विभिन्न राज्यों में अलग नाम और मान्यताओं के साथ मनायी जाने वाली भाद्रपद अमावस्या आज !

हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार भादो माह में कृष्ण पक्ष की आमवस्या को भाद्रपद अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस अमावस्या को कुछ जगहों पर कुशग्रहणी, पिठोरी और अघोरी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पितरों की पूजा और पिंड दान का विशेष महत्व है। कई जगहों पर आज के दिन लोग गंगा स्नान करके पिंड देते हैं और पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए विशेष पूजा करते हैं। भाद्रपद अमावस्या के दिन महाराष्ट्र में खासतौर से पोला त्यौहार के नाम से मनाया जाता है। आइये जानते हैं भाद्रपद अमावस्या के दिन पड़ने वाले इस प्रमुख त्यौहार के बारे में।

भाद्रपद/ पिठोरा अमावस्या के दिन मनाया जाता है पोला त्यौहार

बता दें कि पोला त्यौहार मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन मनाये जाने वाले इस त्यौहार का खास संबंध खेती और किसानों से है। इस त्यौहार को महाराष्ट्र के अलावा छत्तीसगढ़ और कर्णाटक में भी मनाया जाता है। जहाँ एक तरफ कुछ राज्यों में इस दिन पिंड दान और पितरों की पूजा की जाती है वहीं आज के दिन महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में इस दिन विशेष रूप से बैलों की पूजा की जाती है। पूजा से पहले बैलों को सजाया जाता है और उसके बाद उनकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है। महाराष्ट्र में इस त्यौहार को काफी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में पोला या पिठोरी अमावस्या का त्यौहार वहां के निवासियों का लोक पर्व माना जाता है।

पोला त्यौहार का महत्व 

बता दें कि इस दिन महिलाएं विशेष रूप से अपने बेटों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इसके साथ ही साथ दुर्गा माता के योगिनी रूप की पूजा की जाती है और बैलों को सजा कर उनकी भी पूजा अर्चना की जाती है। इस त्यौहार की खासियत ये है कि इस दिन सभी घरों में लुभावने पकवान बनाये जाते हैं जिसका इन्तजार लोगों को हर साल रहता है। महाराष्ट्र के किसान इस दिन विशेष रूप से बैल सजाओ प्रतियोगिता का आयोजन भी करते हैं। इसमें किसान अपने-अपने बैलों को सजाकर लाते हैं और जिनका बैल सबसे अच्छा सजा होता है, उन्हें पुरुस्कृत किया जाता है। ये त्यौहार विशेष रूप से स्त्री और पुरुष दोनों के लिए ख़ासा मायने रखता है। इस दिन जहाँ एक तरफ पुरुष बैलों को सजा कर  और उनकी पूजा करते हैं, वहीं दूसरी तरफ महिलाएं अपने मायके जाकर इस दिन अपने बेटों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। अगस्त महीने में आनेवाला ये त्यौहार खासकरके खेती बाड़ी का काम खत्म होने के बाद अन्नदाता धरती माँ के गर्भ धारण करने के उल्लास में भी मनाया जाता है।

महाराष्ट्र में इस त्यौहार को गांव से लेकर शहर तक के लोग मनाते हैं। शहर में रहने वाले इस दिन विशेष रूप से मिट्टी से बने बैल के जोड़े लेकर आते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इस त्यौहार को हर साल भाद्रपद अमावस्या के दिन ही मनाया जाता है। इसके साथ ही साथ चूँकि आमवस्या तिथि को पितरों को समर्पित माना जाता है, इसलिए इस दिन अन्य जगहों पर पिंड दान और पितरों की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है।