अहमदाबाद से लगभग 110 किलोमीटर दूर गांधीनगर के बेचराजी में स्थित बहुचरा माता का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु मंदिर में स्थापित बहुचरा देवी के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं। बहुचरा माता को बेचराजी माता भी कहा जाता है, जिसके नाम पर ही इस कस्बे का नाम रखा गया। मान्यता है कि यहाँ आने वाले हर भक्त की मुराद माता खुद पूरा करती हैं। इसलिए संतान सुख की प्राप्ति के लिए यहाँ लोग विशेष रूप से मां की शरण में आते हैं। बहुचरा माता को कई लोग अपनी कुलदेवी भी मानते हैं, जिसके चलते यहाँ श्रद्धालु विशेष पूजन करने यहाँ मीलों दूर से भी आते हैं।
प्राचीन मंदिर की भव्यता
मंदिर के निर्माण की बात करें तो:
- यह मंदिर ऊँची-ऊँची किलानुमा दीवारों से घिरा हुआ है।
- मंदिर के मुख्य पीठ में बालायंत्र स्थापित है।
- यहाँ के पुरोहितों द्वारा प्रत्येक दिन माता का संपूर्ण श्रृंगार कर मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।
- यहां आपको गर्भगृह में माता की न तो पाषाण या ही किसी अन्य धातु की मूर्ति मिलेगी।
- यहाँ माता मंदिर के पीछे एक वृक्ष के नीचे अपने मूल स्थान पर विराजमान होती हैं।
- यहाँ आपको एक प्राचीन स्तंभ और एक छोटा सा मंदिर भी मिल जाएगा है।
- मुख्य मंदिर के सामने एक विशाल प्राचीन अग्निकुंड भी बना हुआ है।
बहुचरा माता के मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानी
इस मंदिर को लेकर कई तरह की पौराणिक कथाओं का वर्णन सुनने को मिल जाता है। उन्ही में से एक पौराणिक कहानी के अनुसार मान्यता है कि, माँ बहुचरा चारण जाति के बापल दान देथा की पुत्री थीं। बचपन में एक बार देवी बहुचरा अपनी अन्य बहनों के साथ एक काफ़िले में यात्रा पर निकली, जिस बीच बपैया नामका एक ख़ूँख़ार डाकू ने काफ़िले पर हमला किया। जिसका कड़ा जवाब वहां मौजूद हर व्यक्ति ने भी दिया। लेकिन बावजूद इसके काफ़िले के लोग डाकुओं का सामना नहीं कर पा रहे थे।
ऐसे में देवी बहुचरा ने अपनी बहनों के साथ आत्म बलिदान देने का निर्णय लिया। जिसके लिए उन्होंने अपने स्तन काट डाले और डाकू बपैया को श्राप दिया। माना जाता है कि उस श्राप के चलते ही डाकू नपुंसक हो गया। इसके बाद माता के श्राप से मुक्ति पाने के लिए डाकू एक महिला की भाँती सज–संवर कर माँ को प्रसन्न करने लगा। मान्यता अनुसार तभी से किन्नर समुदाय के स्वरूप का प्रारम्भ हुआ। इसी कारण आज माँ बहुचरा किन्नर समुदाय की कुल देवी मानी जाती है, जिन्हे किन्नर समुदाय पूजन द्वारा प्रसन्न करता है।
यहाँ किन्नर करते हैं माता की उपासना
इस मंदिर को लेकर धार्मिक मान्यता है कि यहाँ एक निःसंतान राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए माँ की विधिवत पूजा-अर्चना की थी। जिसके बाद परिणामस्वरूप माँ के आशीर्वाद से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम जेथो रखा गया, लेकिन वो बालक जन्म से ही नपुंसक निकला।
माना जाता है कि एक रात राजकुमार के सपने में देवी बहुचरी ने दर्शन दिए और राजकुमार को अपना भक्त बनने का आदेश दिया और राजकुमार ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए उनकी आराधना की। जिसके बाद उस राजकुमार का जीवन सुख-समृद्धियों से भर गया। इसके बाद जितने भी लोग नपुंसक थे उन्होंने भी माँ की आराधना में अपना जीवन समर्पित करने की शुरुआत की, जिसके परिणाम स्वरूप माँ उन लोगों जिन्हे हम किन्नर समुदाय कहते हैं, उनकी कुल देवी बन गयी और आज देशभर से किन्नर अपनी कुलदेवी की आराधना करने यहाँ हर साल लाखों की संख्या में आते हैं।