपने कटोरे में रखें। आप इन्हें अपने तिजोरी में भी रख सकते हैं।
- परिवार में प्रसाद के रूप में सुपारी बाँट दें।
- अब घर में माता की चौकी का आयोजन करें और मंदिर में सिंहासन को पुनः उनके स्थान पर रख दें।
- घर की महिलाएं साड़ी और आभूषण आदि का प्रयोग कर सकती हैं।
- घर के मंदिर में श्री गणेश की मूर्ति उनके स्थान पर रखें।
- सभी फल और मिठाइयां परिवार में प्रसाद के रूप में बांट दें।
- चावलों को चौकी और कंटेनर के ढक्कन पर इकट्ठा कर लें। इन्हें पक्षियों को खिला दें।
- मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो के सामने झुककर उनका आशीर्वाद लें।
- इसके अलावा उस पत्र का भी आशीर्वाद लें जिसमें अपने ज्वार और अन्य पूजन सामग्री बोई है।
- फिर किसी नदी, झील या समुद्र में विसर्जन की रस्म अदा करें।
- विसर्जन के बाद एक नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपड़े किसी ब्राह्मण को दे दें।
विसर्जन करते समय इन बातों का रखें विशेष ख्याल
- विसर्जन किसी नदी या तालाब में करना बहुत शुभ माना जाता है।
- पूरी आस्था के साथ मां की प्रतिमा पात्र या जवारे का विसर्जन करें।
- पूजा की सभी आवश्यक सामग्री को भी पवित्र जल में विसर्जित कर दें।
- विसर्जन के लिए जाते समय मां दुर्गा की मूर्ति का इस प्रकार ध्यान रखें जैसा आपने उन्हें लाते समय रखा था।
- विसर्जन से पहले मां दुर्गा की मूर्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना जाना चाहिए।
- मां दुर्गा के विसर्जन से पहले उनके लिए आरती अवश्य करें।
- आरती की दिव्य रोशनी को मां दुर्गा के आशीर्वाद और शुद्ध प्रसाद के रूप में प्राप्त करें।
- विसर्जन के बाद किसी ब्राह्मण को नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपड़े का दान करना शुभ माना गया है।
दुर्गा विसर्जन के लिए ये मंत्र इस्तेमाल किए जा सकते हैं:
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे। पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।। महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी। आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि। पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।
क्या ये जानते हैं आप: क्यों किया जाता है मां दुर्गा का विसर्जन? सनातन धर्म में बेटियों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इसी तरह मां दुर्गा अपने बच्चों लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिकेय और गणेश के साथ पृथ्वी पर कुछ दिन व्यतीत के लिए अपने घर मायके आती हैं और फिर भगवान शिव के पास अपने ससुराल वापस चली जाती हैं। इसी क्षण को विसर्जन के रूप में मनाया जाता है जिसमें भक्ति परंपरा के अनुसार मूर्ति का विसर्जन कर देते हैं। विसर्जन से पहले मां दुर्गा का पूरा शृंगार किया जाता है और महिलाएं समृद्धि की निशानी के तौर पर एक दूसरे की मांग में सिंदूर लगाती हैं और चूड़ा पहनती हैं।
दुर्गा विसर्जन में इन बातों का रखें विशेष ख्याल अन्यथा व्यर्थ चली जाएगी 9 दिन की पूजा
- दुर्गा विसर्जन से पहले मां दुर्गा के समक्ष हवन अवश्य करें।
- देवी को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ाएं। इसके बाद विवाहित महिलाओं को भी सिंदूर लगाएँ। इससे सौभाग्य में वृद्धि होती है।
- नवरात्रि के पहले दिन जो कलश की स्थापना की जाती है विसर्जन करने से पहले कलश के पानी को आम के पत्तों से पूरे घर में छिड़क दें इससे नकारात्मकता दूर होती है।
- अब 9 दिन की पूजा के दौरान देवी को जो कुछ भी सामग्री चढ़ाई गई है प्रतिमा के साथ उस सामग्री, कलश का जल, किसी नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें।
- घट स्थापना के नारियल को भी विसर्जित करते हैं।
- नवरात्रि के पहले दिन बोये गए ज्वार मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ विसर्जित कर दिए जाते हैं।
- कुछ ज्वारों को धन के स्थान पर रखते हैं इससे बरकत बनी रहती है।
- ध्यान रखें की मां दुर्गा की प्रतिमा को पूरे सम्मान के साथ नदी में प्रवाहित करें अन्यथा 9 दिन की पूजा का फल निष्फल हो जाता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
2024 में दुर्गा विसर्जन 13 अक्टूबर 2024 रविवार के दिन किया जाएगा।
विजयादशमी के दिन दुर्गा विसर्जन से ठीक पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है। इस मौके पर विवाहित महिलाएं एक दूसरे पर सिंदूर उड़ाती हैं, उन्हें सिंदूर लगाती हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देती हैं।
दुर्गा विसर्जन के दौरान ध्यान रखें की मां दुर्गा की प्रतिमा को पूरे सम्मान के साथ नदी में प्रवाहित करें अन्यथा 9 दिन की पूजा का फल निष्फल हो जाता है।