हिंदू धर्म में कई त्यौहार प्रमुख तौर पर मनाए जाते हैं जैसे नवरात्रि, होली, दिवाली, दुर्गा पूजा, इत्यादि। इन्हीं में से एक त्यौहार है छठ पूजा। विशेष तौर पर छठ पूजा बिहार में बेहद ही धूमधाम से मनाई जाती है।
बिहार में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। छठ पूजा में मुख्य रूप से भगवान सूर्य की पूजा का विधान बताया गया है।
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छठ पूजा 2020, 20 नवंबर
20 नवंबर (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय :17 बजकर 25 मिनट 26 सेकंड
21 नवंबर (उषा अर्घ्य) सूर्योदय का समय :06 बजकर 48 मिनट 52 सेकंड
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्य देव की बहन का दर्जा दिया गया गया है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो कोई भी भगवान सूर्य की पूजा करता है, उनका विधि-विधान से व्रत करता है उससे छठ मैया अवश्य प्रसन्न होती हैं और उनके घर परिवार में सुख शांति और धन धान्य का आशीर्वाद देती हैं।
कब मनाई जाती है छठ पूजा?
सूर्य देव की पूजा-आराधना का यह त्यौहार साल में दो बार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल षष्ठी को जिसे चैती छठ के नाम से जानते हैं और दूसरा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को जिसको मुख्य रूप से छठ पूजा के नाम से ही जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाए जाने वाली छठ को देश भर में ज्यादा जाना जाता है।
मुख्य रूप से लोग इसे छठ को मनाते हैं। छठ का यह त्यौहार कुल 4 दिनों तक चलने वाला त्यौहार है। छठ पर्व को कई जगह पर डाला छठ, छठी मैया, छठ, छठ पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा इत्यादि अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
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छठ पूजा महत्व
छठ पूजा करने का या सूर्य देव के लिए यह उपवास रखने का सबका अपना-अपना अलग-अलग कारण होता है। मुख्य रूप से छठ पूजा या सूर्यदेव की उपासना घर परिवार में खुशी,संपन्नता के लिए की जाती है। माना जाता है कि जो कोई भी इंसान सूर्यदेव की पूजा करता है उसकी सेहत हमेशा अच्छी बनी रहती है।
इसके अलावा सूर्य देव की कृपा से इंसान के घर में धन का भंडार हमेशा बना रहता है। छठ माई संतान सुख भी प्रदान करने वाली मानी गई है। जिस किसी भी दंपत्ति को सूर्य जितनी श्रेष्ठ संतान की चाह होती है वह इस दिन का उपवास अवश्य रखते हैं। छठ पूजा का यह पर्व मनोकामना की पूर्ति के लिए जाना जाता है।
जहाँ छठ पूजा के पहले अर्घ्य से आँखों की रोशनी बढ़ती है, लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है और जीवन में आर्थिक संपन्नता भी प्राप्त होती है, वहीं छठ के अंतिम अर्घ्य से संतान संबंधी समस्याएं दूर होती हैं, पिता पुत्र के संबंध अच्छे होते हैं, हृदय और हड्डियों की समस्या में सुधार होता है।
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जानिए कौन है देवी छट्ठी और कैसे हुई इन की उत्पत्ति?
छठ माता को सूर्य देव की बहन बताया गया है। हालांकि छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। देव-सेना अपना परिचय देते हुए बताती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृत्ति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई है इसी वजह से उन्हें षष्ठी (यानी छह) कहा जाता है।
इसके अलावा देवी कहती हैं कि अगर किसी दंपत्ति को संतान प्राप्ति की कामना करनी है तो वह मेरी विधिवत पूजा करें। ऐसा करने से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। इसलिए यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को किए जाने का विधान बताया गया है। पौराणिक कथाओं में छठ व्रत के बारे में कहा जाता है कि रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या आने के बाद माता सीता और भगवान राम ने मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव की पूजा की थी।
इसके अलावा महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पहले सूर्य की पूजा से पुत्र की प्राप्ति को भी जोड़ कर देखा और बताया गया है। सूर्य देव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था। माना जाता है कि वह भी सूर्यदेव के उपासक थे। जल में रहकर कर्ण सूर्यदेव की पूजा करते थे। इसी वजह से सूर्य की असीम कृपा उन पर हमेशा बनी रही। सूर्य देव की कृपा पाने के लिए आज भी लोग कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य पूजा करते हैं।
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कैसे मनाते हैं छठ का त्यौहार?
छठ का यह पर्व कुल 4 दिनों तक मनाया जाता है। छठ का पहला दिन नहाए खाए के साथ शुरू होता है। छठ पूजा का त्यौहार बेशक ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाए खाए के साथ की कर दी जाती है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस व्रती लोग स्नान आदि करके नए कपड़े पहनते हैं और शाकाहारी शुद्ध भोजन करते हैं। एक बार जब व्रती लोग खाना खा लेते हैं उसके बाद ही घर के अन्य सदस्य खाना खा सकते हैं।
इसके बाद आता है छठ पूजा का दूसरा दिन खरना, कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम के समय व्रती लोग भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन अन्न और जल ग्रहण किए बिना लोग पूजन उपवास रखते हैं। इसके बाद शाम को चावल और गुड़ से खीर बनाई जाती है। इस दिन नमक और चीनी का इस्तेमाल बिल्कुल वर्जित होता है। इसके अलावा चावल का पिठ्ठा और घी लगी रोटी भी बनाई जाती है और इसे प्रसाद के रूप में अन्य लोगों में वितरित किया जाता है।
षष्ठी के दिन मनाते हैं छठ पूजा। इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। छठ पूजा का मुख्य प्रसाद होता है ठेकुआ। कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहते हैं। इस दिन कई जगह पर चावल के लड्डू भी बनाए जाते हैं। इसके बाद सभी बनाए गए प्रसाद और फल को एक बांस की टोकरी में सजाए जाते हैं। टोकरी की पूजा की जाती है और सभी व्रती सूर्य को अर्घ देने के लिए किसी तालाब, नदियां, घाट, पर जाते हैं। वहां स्नान करके डूबते हुए सूर्य को आराधना की जाती है और अर्घ्य दिया जाता है।
इसके बाद छठ पूजा का चौथा दिन यानी सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी अर्घ्य देने की स्नान करने की और सूर्य की पूजा करने की प्रक्रिया को दोबारा दोहराया जाता है। इसके बाद इस दिन विधिवत पूजा करके प्रसाद बांटा जाता है। जिससे छठ पूजा का समापन होता है।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार छठ पूजा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार छठी मइया को खुश करना बेहद महत्वपूर्ण और आसान भी होता है। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए इस दिन उनकी विधिवत पूजा का विधान तो मानना ही होता है साथ ही इस दिन की पूजा में वस्तुएं भी काफी सोच-समझकर इस्तेमाल करनी होती है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा में कुछ बेहद ही आसान और सटीक चीज़ें इस्तेमाल करने से छट्ठी मैया की प्रसन्नता अवश्य हासिल की जा सकती है। तो चलिए आपको बताते हैं कि छठी मैया की अर्चना में उपयोग होने वाली वो चीज़ें जिनके बिना इनकी पूजा अधूरी मानी जाती है।
माना जाता है छठ पूजा में बांस से बनी टोकरी का विशेष महत्व होता है। इसी में छठ पूजा का सारा सामान रखकर पूजा स्थल तक लाया जाना चाहिए और छठी मइया को भेंट किया जाना चाहिए इसके बिना छठ पर्व की पूजा अधूरी मानी जाती है।
इसके अलावा पूजा में इस्तेमाल होने वाली दूसरी महत्वपूर्ण चीज़ है ठेकुआ। इसके अलावा गन्ना, केले का प्रसाद, नारियल इत्यादि भी पूजा में अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।
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