देवी-देवताओं की कितनी परिक्रमा लगाना होता है फलदायी, यहां जाने सही तरीका

देवी-देवताओं की कितनी परिक्रमा लगाना होता है फलदायी, यहां जाने सही तरीका

सनातन धर्म में अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। लोग भगवान को प्रसन्न करने के लिए कई व्रत करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उन्हें कई चीज़ें जैसे- अगरबत्ती, फूल, ध्वज, नारियल आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। साथ ही, ईश्वर की परिक्रमा करते हैं, परिक्रमा जिसे फेरी लगाना भी कहते हैं। हिंदू धर्म में पूजा पाठ के साथ-साथ परिक्रमा करना भी पूजा का ही एक हिस्सा माना जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान की प्रतिमा या मंदिर की परिक्रमा लगाने से व्यक्ति के विचारों में कई सकारात्मक परिवर्तन देखे जाते हैं और ऐसा करने से भगवान की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है।

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इसके आलाव, मन को सुख-शांति मिलती है लेकिन परिक्रमा का फल तभी मिलता है जब इसके नियमों का पालन किया जाए। कई लोग परिक्रमा तो करते हैं लेकिन उन्हें यह पता नहीं होता है कि किस देवी या देवताओं की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए। यदि आपको भी इसके बारे में जानकारी नहीं है तो एस्ट्रोसेज का यह विशेष ब्लॉग आपके लिए आपको इस बारे में जानकारी प्रदान करेगा कि किस देवी-देवताओं की कितनी बार परिक्रमा करना लाभकारी माना जाता है।

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किस देवी-देवताओं की कितनी करें परिक्रमा

भगवान शिव: शिवलिंग की आधी परिक्रमा

भगवान विष्णु: पांच बार परिक्रमा

हनुमान जी: तीन बार परिक्रमा

मां दुर्गा सहित सभी देवियों की : एक बार परिक्रमा

सूर्य देव : सात बार परिक्रमा

भगवान गणेश : तीन परिक्रमा

पीपल का पेड़: 108 परिक्रमा

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परिक्रमा के दौरान इस मंत्र का करें जाप

परिक्रमा करते समय भगवान का ध्यान करना चाहिए और इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

मंत्र- यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

अर्थ- इस मंत्र का अर्थ है कि कभी जीवन में गलती से किए गए और पूर्व जन्मों के सभी पाप और गलत कर्म परिक्रमा के साथ-साथ खत्म हो जाए। हे ईश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।

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परिक्रमा करने के नियम

मंदिर या देवी-देवताओं की परिक्रमा हमेशा घड़ी की दिशा में ही करनी चाहिए। सीधे हाथ की ओर से परिक्रमा शुरू करनी चाहिए। इस दौरान मंत्रों का जाप जरूर करना चाहिए। मंदिर बहुत पवित्र स्थान होता है यहां लगातार मंत्र जाप, पूजा और घंटियों की ध्वनि से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। ये ऊर्जा उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित होती है। ऐसे में, दाहिने ओर से परिक्रमा करने पर साधक को सकारात्मक ऊर्जा का लाभ मिलता है। इससे मानसिक तनाव दूर होते हैं, आध्यात्मिक गतिविधियों की तरफ झुकाव बढ़ता है। माना जाता है कि जब कोई भी व्यक्ति परिक्रमा करता है तो उसका दाहिना भाग गर्भगृह के अंदर देवता की ओर होता है और परिक्रमा वेद द्वारा अनुशंसित शुभ होती है।

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परिक्रमा का महत्व

मंदिरों में परिक्रमा करना एक बहुत ही सामान्य अनुष्ठान है। इस विधि को परिक्रमा, प्रदक्षिणा या प्रदक्षिणम भी कहा जाता है। भक्त मंदिर के देवी-देवता के निवास स्थान के सबसे भीतरी कक्ष के चारों ओर फेरी लगाते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

ऐसा माना जाता है कि मंदिर में पूजा करने के बाद परिक्रमा करने से भक्त तनाव रहित होता है और नकारात्मक भावनाओं से दूर रहता है। यही नहीं उसे बहुत हल्का महसूस होता है। कहते हैं कि जिस बोझ और अपनी प्रार्थना के साथ व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करते है और परिक्रमा मंदिर में भगवान से जुड़ने का एक आध्यात्मिक तरीका बताया गया है। इससे व्यक्ति ईश्वर का मन से ध्यान कर उन्हें धन्यवाद देता है। इसके साथ ही, जो व्यक्ति परिक्रमा करता है उससे भगवान बेहद प्रसन्न रहते हैं और उसकी सभी समस्याओं का निवारण करते हैं।

जानें परिक्रमा दक्षिणावर्त दिशा में क्यों करनी चाहिए

हिंदू धर्म में दाहिना भाग को बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए पूजा पाठ करने के लिए हमारे बड़े बुजुर्ग दाहिने हाथ को आगे करवाते हैं और मंदिर का प्रसाद भी दाहिने हाथ से लेना शुभ माना जाता है। सनातन धर्म में बाएं हाथ में प्रसाद स्वीकार नहीं करते या उससे पवित्र वस्तुओं को नहीं छूते हैं। परिक्रमा करते समय, भक्त भगवान के प्रति अपनी आस्था और उनके प्रति सम्मान दिखाने के लिए मंदिर की दीवारों को अपनी उंगलियों से छूते हैं और फिर उसे वापस अपने माथे पर लगाकर प्रणाम करते हैं। यदि कोई ऐसा अपनी दाहिनी ओर से करेगा, तो यह करना उनके लिए आसान होगा।

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ये हैं प्रमुख परिक्रमाएं

देव स्थान की परिक्रमा

जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम, तिरुवन्नमलई और तिरुवनंतपुरम देव मंदिरों की परिक्रमा इसमें प्रमुख मानी जाती है।

देवी-देवताओं की परिक्रमा

देव मूर्तियों में भगवान शिव, माता दुर्गा, भगवान गणेश, भगवान विष्णु, भगवान हनुमान जी, भगवान कार्तिकेय आदि देवी-देवताओं की प्रतिमा के चारों ओर परिक्रमा की जाती है। 

पवित्र नदी की परिक्रमा

हिंदू धर्म में नदियों का विशेष महत्व माना गया है। लोग गंगा, सरयू, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी आदि पवित्र नदियों की परिक्रमा भी करते हैं। 

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वृक्ष की परिक्रमा

त्योहारों और विशेष कामना या किसी विशेष देवी देवता की कृपा पाने के लिए वृक्षों की परिक्रमा भी की जाती है। पीपल और बरगद के वृक्ष की परिक्रमा विशेषतौर पर की जाती है। 

तीर्थ स्थानों परिक्रमा

अयोध्या, उज्जैन, प्रयाग राज, चौरासी कोस आदि स्थानों की परिक्रमा को तीर्थ स्थानों की परिक्रमा कहा जाता है। चारधाम यात्रा भी इसी परिक्रमा में आती है। 

भरत खंड परिक्रमा

यह परिक्रमा ज्यादातर साधु संतों को द्वारा की जाती है। इसमें पूरे भारतवर्ष की परिक्रमा की जाती है।  

पर्वत परिक्रमा

गोवर्धन, गिरनार, कामदगिरी आदि पर्वतों को पूजनीय माना गया है लोग इन पर्वतों की परिक्रमा भी करते हैं। जो लोग वृंदावन धाम जाते हैं वे गोवर्धन परिक्रमा जरूर करते हैं। 

विवाह के सात फेरों की परिक्रमा

इसमें विवाह के समय वर और वधू अग्नि के चारों तरफ 7 बार परिक्रमा करते हैं। 

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