कब है भाद्रपद अमावस्या? जानें पितृदोष दूर करने के आसान उपाय

कब है भाद्रपद अमावस्या? जानें पितृदोष दूर करने के आसान उपाय

भाद्रपद मास में अमावस्या तिथि को सनातन धर्म में बहुत अधिक महत्व दिया गया है। इस विशेष दिन पर पूजा-पाठ और स्नान-दान करने से साधक को विशेष लाभ मिलता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, साल के प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष की पंद्रहवीं तिथि को अमावस्या पड़ती है। इसी क्रम में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भाद्रपद की अमावस्या कहते हैं। अमावस्या का दिन पितरों को तर्पण देने और लक्ष्मी की पूजा के लिए बहुत अधिक शुभ माना जाता है। इस दिन स्नान-दान और तर्पण से पितरों का विशेष आशीर्वाद मिलता है और पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

इस अमावस्या को महालया अमावस्या, भादो अमावस्या, पिठोरी, भादी अमावस्या और कुशोत्पाटिनी अमावस्या आदि के नाम से जाना जाता है। इस दिन स्मरण करके श्रद्धालु अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं और इस प्रकार सफलता प्राप्त करने के लिए उनका आशीर्वाद लेते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अमावस्या तिथि के दिन कुछ अचूक उपाय करने से कई तरह के लाभ भी मिलते हैं। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं इस साल भाद्रपद अमावस्या कब है और इस दिन कौन से उपाय लाभदायक साबित होंगे।

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भाद्रपद अमावस्या 2024: पूजा की तिथि और शुभ मुहूर्त  

जैसा कि बताया गया है कि हर साल यह अमावस्या भाद्रपद महीने में आती है और इस साल यह तिथि 02 सितंबर, 2024 को पड़ेगी।

भाद्रपद अमावस्या 2024 की तिथि आरंभ: 02 सितंबर, 2024 की सुबह 05 बजकर 24 मिनट से शुरू होगी 

भाद्रपद अमावस्या 2024 की तिथि समाप्त: 03 सितंबर, 2024 की सुबह 07 बजकर 27 मिनट पर समाप्त होगी।

भाद्रपद अमावस्या का महत्व

सनातन धर्म में भाद्रपद अमावस्या का बहुत महत्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भक्तों को अपने पिछले जन्म में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, इस व्रत को करने से परिवार में शांति और सद्भाव बना रहता है। भाद्रपद अमावस्या व्रत के लाभों से पूर्वजों की दिवंगत आत्माओं को भी शांति मिलती है। यही नहीं भाद्रपद अमावस्या पर कुछ महत्वपूर्ण अनुष्ठान करके भी कालसर्प दोष से छुटकारा पाया जा सकता है। 

इस दिन व्रत रखने और पवित्र नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, दान-पुण्य करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है, जो अपने पितरों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं और उनके लिए तर्पण करना चाहते हैं। भाद्रपद अमावस्या का व्रत और पूजा न केवल पितरों को प्रसन्न करती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति का भी संचार करती है।

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भाद्रपद अमावस्या पर क्या करें और क्या न करें

भाद्रपद अमावस्या का दिन सनातन धर्म में पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से पितरों की शांति और तृप्ति के लिए पूजा, तर्पण, और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इसे पितृ दोष निवारण का श्रेष्ठ समय माना जाता है। इस दिन कुछ विशेष कार्य करने चाहिए और कुछ से बचना चाहिए। आइए जानते हैं उन कार्यों के बारे में।

क्या करना चाहिए

पितरों का तर्पण और श्राद्ध: इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध करना चाहिए। इसके लिए पवित्र नदी या किसी तीर्थ स्थान पर जाकर तर्पण करना सर्वोत्तम होता है।

पवित्र नदी में स्नान: भाद्रपद अमावस्या पर पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। अगर नदी में स्नान संभव न हो, तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करें।

दान: इस दिन गरीबों और ब्राह्मणों को दान देने से विशेष फल मिलता है। अन्न, वस्त्र, तिल, और सोना दान करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है।

व्रत और पूजा: भाद्रपद अमावस्या पर व्रत रखने से पापों का नाश होता है और शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और शिव की विशेष पूजा की जाती है।

क्या नहीं करना चाहिए

क्रोध और अहंकार: इस दिन क्रोध, अहंकार, और विवाद से बचना चाहिए। ये नकारात्मक भावनाएं पूजा के फल को कम कर सकती हैं।

तामसिक भोजन: भाद्रपद अमावस्या के दिन मांस, मदिरा और अन्य तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। शुद्ध और सात्विक भोजन का सेवन करें।

पेड़-पौधे काटना: इस दिन पेड़-पौधों को काटना अशुभ माना जाता है। यह कार्य पितरों की नाराजगी का कारण बन सकता है।

उधार देना या लेना: इस दिन उधार देने या लेने से बचना चाहिए। इसे धन हानि और कर्ज़ बढ़ने का संकेत माना जाता है।

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भाद्रपद अमावस्या की पूजा विधि

भाद्रपद अमावस्या का दिन पितरों की तृप्ति और आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस दिन विधि पूर्वक पूजा और तर्पण करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जानें भाद्रपद अमावस्या की पूजा विधि:

  • इस दिन सबसे पहले प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी या तालाब में स्नान करें। यदि यह संभव न हो, तो घर पर स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  • घर में पूजा के लिए एक पवित्र स्थान का चयन करें। इसे साफ-सुथरा करें और वहां पवित्र आसन बिछाएं। पूजा के लिए एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएं।
  • भगवान विष्णु, शिव, और यमराज का आह्वान करें। दीपक जलाएं और धूप, अगरबत्ती का उपयोग करें। भगवान की प्रतिमा या चित्र के सामने फूल, चंदन, और अक्षत (चावल) अर्पित करें।
  • पितरों के लिए एक विशेष स्थान बनाएं। वहां जल, काले तिल, जौ, और सफेद फूल अर्पित करें। पितरों का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि वे तर्पण को स्वीकार करें और आशीर्वाद दें।
  • पितरों के नाम का स्मरण करते हुए तिल, जौ और जल का तर्पण करें। तर्पण करते समय “ॐ पितृ देवताभ्यो नमः” का जाप करें। यह प्रक्रिया तीन बार दोहराएं।
  • पूजा के बाद ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र, अन्न, या धन का दान दें। यह पितरों की तृप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
  • पूजा के अंत में भगवान और पितरों का ध्यान करें और उनसे जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आशीर्वाद मांगें।
  • पूजा के दौरान पूर्ण शुद्धता और श्रद्धा का पालन करें। इस दिन संयमित आचरण और सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए।
  • इस विधिपूर्वक पूजा करने से पितरों की कृपा मिलती है और वे परिवार पर सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं।

भाद्रपद अमावस्या व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक राज्य में हरिश्चंद्र नाम के राजा राज्य करते थे। वे अपने सत्य और धर्म का पालन करने के लिए प्रसिद्ध थे। उनके राज्य में हर व्यक्ति सुखी और संतुष्ट था। एक दिन राजा हरिश्चंद्र को स्वप्न में अपने पितरों का संदेश मिला, जिसमें उन्हें पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध कर्म करने का निर्देश दिया गया। राजा हरिश्चंद्र ने इस संदेश को बहुत गंभीरता से लिया और भाद्रपद अमावस्या के दिन अपने पितरों के श्राद्ध के लिए काशी जाने का निर्णय लिया।

किंतु काशी पहुंचने पर उनकी सारी संपत्ति और राज्य छिन गया। उन्हें अपने जीवन के कठिनतम समय का सामना करना पड़ा। हरिश्चंद्र ने सत्य और धर्म के मार्ग से विचलित हुए बिना, अपने पितरों का श्राद्ध कर्म पूर्ण करने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने अपना सब कुछ दान कर दिया और काशी के श्मशान में काम करने लगे ताकि पितृ ऋण से मुक्ति पा सकें।

उन्होंने भाद्रपद अमावस्या के दिन गंगा नदी के किनारे पवित्र स्नान किया और विधिपूर्वक तर्पण और श्राद्ध कर्म किया। उनकी श्रद्धा और समर्पण से प्रसन्न होकर पितरों ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि वे पितृ ऋण से मुक्त हो गए हैं। इसके बाद राजा हरिश्चंद्र का जीवन फिर से सुख-समृद्धि से भर गया, और उन्होंने धर्म के मार्ग पर चलते हुए अपना शेष जीवन व्यतीत किया।

यह कथा यह संदेश देती है कि भाद्रपद अमावस्या का दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन विधि पूर्वक पूजा, तर्पण, और श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन की कठिनाइयां समाप्त होती हैं।

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भाद्रपद अमावस्या पर राशि अनुसार करें उपाय

भाद्रपद अमावस्या के दिन राशि के अनुसार दान करने से व्यक्ति को विशेष फल प्राप्त होते हैं और पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है। आइए जानते हैं इस दिन राशि अनुसार किन चीज़ों का दान करना चाहिए।

मेष राशि

मेष राशि के जातकों को इस दिन लाल रंग के वस्त्र, तांबा, और मसूर की दाल का दान करना चाहिए। यह मंगल ग्रह से संबंधित समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है।

वृषभ राशि

वृषभ राशि के जातकों को सफेद वस्त्र, चावल, दूध, और सफेद मिठाइयों का दान करना चाहिए। यह शुक्र ग्रह के अशुभ प्रभावों को कम करता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।

मिथुन राशि

मिथुन राशि के जातकों के लिए हरे रंग की वस्तुओं जैसे हरी मूंग, हरा वस्त्र, और पान का दान करना शुभ होता है। यह बुध ग्रह को प्रसन्न करने में सहायक होता है और बौद्धिक विकास को बढ़ाता है।

कर्क राशि

कर्क राशि के जातकों को इस दिन चांदी, दूध, सफेद कपड़े, और चावल का दान करना चाहिए। इससे चंद्रमा के दोष शांत होते हैं और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

सिंह राशि

सिंह राशि के जातकों के लिए सोना, गेहूं, गुड़, और हल्दी का दान करना लाभकारी होता है। यह सूर्य ग्रह की कृपा प्राप्त करने में मदद करता है और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

कन्या राशि

कन्या राशि के जातकों को हरे वस्त्र, मूंग दाल, किताबें, और पान का दान करना चाहिए। यह बुध ग्रह के शुभ प्रभाव को बढ़ाता है और जीवन में प्रगति लाता है।

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तुला राशि

तुला राशि के जातकों के लिए सफेद वस्त्र, दही, चावल, और गन्ने का दान करना शुभ होता है। इससे शुक्र ग्रह के दोष शांत होते हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

वृश्चिक राशि

वृश्चिक राशि के जातकों को लाल कपड़े, तांबा, और मसूर की दाल का दान करना चाहिए। यह मंगल ग्रह के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है और जीवन में ऊर्जा का संचार करता है।

धनु राशि

धनु राशि के जातकों के लिए पीले वस्त्र, चना दाल, हल्दी, और सोने का दान करना शुभ होता है। यह बृहस्पति ग्रह की कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है और ज्ञानवर्धन में मदद करता है।

मकर राशि

मकर राशि के जातकों को काले वस्त्र, काले तिल, और लोहे का दान करना चाहिए। यह शनि ग्रह के दोषों को शांत करता है और जीवन में स्थिरता लाता है।

कुंभ राशि

कुंभ राशि के जातकों के लिए काले वस्त्र, तिल, और तेल का दान करना शुभ माना गया है। इससे शनि ग्रह की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।

मीन राशि

मीन राशि के जातकों को पीले वस्त्र, हल्दी, चने की दाल, और सोने का दान करना चाहिए। यह बृहस्पति ग्रह के शुभ प्रभाव को बढ़ाता है और जीवन में सुख-शांति लाता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1- साल 2024 में भाद्रपद अमावस्या कब है?

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल यह अमावस्या भाद्रपद महीने में आती है और इस साल यह तिथि 02 सितंबर, 2024 को पड़ेगी।

2- भादो की अमावस्या को क्या करना चाहिए?

भादो अमावस्या के दिन शनिदेव की भी विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस दिन शनिदेव की प्रतिमा पर तेल चढ़ाना चाहिए। साथ ही सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

3- अमावस्या किसके लिए सबसे अच्छी है?

अमावस्या का चरण आपके इरादे तय करने और अपने लक्ष्यों को साकार करने का सबसे अच्छा समय है।

4- अमावस्या के दिन कौन सा काम नहीं करना चाहिए?

अमावस्या के दिन दिन शुभ कार्य जैसे- शादी, गृह प्रवेश और मुंडन आदि कार्य नहीं करने चाहिए। किसी को गलत शब्द न बोले और क्रोध करने से बचें।