कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठी माता की पूजा होती है। इस साल 31 अक्टूबर से छठ पूजा की शुरुआत हुई, जिसमें 31 अक्टूबर को नहाय खाय, 1 नवंबर को खरना, 2 नवंबर को संध्या अर्घ्य और 3 नवंबर को पारणा होगा। छठ पूजा का पर्व दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। इसमें विशेष तौर पर सूर्य देवता और छठ माता की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इनकी पूजा से संतान प्राप्ति, संतान की रक्षा और सुख समृद्धि का वरदान मिलता है। बात करें छठ मैया कि तो रिश्ते में वे सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं। चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व मुख्य तौर पर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि अब इन क्षेत्रों के लोगों के देश के अन्य हिस्सों में भी रहते हैं, जिस वजह से दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े महानगरों में भी छठ पूजा की धूम देखने को मिल जाती है। आज सूर्यास्त के समय पहला अर्घ्य दिया जायेगा। तो चलिए इस लेख में आपको बताते हैं कि आज किस मुहूर्त में आप संध्या अर्घ्य दे सकते हैं –
संध्या अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त
इस साल 02 नवंबर, शनिवार यानि आज डूबते सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जायेगा। अगर संध्या अर्घ्य देने के शुभ मुहूर्त की बात करें, तो आज सूर्यास्त का समय लगभग शाम 05 बजकर 35 मिनट पर है। इसीलिए व्रती इस समय के आस-पास सूर्य देव को अर्घ्य दे सकती हैं।
ऐसे करते हैं आज के दिन पूजा
छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे “संध्या अर्घ्य” के नाम से जाना जाता है, यह चैत्र या कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारियाँ करते हैं। पूजा के लिए लोग विशेष प्रसाद जैसे कि ठेकुआ, चावल के लड्डू जिसे कचवनिया भी कहा जाता है, बनाते हैं। छठ पूजा के लिए बांस की बनी एक टोकरी(दउरा) ली जाती है, जिसमें पूजा के प्रसाद, फल, फूल, आदि अच्छे से सजा दिया जाता है। एक सूप में नारियल,पांच प्रकार के फल,और पूजा का अन्य सामान भी दउरा में रखा जाता है। सूर्यास्त से थोड़ी देर पहले लोग अपने पूरे परिवार के साथ नदी के किनारे छठ घाट जाते हैं। छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में महिलाएं छठ गीत भी गाती हैं।
सूर्यास्त से थोड़ी देर पहले व्रती घुटने भर पानी में सूर्य देव की ओर मुख करके खड़े हो जाते है, और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करते है। अर्घ्य देते समय सूर्य देव को दूध और जल चढ़ाया जाता है। उसके बाद लोग सारा सामान लेकर घर आ जाते है। घाट से लौटने के बाद रात्रि में छठ माता के गीत गाते हैं।
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