साल 2019 में देव दीपवली का त्योहार 12 नवंबर यानि आज मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह त्योहार कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस त्योहार की धूम शिव की नगरी काशी यानि वाराणसी में देखी जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने देवताओं पर अत्याचार करने वाले त्रिपुरा नामक राक्षस का वध किया था जिसके बाद देवतागण खुशी मनाने पृथ्वी पर आए थे, और उन्होंने धूम धाम से दीपावली मनाई थी। आज हम आपको देव दीपावली से जुड़ी दो कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं।
देव दीपावली से जुड़ी पहली कथा
इस कथा के अनुसार पौराणिक काल में तारकासुर नाम का एक दैत्य हुआ। इस दैत्य के तीन पुत्र थे जिनका नाम- तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली था। इन तीनों दैत्यों को त्रिपुरा के नाम से जाना जाता था। इन तीनों दैत्यों के पिता का वध शिवजी के पुत्र कार्तिकेय ने कर दिया था। पिता के वध का बदला लेने के लिये तीनों असुरों नें ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या की। तपस्या से खुश होकर जब ब्रह्मा जी प्रकट हुए तो तीनों असुरों ने अमर होने का वरदान मांगा। लेकिन ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी और इसकी जगह कोई और वर मांगने को कहा। तब तारकासुर के पुत्रों ने कहा कि जो भी हमारा वध करना चाहे वो एक ही तीर से हमारा वध कर पाए ऐसा वरदान दीजिये। ब्रह्माजी ने उन्हें यह वरदान दे दिया। इस वरदान के मिल जाने के बाद तरकासुर के तीनों पुत्रों ने तीनों लोकों पर अपने आधिपत्य कर लिया। इन तीनों ने देवताओं पर अत्याचार किये जिसके बाद देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। तब शिवजी ने विश्वकर्मा से एक रथ बनाने को कहा। उस रथ पर सवार होकर भगवान शिव तीनों दैत्यों का वध करने निकल पड़े। इसके बाद देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हुआ जब युद्ध के दौराना तीनों भाई तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली एक साथ आए तो भगवान शंकर ने एक ही तीर से तीनों का वध कर डाला। इसके बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। तीनों दैत्यों की मृत्यु के बाद देवता अति प्रसन्न हुए और उन्होंने भूलोक पर आकर दीपावली मनाई। देवताओं द्वारा मनाई गई इस दीपावली को ही देव दीपावली कहा जाता है।
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देव दीपावली से जुड़ी दूसरी कथा
देव दीपावली से जुड़ी इस कथा के अनुसार त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तप के बल पर स्वर्ग पहुंचा दिया था। लेकिन त्रिशंकु से देवता परेशान हो गए और उन्होंने उसे स्वर्ग से निकाल दिया। यह बात जब विश्वामित्र को पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुए। इसके बाद उन्होंने धरती और स्वर्ग से इतर एक नई सृष्टि बनाने की योजना बना दी। इस योजना को साकार करने के लिये उन्होंने अपने तपोबल का इस्तेमाल करना भी शुरु कर दिया। विश्वामित्र ने मिट्टी, ऊंट, बकरी, नारियल, सिंघाड़ा आदि की रचना भी शुरु कर दी। आगे बढ़ते हुए उन्होंने ब्रह्मा-विष्णु-महेश की मूर्तियां बनाकर उनमें प्राण फूंकना शुरु कर दिया। उनके इस काम से सारी पृथ्वी डगमगाने लगी चारों तरफ हाहाकार मच गया। इसके बाद विश्वामित्र के क्रोध को शांत करने के लिये देवताओं ने उनकी पूजा करनी शुरु कर दी। देवताओं की पूजा से विश्वामित्र का क्रोध शांत हो गया। नई सृष्टि को रचने का अपना संकल्प उन्होंने वापस ले लिया। इसके बाद देवताओं में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। इस खुशी के मौके पर स्वर्ग, धरती और पाताल हर जगह दीपावली मनाई गई। आगे चलकर इसे ही देव दीपावली कहा गया।
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