सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का बड़ा महत्व है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। चूंकि सनातन धर्म में भगवान शिव को त्रिदेवों के बीच संहारक का दर्जा प्राप्त है और उन्हें देवों का देव माना जाता है। इस वजह से इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव प्रदोष काल में कैलाश स्थित अपने रजत भवन में आनंद तांडव करते हैं। इस दौरान सभी देवी-देवता भगवान शिव के इस स्वरूप की पूजा करते हैं। वहीं मान्यताओं अनुसार इस दिन जो भी जातक भगवान शिव की सच्चे भाव व श्रद्धा से पूजा करता है, भगवान शिव उसका जीवन सुख व समृद्धि से भर देते हैं।
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अब आषाढ़ महीने का पहला प्रदोष व्रत आज यानी कि 07 जुलाई को बुधवार के दिन पड़ रहा है। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने की वजह से इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाएगा। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में बुध प्रदोष व्रत का महत्व, पूजा विधि और मुहूर्त की जानकारी देने वाले हैं।
आषाढ़ महीने का पहला प्रदोष व्रत तिथि व मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को आषाढ़ महीने का पहला प्रदोष व्रत पड़ रहा है। इस साल आषाढ़ महीने का पहला प्रदोष व्रत 07 जुलाई को बुधवार यानी कि आज के दिन पड़ रहा है। 07 जुलाई को त्रयोदशी तिथि की शुरुआत रात्रि के 01 बजकर 02 मिनट पर होगी और अगले दिन 08 जुलाई की सुबह 03 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन होगा। बुधवार के दिन इस प्रदोष व्रत के पड़ने की वजह से इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
आइये अब आपको बुध प्रदोष व्रत का महत्व बता देते हैं।
बुध प्रदोष व्रत का महत्व
सभी प्रदोष व्रत में बुध प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है। मान्यता है कि बुध प्रदोष व्रत करने वाले जातकों को अपने जीवन की सभी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। खास कर के संतान के स्वास्थ्य और बुद्धि के लिए इस व्रत को विशेष तौर पर किया जाता है। इसके अलावा बुध प्रदोष व्रत से रोग, शोक आदि से भी छुटकारा मिलता है। वैसे जातक जिनकी कुंडली में बुध ग्रह नकारात्मक फल देने की स्थिति में हो, उन्हें यह व्रत जरूर करना चाहिए। इससे बुध के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
आइये अब जानते हैं कि प्रदोष व्रत की पूजा विधि क्या है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत करने वाले जातकों को प्रदोष व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठ जाना चाहिए। इसके बाद स्नान कर के आप स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। भगवान शिव को बेलपत्र, गंगाजल, धूप, दीप आदि अर्पित कर उनकी पूजा करें। प्रदोष व्रत करने वाले जातकों को इस पूरे दिन भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
सूर्यास्त से पूर्व एक बार पुनः स्नान करें और साफ वस्त्र पहनकर पूरे घर और मंदिर को गंगाजल से पवित्र कर लें। इसके बाद पूजा स्थल पर गाय के गोबर से एक मंडप तैयार करें और विभिन्न रंगों का उपयोग करते हुए इस पर रंगोली बना लें।, इसके बाद कुशा का आसन बिछाकर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। भगवान शिव का ध्यान करते हुए “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें। भगवान शिव का जल से अभिषेक करें।
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