होली के बाद देश भर में चैत्र नवरात्र की तैयारी शुरू हो चुकी हैं। माता के भक्तों को नवरात्र का बेसब्री से इंतज़ार होता है। इस साल यानी कि साल 2021 में चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से 21 अप्रैल तक चलने वाला है। माना जाता है कि माँ भगवती की सवारी शेर यानी कि सिंह है लेकिन हर साल नवरात्रि के दौरान माता किसी अलग सवारी पर आती हैं। माता की अलग अलग सवारियों का देश पर और देश के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस लेख में हम आपको यह बताएंगे कि इस बार चैत्र नवरात्रि में माता किस सवारी पर सवार होकर आ रही हैं और इसका पता कैसे लगाया जाता है।
नवरात्रि घटस्थापना तिथि : 13 अप्रैल, 2021
नवरात्रि घटस्थापना दिन : मंगलवार
नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त : 05:58:27 से 10:14:09 तक
अवधि : 04 घंटे 15 मिनट
कैसे पता चलता है माता की सवारी क्या है?
माता भगवती की सवारी उनके आगमन यानी कि नवरात्रि के प्रथम दिन से निर्धारित होती है। देवीभागवत पुराण में एक श्लोक है जो माता के आगमन के दिन के अनुसार यह जानकारी देता है कि माता की सवारी इस बार क्या रहने वाली है। श्लोक है :
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
इस श्लोक के अनुसार माता यदि सोमवार या फिर रविवार के दिन आ रही हैं तो इसका मतलब है कि माता इस बार हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। अगर माता शनिवार या मंगलवार के दिन आती हैं तो इसका मतलब है कि माता इस बार घोड़े पर सवार हैं। यदि माता का आगमन गुरुवार या शुक्रवार के दिन हो रहा है तो इसका मतलब है कि माता डोली पर सवार है और यदि बुधवार के दिन नवरात्रि की पहली तिथि पड़ती है तो इसका मतलब है कि माता नाव पर सवार हैं।
हर सवारी का देश पर पड़ता है अलग प्रभाव
माता की हर सवारी का देश और देश के लोगों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। जैसे कि माता अगर हाथी से आती हैं तो देश में ज्यादा बारिश होती है। यदि वे घोड़े से आएं तो युद्ध की स्थिति बनती है। माता अगर डोली से आती हैं तो देश के लोगों के अंदर किसी महामारी का भय पनपता है। वहीं अगर माता नाव से आती हैं तो इससे मानव कल्याण होता है और सब की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
साल 2021 के चैत्र नवरात्रि में माता की सवारी क्या है?
इस साल चैत्र नवरात्रि की प्रथम तिथि 13 अप्रैल है और दिन मंगलवार है। तो ऐसे में ऊपर बताये गए श्लोक के अनुसार माता इस बार घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं। इसे छत्रभंगे स्तुरंगम कहा जाता है। माने कि जब माता घोड़े पर आती हैं तो इसे देश के लिए शुभ नहीं माना जाता है। इस स्थिति में सत्ता में उथल-पुथल होती है और शासन परिवर्तन के आसार रहते हैं। इसके अलावा पड़ोसी देश से युद्ध की स्थिति बनती है और देश में आंधी-तूफ़ान आते हैं।
माता के जाने की भी सवारी होती है अलग
जिस तरह माता के आते वक़्त उनकी सवारियां दिन के अनुसार अलग-अलग होती हैं, ठीक उसी तरह दिन के अनुसार माता के जाने की सवारी भी अलग-अलग होती हैं। इसको लेकर भी देवीभागवत पुराण में एक श्लोक मौजूद है। श्लोक है :
शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा।
शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा।
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥
श्लोक का अर्थ है कि यदि माता रविवार या सोमवार के दिन विदा हो रही हैं तो इसका मतलब है कि माता भैंस पर सवार होकर जा रही हैं। यदि माता मंगलवार या शनिवार को जा रही हैं तो इसका मतलब कि जाते वक़्त उनकी सवारी मुर्गा रहने वाला है। बुधवार और शुक्रवार को यदि माता विदा हों तो इसका अर्थ है कि वे इस बार हाथी पर सवार हो कर वापस जा रही हैं और यदि माता गुरुवार को विदा हों तो उनकी सवारी मनुष्य मानी जाती है। आपको बता दें कि इस बार यानी कि साल 2021 के चैत्र नवरात्रि में माता बुधवार के दिन वापस जा रही हैं, इसका मतलब है कि इस बार वापस जाते वक़्त माता की सवारी हाथी रहने वाली है।
विदाई के वक़्त माता की सवारी के अनुसार फल
भैंस – यह रोग और शोक का सूचक है।
मुर्गा- यह दुःख और कष्ट का सूचक है।
हाथी – यह ज्यादा बारिश का सूचक है।
मनुष्य – यह सुख और शान्ति का सूचक है।
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