दुर्गा महा अष्टमी पर दुर्गा विसर्जन व सिंदूर उत्सव का महत्व

दुर्गा महा अष्टमी पर जानें पूजा विधि व दुर्गा विसर्जन का महत्व। साथ ही सिंदूर उत्सव से जुड़ी हर जानकारी।   

दुर्गा पूजा उत्सव के दूसरे दिन महाष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। जो मुख्य-रूप से पश्चिम बंगाल, असम, बिहार और ओडिशा के कई क्षेत्रों में आयोजित किया जाएगा। इसलिए इस तिथि को महा दुर्गाष्टमी भी कहा जाता है। इस दौरान लोग देवी दुर्गा के नौ रूपों के लिए मिट्टी के नौ कलश रखकर उनका ध्यान कर विधि अनुसार पूजन करते हैं। इसके बाद महाष्टमी पर भी कुमारी पूजा करते हुए छोटी बालिकाओं का श्रृंगार कर उन्हें देवी मानकर उनकी आराधना की जाती है। 

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दुर्गा पूजा में संधि पूजा का महत्व

महाअष्टमी के दिन दुर्गा पूजा में संधि पूजा का विशेष महत्व होता है। इस पूजा को अष्टमी और नवमी दोनों दिन ही किये जान एक विधान है। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि क्षण या काल कहते हैं और ये समय दुर्गा पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। यही वो समयावधि होती है जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि का शुभ आरंभ होता है। मान्यता अनुसार इसी शुभ अवधि में देवी दुर्गा ने पृथ्वी पर प्रकट होकर असुर चंड और मुंड का वध किया था। इसलिए कई जगहों पर संधि पूजा के समय मां दुर्गा को पशु बलि चढ़ाई जाने की भी परंपरा होती है। 

हालांकि बदलते वक़्त के साथ अब लोग पशु बलि की जगह केला, कद्दू और ककड़ी जैसे फल व सब्जियों की बलि मां को चढ़ाते हैं। विशेष तौर पर पश्चिम बंगाल राज्य के वैल्लूर मठ में संधि पूजा के समय बलि की परंपरा को निभाते हुए लोग केले की बलि मां को अर्पित करते हैं। इसके साथ ही इस पावन शुभ समयावधि में देवी दुर्गा के समक्ष उनके भक्त 108 दीपक भी प्रज्वलित करते हैं। 

नवरात्रि में दुर्गा विसर्जन

हिन्दू धर्म अनुसार दुर्गा पूजा महा उत्सव का समापन भी दुर्गा विर्सजन के साथ ही होता है और दुर्गा विसर्जन का शुभ मुहूर्त प्रात:काल या अपराह्न काल में विजयादशमी तिथि लगने पर ही शुरू होता है। इसके विसर्जन के लिए प्रातः काल या अपराह्न काल में विजयादशमी तिथि व्याप्त हो जाने पर ही मॉं दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाना शुभ माना जाता है। 

दुर्गा पूजा में सिंदूर उत्सव का महत्व 

दुर्गा पूजा के समय पर सिंदूर उत्सव मनाया जाता है, जो विशेषतौर पर पश्चिम बंगाल में खेला जाता है। ये एक बेहद अनोखी व प्रचलित परंपरा है, जिसे सिंदूर खेला भी कहते हैं। दुर्गा पूजा में सिंदूर खेला की ये अनोखी रस्म विजयादशमी के दिन दुर्गा विसर्जन से पहले निभाई जाती है। जिस दौरान सभी विवाहित महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाते हुए उन्हें शुभकामनाएं देती हैं। 

एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को महा अष्टमी पर्व 2019 की शुभकामनाएं ! हम आशा करते हैं कि देवी दुर्गा का आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे।