अशून्य शयन व्रत लगातार पांच मासों के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि पर रखे जाने वाला विशेष व्रत है। यह व्रत मुख्य तौर पर श्रावण कृष्ण द्वितीया, भाद्रपद कृष्ण द्वितीया, आश्विन कृष्ण द्वितीया, कार्तिक कृष्ण द्वितीया तथा मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया को रखा जाता है। यह दूसरा मास है, जिस अनुसार आज यानी 17 अगस्त, शनिवार को वर्ष का दूसरा अशून्य शयन व्रत रखा जाएगा। इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों को रखना चाहिए। क्योंकि इसके लाभ से जहाँ स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य जीवन की प्राप्ति होती है और उसके पति की आयु भी लंबी होती है, तो वहीं पुरुष यदि इस व्रत को करते हैं तो उन्हें भी इस व्रत के परिणामस्वरूप किसी भी प्रकार के सुखों का सामना नहीं करना पड़ता है।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है ये व्रत
हिन्दू धर्म में इस व्रत को ख़ास महत्व दिया गया है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा आराधना किये जाने का विधान है। इसके अलावा कई लोग धन प्राप्ति के उद्देश्य से या किसी भी प्रकार की आर्थिक समस्या के निवारण के लिए भी इस व्रत को रखते हैं। यहाँ आज हम आपको अशून्य शयन व्रत की पूजा विधि और उसके महत्व के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
अशून्य शयन व्रत का धार्मिक महत्व
धार्मिक ग्रंथों में से विष्णुधर्मोत्तर पृष्ठ- 71, मत्स्य पुराण पृष्ठ- 2 से 20 तक, पद्मपुराण पृष्ठ-24, विष्णुपुराण पृष्ठ- 1 से 19, आदि में आपको अशून्य शयन व्रत का पौराणिक उल्लेख एवं उसका महत्व मिल जाएगा। अशून्य शयन का अर्थ है- बिस्तर में अकेले न सोना पड़े और अपने अर्थ की ही तरह इस व्रत के द्वारा महिलाएं व पुरुष अपने वैवाहिक जीवन को मधुर बनाने के लिए इस व्रत को करते हैं। जिस प्रकार विवाहिक स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ का व्रत करती हैं, ठीक उसी तरह इस व्रत का पालन भी पुरूष अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये करते हैं। क्योंकि ये माना गया है कि जीवन में जितनी जरूरत एक स्त्री को पुरुष की होती है, उतनी ही जरूरत एक पुरुष को स्त्री की भी होती है।
इसके साथ ही हेमाद्रि और निर्णयसिन्धु में भी इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। इनके अनुसार अशून्य शयन द्वितिया का यह व्रत पति-पत्नी के रिश्तों को तो बेहतर बनता ही है, साथ ही इस व्रत से उनके दांपत्य जीवन को भी मज़बूती प्रदान होती है।
इस व्रत से दांपत्य जीवन में नहीं आती कोई समस्या
यह व्रत मुख्यतौर से मां लक्ष्मी तथा श्री हरि, यानी भगवान विष्णु जी को समर्पित होता है। जिसके लिए इस दिन इनका विधि अनुसार पूजन करने का विधान है। शास्त्रों की माने तो चातुर्मास भगवान विष्णु का शयनकाल समय होता है और इसी दौरान अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव मनाया जाता है। इस व्रत को लेकर मान्यता है कि जो भी इस व्रत को सच्ची भावना से करता है, उसके दाम्पत्य जीवन में कभी दूरी नहीं आती। साथ ही उनका घर-परिवार भी सुख-शांति तथा सौहार्द से परिपूर्ण रहता है। इसलिए गृहस्थ पति को यह व्रत करना आवश्यक बताया गया है। चलिए अब जानते हैं कि इस व्रत में किस प्रकार करनी चाहिए भगवान की पूजा-आराधना ।
व्रत को करने की सही विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र पहने और अगर संभव हो तो आज दिन भर मौन धारण करें।
- इसके बाद मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु के सामने जाकर व्रत का संकल्प लें और व्रत की शुरुआत करें।
- दिनभर कुछ भी न खाए। हालांकि ऐसा करना संभव न हो तो सिर्फ फलाहार ही करें।
- इसके बाद शाम को पुनः स्नान करके विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हें मुख्य रूप से लड्डू और केले का भोग लगाएँ।
- इसके बाद उन्हें धूप दीप दिखाकर इन मंत्र का जाप करें-
- ॐ विष्णुदेवाय नमः।।
- ॐ महालक्ष्मयै नमः।।
- मन्त्रों के जाप के बाद सपरिवार पूजा करें और पूजन के बाद विष्णु और लक्ष्मी को शयन करवा दें।
- इसके बाद एक स्टील के लोटे में दूध, जल और चावल घोलकर चंद्रमा को अर्घ्य दें।
- चंद्र मां को अर्घ्य देने के बाद ही अशून्य शयन व्रत का पारण किया जाता है।
- आज के दिन चन्द्रोदय 20 बजकर 18 मिनट पर होगा। इसलिए इस समय ही चंद्र को अर्घ्य देना शुभ रहेगा।
- फिर अगले दिन, यानी तृतीया तिथि को, यानी कल के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और उनका आशीर्वाद
- लेकर उन्हें कोई मीठा फल और दक्षिणा देनी चाहिए।
- इस प्रकार व्रत आदि को करने से आपके जीवनसाथी पर आने वाली सारी मुसीबतों से आपको छुटकारा मिलता है।