क्यों मनाया जाता है छठ का त्योहार, क्या है इस पूजा का महत्व, जानें सही तिथि

क्यों मनाया जाता है छठ का त्योहार, क्या है इस पूजा का महत्व, जानें सही तिथि

सनातन धर्म में हर त्योहार का अपना विशेष महत्व है और इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण त्योहार छठ पूजा है, जो हर साल अधिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से छठ के महापर्व की शुरुआत होती है। इसे ‘सूर्य षष्ठी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस ख़ास अवसर पर छठी मैया की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। छठ पूजा के दौरान 4 दिन सूर्य देव की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। पूजा-पाठ के दौरान पवित्रता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। यह पर्व पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

तो आइए आगे बढ़ते हैं और एस्ट्रोसेज के इस ब्लॉग के माध्यम से जानते हैं छठ पूजा की तिथि, मुहूर्त और महत्व के बारे में।

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छठ पूजा 2024: तिथि और शुभ मुहूर्त

छठ पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, जो अक्टूबर या नवंबर महीने के बीच ही आती है। इस साल छठ का महापर्व की शुरुआत 05 नवंबर 2024 को दिन मंगलवार से नहाय-खाए से शुरू होकर 08 नवंबर 2024 दिन शुक्रवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होगा। 

सूर्य को अर्घ्य देने का समय

7 नवंबर (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय : शाम 05 बजकर 31 मिनट 

8 नवंबर (उषा अर्घ्य) सूर्योदय का समय : सुबह 06 बजकर 38 मिनट 

छठ पूजा कैलेंडर 2024

छठ पूजा का पहला दिन: नहाय-खाय, 05 नवंबर, दिन मंगलवार

छठ पूजा का दूसरा दिन: लोहंडा और खरना, 06 नवंबर, दिन बुधवार

छठ पूजा का तीसरा दिन: छठ पूजा, संध्या अर्घ्य, 07 नवंबर, दिन गुरुवार

छठ पूजा का चौथा दिन: उगते सूर्य को अर्घ्य, पारण, 08 नवंबर, दिन शुक्रवार

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छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा सूर्यदेव और छठी मैया की उपासना का एक प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और नेपाल के कुछ हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। छठ पूजा एक या दो नहीं, बल्कि पूरे 4 दिनों तक चलने वाला त्योहार है और इस दौरान महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखती हैं। 

इसके अलावा, संतान प्राप्ति की कामना से भी छठ का व्रत करना फलदायी माना गया है। छठ का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है और इसकी शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है। इस दौरान ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और फिर उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत पारण होता है। इस व्रत का पालन पूरा परिवार एक साथ मिलकर करता है। यह परिवार और समाज के बीच आपसी जुड़ाव और सद्भाव को बढ़ाता है। इस पर्व में स्नेह, प्रेम, और सहयोग की भावना प्रबल होती है।

छठ के चार दिनों का महत्व

छठ पूजा 2024 चार दिनों तक चलने वाला पर्व है, जिसमें हर दिन का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। ये चार दिन पूरी तरह से शुद्धता, तपस्या और भक्ति के लिए समर्पित होते हैं। आइए जानते हैं छठ पूजा के चार दिनों का महत्व।

पहला दिन: नहाय-खाय 

छठ पूजा का पहला दिन ‘नहाय-खाय’ कहलाता है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं पवित्रता का पालन करती हुए पवित्र नदी या जलाशय में स्नान करता हैं। इसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन घर की सफाई की जाती है और भोजन में सिर्फ शुद्ध। भोजन में कद्दू की सब्जी, चने की दाल और चावल का विशेष महत्व होता है। 

दूसरा दिन: खरना

खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है, जिसे अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रतधारी पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और सूर्यास्त के बाद प्रसाद बनाकर उपवास तोड़ते हैं। प्रसाद के रूप में गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन किया जाता है। इसके बाद व्रतधारी अगले 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत शुरू करते हैं।

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य

छठ के तीसरे दिन संध्या अर्घ्य का आयोजन किया जाता है, जिसमें व्रतधारी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह पूजा शाम के समय घाट या नदी में की जाती है। इस दिन व्रतधारी व्रत रखकर संध्या समय सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। पूजा के लिए बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल, नारियल, गन्ना, और अन्य सामग्री रखी जाती है। परिवार और समाज के लोग एक साथ घाट पर जाकर सूर्य को नमन करते हैं। 

चौथा दिन: उषा अर्घ्य

छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने का होता है। इसे ‘उषा अर्घ्य’ कहा जाता है। इस दिन सुबह-सुबह व्रतधारी नदी या जलाशय पर जाकर सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य अर्पित करते हैं। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रतधारी अपना व्रत तोड़ते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं।

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छठ पूजा की सामग्री

छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की आराधना की जाती है। इस दिन पूजा पूरे विधि-विधान से करनी चाहिए। साथ ही, हर सामग्री का भी विशेष ध्यान देना चाहिए। आइए जानते हैं छठ पूजा के दौरान कौन सी सामग्री आवश्यकता होती है।

बांस की टोकरी यानी सूप: इसमें पूजा की सामग्री रखी जाती है।

ठेकुआ: गेहूं के आटे और गुड़ से बना विशेष प्रसाद।

फलों का प्रसाद: केला, नारियल, गन्ना, अनार, सेब, नींबू, और अन्य मौसमी फल।

गंगाजल: स्नान और सूर्य को अर्घ्य देने के लिए।

नारियल: जल से भरा नारियल पूजा के लिए आवश्यक है।

दीपक: मिट्टी का दीपक और शुद्ध घी।

धूप और अगरबत्ती: सूर्य देव की आरती और पूजन के लिए।

सिंदूर और हल्दी: सुहागन स्त्रियों के लिए विशेष पूजन सामग्री।

कपूर: पूजा में आरती के लिए।

छठ पूजा के नियम

छठ पूजा के नियम बहुत ही कठिन और पवित्र होते हैं। इन नियमों का पालन करना आवश्यक माना जाता है क्योंकि इस पूजा में शुद्धता, संयम और अनुशासन का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं छठ पूजा के नियमों के बारे में:

  • व्रतधारी को पूरे व्रत के दौरान शुद्धता बनाए रखनी चाहिए। स्नान करने के बाद शुद्ध कपड़े पहनना अनिवार्य है। भोजन से लेकर पूजा तक हर काम में शुद्धता का ध्यान रखना आवश्यक होता है।
  • छठ पूजा के दौरान केवल शुद्ध सात्विक भोजन ही किया जाता है। प्याज, लहसुन और मांसाहारी चीज़ों का सेवन वर्जित होता है।
  • व्रती के द्वारा बनाए गए भोजन में गंगाजल का उपयोग किया जाता है और इसे मिट्टी या कांसे के बर्तनों में पकाया जाता है।
  • छठ पूजा का सबसे कठिन नियम निर्जला व्रत है। व्रत रखने वाली महिला खरना के बाद 36 घंटे तक बिना अन्न और जल ग्रहण किए उपवास रखती हैं।
  • यह व्रत पूरे तप, श्रद्धा और भक्ति से किया जाता है, जिसमें किसी प्रकार का जल या भोजन नहीं लिया जाता।
  • पूजा की सामग्री जैसे प्रसाद, फल, और अर्घ्य की सामग्री बांस की टोकरी (सूप) में रखी जाती है। यह टोकरी पूजा में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
  • दीपक और अर्घ्य देने के लिए उपयोग किए जाने वाले बर्तन भी प्राकृतिक होते हैं, जैसे कि मिट्टी के दीपक।
  • व्रतधारी को नदी, तालाब, या किसी स्वच्छ जलाशय में स्नान करना अनिवार्य होता है। यह स्नान शरीर और मन की शुद्धि के लिए किया जाता है।
  • संध्या और उषा अर्घ्य के समय भी जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
  • इस दिन पूजा करते समय किसी भी तरह की जल्दबाजी या लापरवाही न करें। पूजा के सभी चरणों में ध्यान और संयम आवश्यक होता है।
  • व्रती को पूजा के दौरान चमड़े की वस्तुओं से दूर रहना होता है क्योंकि इसे अशुद्ध माना जाता है।
  • प्रसाद बनाने में उपयोग किए जाने वाले बर्तन और चूल्हा भी शुद्ध होना चाहिए और इसे लकड़ी या उपले से जलाया जाता है।
  • इस दिन व्रत करने वाले जातक को पलंग या चारपाई पर नहीं सोना चाहिए।
  • सूर्य को जल देते समय स्टील या प्लास्टिक के बर्तन का इस्तेमाल करना भी वर्जित होता है।

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छठ पूजा की कथा

छठ पर्व को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं, जो इस प्रकार है।

पहली कथा 

प्राचीन समय में सूर्यवंशी राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए अनेक धार्मिक अनुष्ठान किए, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं हो रही थी। इस कारण राजा बहुत दुखी रहने लगे थे। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने महर्षि कश्यप के निर्देशानुसार एक यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के परिणामस्वरूप रानी मालिनी गर्भवती हुईं, लेकिन जब बच्चे का जन्म हुआ, तो वह मृत पैदा हुआ। इससे राजा और रानी को अत्यधिक दुख हुआ और राजा ने आत्महत्या करने का निर्णय किया।

तभी भगवान की कृपा से देवी षष्ठी प्रकट हुईं, जिन्हें छठी मैया के नाम से भी जाना जाता है। देवी ने राजा से कहा कि यदि वह उनकी पूजा करेंगे और श्रद्धा के साथ व्रत करेंगे, तो उन्हें संतान की प्राप्ति होगी। देवी की आज्ञा का पालन करते हुए राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी ने छठ व्रत रखा। इसके परिणामस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। 

दूसरी कथा

छठ पूजा की एक और प्रसिद्ध कथा महाभारत काल से जुड़ी है। जब पांडव अपना राजपाट हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। वह सूर्य देव की उपासना करके अपने पति और परिवार की समृद्धि और पुनः राजपाट प्राप्त करने के लिए व्रत करने लगीं। उनकी भक्ति और तपस्या के परिणामस्वरूप पांडवों को खोया हुआ राजपाट और सुख-समृद्धि प्राप्त हुई।

तीसरी कथा

छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव की बहन देवी षष्ठी की उपासना इस पर्व में की जाती है। छठी मैया को संतान की रक्षा करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है, और इन्हें विशेष रूप से नवजात शिशुओं और माताओं की रक्षा के लिए पूजा जाता है। यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और भक्ति से छठी मैया और सूर्य देव की उपासना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

चौथी कथा

महाभारत के अनुसार, कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों तक जल में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते थे। सूर्य की कृपा से कर्ण महान योद्धा बने और उन्हें अत्यधिक शक्ति और पराक्रम प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि कर्ण ने ही सबसे पहले सूर्य देव की आराधना के रूप में छठ पूजा की शुरुआत की थी। 

छठ पूजा 2024: राशि अनुसार आसान उपाय

छठ पूजा के दौरान राशि अनुसार कुछ विशेष उपाय करने से अधिक लाभ होता है। यहां राशि अनुसार छठ पूजा के विशेष उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाकर सूर्य देव और छठी मैया की कृपा प्राप्त की जा सकती है:

मेष राशि

मेष राशि के जातक लाल रंग के वस्त्र पहनकर सूर्य देव को लाल चंदन से अर्घ्य दें। यह उपाय शुभ फलदायी होगा और मानसिक शांति प्राप्त होगी।

वृषभ राशि

वृषभ राशि के लोग सफेद रंग का वस्त्र धारण करें और गाय के दूध से सूर्य को अर्घ्य दें। यह उपाय परिवार में सुख-समृद्धि लाएगा और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से राहत मिलेगी।

मिथुन राशि

हरे रंग के वस्त्र धारण करें और सूर्य को गंगाजल में दूब डालकर अर्घ्य दें। यह उपाय विद्या, बुद्धि और व्यापार में सफलता देगा।

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कर्क राशि

कर्क राशि के जातक चांदी के बर्तन में जल लेकर सूर्य को अर्घ्य दें और सफेद वस्त्र पहनें। यह उपाय पारिवारिक सुख-शांति बनाए रखेगा।

सिंह राशि

सिंह राशि के जातक को केसर मिश्रित जल से सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए और सुनहरे रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। इससे समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

कन्या राशि

कन्या राशि के लोग हरे या हल्के रंग के वस्त्र पहनें और सूर्य को तांबे के बर्तन में जल देकर अर्घ्य दें। यह उपाय आर्थिक उन्नति और स्वास्थ्य लाभ दिलाएगा।

तुला राशि

तुला राशि के जातक नीले रंग के वस्त्र पहनें और सूर्य देव को शहद मिलाकर अर्घ्य दें। इससे वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी और मन की शांति मिलेगी।

वृश्चिक राशि

वृश्चिक राशि के लोग लाल वस्त्र पहनें और गुड़ मिले जल से सूर्य को अर्घ्य दें। यह उपाय आर्थिक संकट से छुटकारा दिलाएगा।

धनु राशि

इस राशि के जातक छठ पूजा के दौरान भगवान सूर्य को गन्ना अर्पित करें। ऐसा करने से आपकी संतान शत्रुओं पर विजय प्राप्ति करेगी।।

मकर राशि

मकर राशि के जातक भी छठ पूजा के दौरान भगवान सूर्य देव को कुमकुम डाल कर अर्घ्य देना चाहिए। ऐसा करने से संतान के जीवन में सुख और वैभव आएगा व आपकी संतान को सफलता की प्राप्ति होगी।

कुंभ राशि

कुंभ राशि के जातक छठ पूजा के दौरान भगवान सूर्य व छठी मैया को शरीफे का फल अर्पित करें। व्यापार में अपार सफलता प्राप्त होगी।

मीन राशि

इस राशि के जातक इस पवित्र दिन छठी मैया व सूर्य देवता को सिंघाड़े का फल अर्पित करें। ऐसा करने से करियर में तेज़ी से बढ़ोतरी देखने को मिलेगा।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1- 2024 में छठ पूजा कब है?

पंचांग के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है। वहीं, इस महापर्व का समापन सप्तमी तिथि पर होता है। ऐसे में यह त्योहार 05 नवंबर से लेकर 08 नवंबर तक चलेगा।

2- छठ पूजा क्यों मनाई जाती है?

कालांतर से पुत्र प्राप्ति हेतु छठ पूजा की जाती है।

3- छठ माता किसकी पुत्री थी?

पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठ मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और भगवान सूर्य की बहन हैं। षष्ठी देवी यानी छठ मैया संतान प्राप्ति की देवी हैं।

4- छठ माता किसका अवतार है?

देवी कात्यायनी छठवें दिन की देवी हैं, इसलिए कात्यायनी माता ही छठी माता का स्वरूप हैं।