हिन्दू धर्म के अनुसार भादो मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछ बारस या गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। आज 27 अगस्त को ये तिथि होने की वजह से बछ बारस का त्यौहार मनाया जा रहा है। आज के दिन खासतौर से माँ अपने बेटे की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पूजा अर्चना करती हैं। आज खसतौर से माताएं अपने बेटों का मनपसंद पकवान बनाती हैं और उन्हें पसंदीदा उपहार भेंट स्वरुप देती हैं। आज हम आपको बछ बारस पर्व के महत्व और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।
बछ बारस पर्व का महत्व
हिन्दू धर्म के इस त्यौहार को मनाये जाने के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। मान्यता है कि इस त्यौहार का ख़ास संबंध माता यशोदा और श्री कृष्ण से है। ये त्यौहार खासतौर से माँ और बेटे के बीच के प्रेम को दर्शाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब कृष्ण जी थोड़े बड़े हुए तो उन्होनें अपने मित्रों को जंगल में गाय चराने के लिए जाते देखा। उनके मन में भी गाय चराने की हट जाग उठी, जब ये बात उन्होनें अपनी माँ यशोदा से कही तो उन्होनें बेटे की हिफाज़त की चिंता करके उन्हें जाने से मना कर दिया। लेकिन माता यशोदा मन ही मन ये जानती थी की वो ज्यादा दिनों तक कृष्ण जी को घर में कैद करके नहीं रख सकती हैं। जिस दिन उन्होनें कृष्ण जी को गाय चराने जाने की इजाजत दी वो दिन भादो माह कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि थी।
यशोदा माता ने अपने लाड़ले को वन में भेजने से पहले उनके लिए उनका पसंदीदा पकवान बनाया। यशोदा माँ के साथ ही साथ नन्द गावं की अन्य महिलाएं भी कान्हा के लिए बहुत से उपहार और तरह-तरह के पकवान बनाकर ले आयी। गायों को सजाया गया और उनके लिए भी अंकुरति अनाज बांधें गए। माता यशोदा को कृष्ण जी की इतनी चिंता सता रही थी की जब तक वो वन से लौट नहीं आये तब तक उन्होनें कुछ खाया नहीं सिर्फ अंकुरित अनाज ही खाएं। इस तरह से कृष्ण जी पहली बार वन से सही सलामत गाय चराकर लौटे। इसी दिन को बछ बारस के रूप में मनाया जाने लगा।
बछ बारस पूजा विधि
- आज के दिन व्रती महिलाएं सबसे पहले सुबह सवेरे उठकर स्नान करके नए वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद गाय और उसके बछड़ों को नहलाएं और उन्हें नए वस्त्र ओढ़ाएं।
- गाय और बछड़े दोनों को फूलों की माला अर्पित करें।
- माथे पर चंदन का तिलक लगाएं और गाय की सींग को रंग बिरंगी चीजों से सजाएँ।
- अब गौ माता का पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें और उनके पैर में लगी मिट्टी से माथे पर तिलक लगा लें।
- पूरा दिन व्रत रखें और खाने में सिर्फ अंकुरित अनाज ही ग्रहण करें। रात के वक़्त गौ माता की पूजा के बाद अपना व्रत खोलें।
- आज के दिन व्रती महिलाओं के लिए बाजरे की रोटी खाना महत्वपूर्ण माना जाता है।
- ध्यान रखें की आज गाय का दूध, दही और चावल से बने किसी भी भोज्य पदार्थ का सेवन ना करें।
- अगर किसी के पास गाय या बछड़े ना हों तो वो मिट्टी से बने गाय की पूजा कर सकते हैं।