देवशयनी एकादशी : जानें तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

सनातन धर्म में एकादशी के व्रत का बड़ा महत्व है। यह दिन विशेष रूप से भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने दो एकादशी की तिथि आती है। इसमें से एक शुक्ल पक्ष में पड़ती है जबकि एक कृष्ण पक्ष में। अब चूंकि हिन्दू नववर्ष का नया महीना आषाढ़ शुरू हो चुका है। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में आषाढ़ महीने में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी की तिथि, महत्व और पूजा विधि बताने वाले हैं।

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देवशयनी एकादशी की तिथि

प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। साल 2021 में यह तिथि 20 जुलाई को मंगलवार के दिन पड़ रही है। ऐसे में 20 जुलाई को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा और अगले दिन यानी कि 21 जुलाई को बुधवार के दिन पारण किया जाएगा।

देवशयनी एकादशी का पारण मुहूर्त 21 जुलाई की सुबह 05 बजकर 35 मिनट से शुरू हो जाएगा और 08 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा। ऐसे में पारण मुहूर्त की कुल अवधि 02 घंटे 44 मिनट की हुई।

आइये अब आपको बता देते हैं कि देवशयनी एकादशी का सनातन धर्म में क्या महत्व है।

देवशयनी एकादशी का महत्व

सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है। इसके अलावा इस एकादशी को हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘देव’ और ‘शयन’। यहाँ देव शब्द का भगवान विष्णु के लिए उपयोग किया गया है और शयन शब्द का अर्थ है सोना। मान्यताओं के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं। कहा जाता है कि जो जातक देवशयनी एकादशी का व्रत करते हैं उनके सारे दुख, दर्द दूर हो जाते हैं और उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

आइये अब आपको देवशयनी एकादशी की पूजा विधि बता देते हैं।

देवशयनी एकादशी की पूजा विधि

  • देवशयनी एकादशी का व्रत रखने वाले जातकों को इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ वस्त्र धारण कर लेना चाहिए।
  • इसके बाद पूजा स्थल की साफ-सफाई कर के भगवान विष्णु की प्रतिमा को पीले रंग के आसन पर विराजमान कर के उनकी षोडशोपचार से पूजा करें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु को पीले रंग के वस्त्र , पीले फूल और पीला चन्दन अर्पित करें। 
  • भगवान विष्णु के हाथ में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।
  • भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करें। इसके बाद उन्हें धूप और दीप दिखाकर पुष्प अर्पित करें और उनकी आरती करें।
  • इसके बाद नीचे बताए गए मंत्र का जाप करते हुए भगवान विष्णु का ध्यान करें।

   ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।

   विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।

इस मंत्र का अर्थ है : हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।

  • भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके बाद स्वयं भी फलाहार ग्रहण करें।
  • रात में भगवान विष्णु का ध्यान करें और भजन-कीर्तन करें। इसके साथ ही स्वयं सोने से पहले भगवान विष्णु को सुलाएँ।

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