देवों के देव महादेव की महिमा अपरंपार है। हिंदू धर्म में शिव के कई अलग-अलग रूपों को पूजा जाता है। अर्धनारीश्वर, भोलेनाथ, भोलेभंडारी शिवशंभु, महादेव, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार और ऐसे कई नामों से भगवान शिव जाने जाते हैं। हर व्यक्ति अपनी श्रद्धा अनुसार उनकी पूजा अर्चना करता है। भोलेनाथ को याद करने मात्र से भक्तों के सारे दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं। वैसे तो भोलेनाथ कण-कण में बसते हैं, लेकिन कुछ जगहें ऐसी हैं जो उन्हें ज़्यादा प्रिय हैं, जैसे कि कैलाश मानसरोवर और उनका ससुराल “कनखल”। जी हाँ, शिव शम्भू का ससुराल हरिद्वार के पास बसे “कनखल” में है। आज हम आपको अपने इस लेख में महादेव के ससुराल और उससे जुड़ी रोचक बातें बताएँगे।
हरिद्वार में है महादेव का ससुराल
कहा जाता है कि कैलाश पर्वत भगवान शिव का घर है और कनखल उनकी ससुराल। पुराणों के अनुसार कनखल का “दक्षेश्वर महादेव मंदिर” भगवान शिव के ससुराल के रूप में प्रसिद्ध है, जहाँ भगवान शिव का पहला शिवलिंग भी स्थापित है। यह मंदिर हरिद्वार के समीप बसे “कनखल” में स्थित है। इसे दक्ष प्रजापति मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1810 ई में रानी दनकौर ने कराया था। इसके बाद 1962 ई में पुनः इसका निर्माण कराया गया।
लोगों का मानना है कि पूरे श्रावण मास में भोलेनाथ अपने ससुराल में ही रहते हैं। इस मंदिर के बीचों-बीच भगवान शंकर की मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर भोलेनाथ कि पहली पत्नी माता सती के पिता “दक्ष प्रजापति” के नाम पर है। यहाँ पर एक कुंड भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि माता सती ने यहीं पर आत्मदाह किया था। श्रावण मास में पूरे देशभर से लोग यहां पहुंचते हैं। मान्यता है कि इस समय में यहां जल चढ़ाने से महादेव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
क्यों प्रिय है भोलेनाथ को यह स्थान?
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र थे, जिनकी पुत्री सती ने उनके विरुद्ध जा कर भगवान शिव से शादी की थी। एक बार प्रजापति दक्ष ने कनखल में एक यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा, किंतु अपने पुत्री और दामाद को आमंत्रित नहीं किया। पिता प्रेम में सती, भगवान शिव के मना करने के बाद भी यज्ञ में चली गईं। वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि सभी देवी देवताओं का स्थान यज्ञ में है, किंतु उनके पिता ने उनके पति भगवान शिव को कोई स्थान नहीं दिया है। जब माता सती ने इस बात का विरोध किया तो उनके पिता दक्ष ने शिव के प्रति अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया। यह सब सती सहन न कर सकीं और उसी यज्ञ कुंड में अपने शरीर को त्याग दिया।
जब सती के दाह कर लेने की बात शिव को पता चली तो वह बेहद क्रोधित हुए और उन्होंने अपने गण वीरभद्र को दक्ष का यज्ञ विध्वंस करने को भेजा। वीरभद्र ने यज्ञ विध्वंस कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया। इस घटना से समस्त देवलोक में हाहाकार मच गया। फिर सभी देवताओं की प्रार्थना और स्वयं ब्रह्मा जी से दक्ष को क्षमादान देने के आग्रह को भगवान शिव ने स्वीकार किया और दक्ष को पुनः जीवन दान दिया। भोलेनाथ ने एक बकरे के सिर को काटकर दक्ष के धड़ पर लगा दिया। इसके बाद दक्ष के आग्रह पर शिव ने यहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया और पूरे सावन माह यहीं पर रहने का वचन दिया।
तब से लेकर आज तक कहा जाता है कि सावन में पूरे महीने शिव कनखल में ही रहकर पूरी सृष्टि का संचालन करतें हैं। इसीलिए दूर दूर से श्रद्धालु यहाँ पर शिव का आर्शीवाद पाने और जलाभिषेक करने के लिए आतें हैं।
भोलेनाथ का आशीर्वाद पाने ज़रूर जाएं उनके ससुराल
दक्ष मंदिर में प्रातः 5 बजे और शाम को 8 बजे भोलेंटाह की आरती होती है। आरती से पहले शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है, जो देखने में बेहद आलौकिक होता है। इसके अलावा कनखल में दक्ष का मंदिर और यज्ञ कुंड आज भी देखी जा सकती है। प्रजापति मंदिर, सती कुंड और दक्ष महादेव मंदिर कनखल के विशेष आकर्षण हैं। यदि आप भी भोलेनाथ के भक्त हैं और उनका आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो एक बार ज़रूर हरिद्वार के समीप बसे भोलेनाथ के ससुराल “कनखल” जाएं।