देवशयनी एकादशी के साथ ही सनातन धर्म में चातुर्मास लग जाता है। चातुर्मास हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण अवधि मानी गयी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस चार महीने की अवधि के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि के संचालन का सारा कार्यभार भगवान शिव को सौंप कर योग निद्रा में चले जाते हैं और अब श्री हरि विष्णु कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के दिन वापस सृष्टि की सत्ता संभालेंगे। ऐसे में चातुर्मास की इस विशेष अवधि में भगवान विष्णु की गैरमौजूदगी की वजह से सभी तरह के मांगलिक कार्य जैसे कि विवाह, उपनयन, नामकरण इत्यादि पूरी तरह से वर्जित होते हैं। हालांकि इस दौरान किए जाने वाले दान-पुण्य, धर्म-कर्म और पूजा-पाठ का फल आम दिनों के मुक़ाबले कई गुना ज्यादा प्राप्त होता है।
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इसके अलावा चातुर्मास के कुछ जरूरी नियम भी हैं जिनका अगर पालन न किया जाये तो जातकों को कष्ट भोगना पड़ता है। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में पांच ऐसे कार्य बताने जा रहे हैं जिनका अगर इस चातुर्मास की अवधि में रोजाना पालन किया जाये तो जातकों की सारी मनोकामना पूर्ण होती है।
चातुर्मास में ऐसे पूर्ण होगी मनोकामना
- चातुर्मास को सनातन धर्म में आत्म संयम काल कहा जाता है। इस दौरान मनुष्य को किसी साधु-सन्यासी के तरह जीवन व्यतीत करना चाहिए। सनातन धर्म के अनुयायी इस दौरान सूर्योदय से पूर्व उठें व रोजाना स्नान करें। चातुर्मास की अवधि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। कम बोलें। चातुर्मास में जातकों को भोजन भी केवल एक पहर ही करना चाहिए।
- चातुर्मास में खानपान के लिए भी विशेष नियम हैं। इस दौरान जातकों को तले हुए भोजन से परहेज करना चाहिए। दूध, दही, शक्कर, मसालेदार भोजन, हरी साग व सब्जियां, बैंगन इत्यादि खाना निषेध माना गया है। इसके अलावा चातुर्मास में तामसिक भोजन और मांस व मदिरा का सेवन भी पूरी तरह से वर्जित है।
- चातुर्मास के दौरान हर रोज सुबह में स्नान कर साफ वस्त्र धारण करने के बाद भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दौरान विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करने से जातकों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। चातुर्मास में पूजा-पाठ व धर्म-कर्म का कई गुना फल प्राप्त होता है।
- सनातन धर्म में दान का विशेष महत्व है। खासकर किसी विशेष मौके पर वस्तुओं का दान करना और भी शुभ माना जाता है। चातुर्मास में भी दान का प्रावधान है। इस अवधि में मुख्यतः पांच तरह के दान करने की परंपरा है। चातुर्मास में पशु-पक्षी व गरीब और जरूरतमंद लोगों को भोजन अवश्य कराएं। इस अवधि में गरीब व जरूरतमंद लोगों को वस्त्र दान में दें। मंदिर या फिर साफ व बहते हुए जल के स्रोत में जलता हुआ दीपक प्रवाहित करें। किसी मंदिर में सेवा करें। साथ ही चातुर्मास की अवधि में किसी पात्र में तेल डालकर उसमें अपना चेहरा देखें और फिर इसे किसी शनि मंदिर में दान कर दें।
- चातुर्मास की अवधि में ध्यान व योग अवश्य करना चाहिए। प्रतिदिन सुबह उठकर योग करें और खाली समय में ध्यान करें। विशेष फल की प्राप्ति होगी।
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