भजन का इतिहास
भजनों का इतिहास वैदिक काल से आज तक अधम धारा के रुप में प्रवाहित हो रहा है। भजन के इतिहास में सामवेद के श्लोक और ऋचाओं का सामगान करना, वेदगान के माध्यम से अपने इष्ट का स्मरण करना भजनों के प्रारंभिक इतिहास में शामिल है।
भजनों के इतिहास में “नवधा भक्ति” का विशेष स्थान है। प्राचीन शास्त्रों में भक्ति के नौ प्रकार बताये गये हैं। जिसे “नवधा भक्ति” कहा जाता है।
- श्रवण (परीक्षित)
- कीर्तन (शुक्रदेव)
- स्मरण (प्रहलाद)
- पादसेवन (लक्ष्मी)
- अर्चन (पृथुराजा)
- वंदन (अक्रूर)
- दास्य (हनुमान)
- सख्य (अर्जुन)
- आत्मनिवेदन (राजाबलि)
- श्रवण- ईश्वर की शक्ति, स्रोत, कथा, महत्व एवं लीला को परम् श्रद्धा सहित मन से निरंतर श्रवण करना।
- कीर्तन- ईश्वर के चरित्र, नाम, पराक्रम, गुण का आनंद एवं उत्साह सहित भक्तिमय भजन कीर्तन करना।
- स्मरण- अपने मन मस्तिष्क में निरंतर अनन्य भाव से परम् ब्रह्म का स्मरण करना एवं महात्म्य और शक्ति का स्मरण करके उसके अधीन होना।
- पादसेवन- भगवान के श्री चरणों में आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्व समझना।
- अर्चन- मन, वचन और कर्म के द्वारा पवित्र सामग्री के साथ भगवान के चरणों में अर्पित करना।
- वंदन- ईश्वर की मूर्ति अथवा ईश्वर के अंश रुप में व्याप्त भक्तिजन, संतजन, आचार्, गुरुजन, माता-पिता इत्यादि को परम आदर सत्कार सहित पवित्र मन भाव से भक्ति करना।
- दास्य- ईश्वर या भगवान को अपना स्वामी और अपने आप को ईश्वर का दास समझकर परम् श्रद्धा के साथ सेवा करना।
- सख्य- भगवान को अपना परम सखा समझकर अपने आप का सर्वस्व समर्पित करक तथा सच्चे मन भाव से निवेदन करना।
- आत्मनिवेदन- ईश्वर के श्री चरणों में अपने आप को सदा के लिए समर्पित करना, और अपनी कुछ भी स्वतंत्रता न रखना। यह भक्ति की सबसे बड़ी उत्तम स्थिति मानी गयी है।
भजनों का इतिहास
अनादि काल में गन्धर्व, देवताओं के यहां भावसंगीत गान करते थे। आधुनिक काल में भजनों को दो भाग में देखा गया।
- निर्गुण भक्ति शाखा
- सगुण भक्ति शाखा
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निर्गुण भक्ति शाखा
निर्गुण भक्ति शाखा के प्रवर्तक काशी में 15 वीं शताब्दी में जन्मे भारतीय रहस्यवादी संत कबीर दास थे। वे हिंदी साहित्य के भक्ति कालीन युग में ज्ञानाश्रयी- निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने भक्ति आन्दोलन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। इनकी रचनाएं- शाखी, सबद, रमैनी।
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सगुण भक्ति शाखा
भजनों के इतिहास में सगुण भक्ति शाखा में सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई का नाम विशेष रुप से आता है।
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सूरदास
भजनों के इतिहास में सूरदास जी का प्रमुख स्थान है। 1583 में जन्म ब्रजभाषा के महाकवि सूरदास का प्रमुख संग्रह श्री कृष्ण माधुरी, सूरसागर, सूरसूरावली, साहित्य लहरी, नलदमयंती, ब्याहलो हैं।
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तुलसी दास
भजनों के इतिहास में सगुण भक्ति शाखा के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी का विशेष स्थान है। 1589 उत्तर प्रदेश में जन्मे गोस्वामी तुलसीदास का मन राम भक्ति से जागृत हुआ। तुलीसदास द्वारा रचित रचनाएं- राम चरित्र मानस, विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य, सन्दीपनी, जानकी मंगल इत्यादि हैं।
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मीराबाई
1498 के आसपास जन्मी, कृष्ण भक्ति शाखा की मीराबाई प्रमुख कवयित्री हुयीं। भक्ति के रंग में रंगकर मीराबाई ने स्फूट पदों की रचना की। संग्रह- बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, रामगोविन्द, राग सोरठ इत्यादि।
इस प्रकार भजनों के इतिहास में वैदिक काल से लेकर आज तक अधम धारा के रुप में कभी न रुकने वाला निरंतर भक्ति काव्य धारा बहती रहेगी।
लेखक: ओम प्रकाश (भजन गायक, मुंबई)