जानिए प्रतिवर्ष क्यों और कैसे मनाया जाता है दही हांडी महोत्सव?

श्री-कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का आयोजन किया जाता है। यह बात तो सभी जानते हैं कि भगवान कृष्ण को माखन कितना पसंद था, इसी बात के चलते दही हांडी का आयोजन करने की शुरुआत हुई, लेकिन वजह और महत्व सिर्फ इतना ही नहीं है। आइये विस्तार से जानते हैं इस दिन का महत्व, इस वर्ष कब मनाया जा रहा है यह उत्सव, और आखिर कैसे हुई इस दिन की शुरुआत।

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सबसे पहले जानते हैं कि क्या है दही हांडी उत्सव ?

दही हांडी का यह उत्सव हिन्दू धर्म के सबसे नटखट भगवान कृष्ण के बालस्वरूप कान्हा को समर्पित है। दही हांडी उत्सव देशभर में बड़े ही उत्साह और जोरो शोरों के साथ जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाता है। यानि इस वर्ष दही हांडी उत्सव मंगलवार, अगस्त 31, 2021 को मनाया जायेगा। 

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जहाँ एक तरफ जन्माष्टमी, भगवान कृष्ण के जन्म के जन्मोत्सव की खुशियां मनाने का दिन है, वहीं दही हांडी का यह त्यौहार भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकी दिखाने वाला उत्सव है। इस दिन गोविंदाओं को टोली पिरामिड (एक-दूसरे पर चढ़कर इंसानी पहाड़ बनना) बनाकर ऊँचाई पर लटकी दही और माखन से भरी हांडी तोड़ते हैं।

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(हालाँकि इस वर्ष यह आयोजन कोरोना महामारी के चलते भव्य ढंग से और बहुत सी जगहों पर पूर्ण रूप से ही नहीं किया जा सकेगा)

दही हांडी समारोह मुहूर्त 

दही हांडी-मंगलवार, अगस्त 31, 2021 

कैसे हुई इस परंपरा की शुरुआत? 

नंदलाला, भगवान कृष्ण, अपने बचपन में कितने नटखट थे यह बात तो हम सभी जानते हैं। साथ ही उन्हें दही और माखन काफी प्रिय था। वो अक्सर अपने घर में या अन्य लोगों के घरों में चुपके से जाकर माखन और घी चुरा कर खा लिया करते थे। नटखट नंदलाला की इस बात से परेशान गाँव की औरतों ने घी और माखन को किसी ऊँचे स्थान पर लटकाना शुरू कर दिया।

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लेकिन कान्हा को भला घी और माखन खाने से कौन रोक सकता था? ऐसे में अब उन्होंने अब बड़े भाई बलराम या अपने घनिष्ठ मित्र सुदामा की मदद लेना शुरू किया। कृष्ण उनके कंधे पर चढ़कर माखन की मटकी तक पहुँचते थे, और उसे खाकर ही दम लेते थे। 

अगर किसी घर में माखन और ऊँचा रखा गया हो, तो वो अपने अन्य साथियों की मदद से उस तक पहुँचते थे लेकिन कुल मिलाकर माखन तो वो खा ही लेते थे। माना जाता है कि यहीं से दही हांडी की प्रक्रिया की शुरुआत हुई है। पहले तो यह महोत्सव महाराष्ट्र और गुजरात में ही मनाया जाता था लेकिन अब यह देश के लगभग सभी राज्यों में मनाया जाता है।

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ऐसे मनाया जाता है दही हांडी उत्सव 

दही हांडी मनाने के पीछे की मान्यता हमनें आपको पहले भी बता दी है कि भगवान कृष्ण का जन्म  भादव (भादों मास) महीने की अष्‍टमी को अर्द्धरात्रि में हुआ था। ऐसे में कान्हा के जन्म की ही ख़ुशी में अगले दिन गोकुल में दही हांडी का उत्सव मनाया गया। इसके बाद से इस परंपरा की शुरुआत हो गयी और लोग दही हांडी का जश्न मनाने लगे। 

इस दिन को पूरे भारतवर्ष में बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन जगह-जगह चौराहों पर दही और मक्‍खन से भरी मटकियां ऊँचाई पर लटकाई जाती हैं और फिर गोविंदा लोग पिरामिड बनाकर एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर इसे फोड़ते हैं। कई जगहों पर इसे बतौर प्रतियोगिता भी मनाया जाता है, और जीतने वाले को इनाम में कुछ धनराशि भी दी जाती है।

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दही हांडी उत्सव का असली रंग देखना है तो एक बार यहाँ ज़रूर जायें 

दही हांडी उत्सव का असली रंग महाराष्ट्र में देखने मिलता है। पुणे, जूहू इत्यादि जगहों पर इस त्यौहार का जो नज़ारा देखने को मिलता है वो शायद ही कहीं और देखने को मिले। पुणे में इस दिन को बहुत ही रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। 

इसके अलावा श्रीकृष्ण के जन्म स्थान मथुरा में भी इस दिन का बेहद ही खूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है। मथुरा को इस समय दुल्हन की तरह सजाया जाता है और फिर जन्माष्टमी के अगले दिन इस उत्सव को बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

वृन्दवन भी श्री कृष्ण भक्तों के लिए एक बहुत पावन स्थल है, ऐसे में इस त्यौहार की खूबसूरती यहाँ भी देखने लायक होती है। वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण की कई मंदिरें हैं। इन मंदिरों की तरफ़ से लगभग पूरे वृन्दावन में दही हांडी का पर्व आयोजित किया जाता है।

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