सावन माह की शुरुआत हो चुकी है और आज कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि के दिन अशून्य शयन व्रत रखा जाता है। ये व्रत मुख्य रूप से विवाहित स्त्री और पुरुष के द्वारा रखा जाता है। हिन्दू धर्म में इस व्रत को ख़ास महत्व दिया गया है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है। धन प्राप्ति के उद्देश्य से भी इस व्रत को रखना महत्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ हम आपको अशून्य शयन व्रत की पूजा विधि और उसके महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं।
अशून्य शयन व्रत का महत्व
चातुर्मास के इन चार महीनों के दौरान हर माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को अशून्य शयन व्रत रखा जाता है। इस व्रत को विवाहित स्त्री पुरुष द्वारा सुखी वैवाहिक जीवन और आर्थिक रूप से संपन्न रहने के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की जोड़ी में पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि जो स्त्री पुरुष पूरी श्रद्धा के साथ इस दिन व्रत रखते हैं उनके वैवाहिक जीवन में कभी कोई अड़चन नहीं आती और ना ही जीवनसाथी के साथ कभी उनका अलगाव होता है। जैसा की आप सभी जानते हैं की चातुर्मास के दौरान भगवान् विष्णु निंद्रा अवस्था में चले जाते हैं इसलिए इस दिन को उनके शयन उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि जिस प्रकार से सुहागिन स्त्रियां करवाचौथ का व्रत रखती हैं उसी प्रकार से अशून्य शयन व्रत पुरुषों को सुखी वैवाहिक जीवन के लिए करना अनिवार्य माना गया है।
धन प्राप्ति के लिए इस दिन इन नियमों का करें पालन
यदि आप अपने जीवन में चल रहे आर्थिक तंगी से परेशान हैं तो आज के दिन सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान ध्यान से निवृत होने के बाद अशून्य शयन व्रत का संकल्प लें। ध्यान रहे की इस दिन फलहार रहकर ही इस व्रत का पालन करें। शाम के समय दोबारा स्नान आदि करने के बाद भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत रूप से पूजा अर्चना करें। इस दौरान प्रसाद के रूप में मोतीचूर के लड्डू चढ़ाएं और आरती का गान करें। इस प्रकार से विधि पूर्वक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर आप अपार धन की प्राप्ति कर सकते हैं।
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए इस प्रकार से करें पूजा अर्चना
विवाहित स्त्री और पुरुष इस दिन व्रत रखकर एक तांबे या स्टील के लोटे में दूध, चावल और जल को मिलकार चन्द्रमा को अर्घ दें। इसके बाद चंद्रदेव की आरती कर उनसे आशीर्वाद लें। अब विधि पूर्वक भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा अर्चना कर उनसे सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करें। विधि पूर्वक पूजा विधि संपन्न कर ही भोजन ग्रहण करें।