शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को ही हिंदी पंचांग में एकादशी कहा जाता है। एक वर्ष में 24 एकादशी होती है लेकिन किसी भी वर्ष में यदि अधिक मास होता है तो उसमें एकादशी की कुल संख्या 26 हो जाती है। हर एकादशी का अपना एक महत्व होता है जिसको अलग अलग धर्म ग्रंथों और पुराणों में बताया गया है।
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इस दिन भगवान लक्ष्मी पति नारायण की पूजा करना भक्तजनों के लिए लाभकारी होता है। इस व्रत को करने से भक्तों को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है तथा भक्तजनों को उनके कष्टों से मुक्ति मिलती है। आज हम आपको इस लेख में अपरा एकादशी से जुड़ी कथा और इस व्रत के नियमों से जुड़ी जानकारी देने वाले हैं लेकिन उससे पहले अपरा एकादशी से जुड़ी कुछ जरूरी जानकारी आपके साथ साझा कर देते हैं।
अपरा एकादशी तिथि व शुभ मुहूर्त
अपरा एकादशी तिथि : 06 जून, 2021, रविवार
अपरा एकादशी पारण मुहूर्त : 05:22:43 से 08:09:35, 07 जून तक
अवधि : 02 घंटे 46 मिनट
नोट : यह पारण मुहूर्त केवल नई दिल्ली के लिए मान्य है। अपने शहर में अपरा एकादशी के पारण मुहूर्त जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
आइये अब आपको अपरा एकादशी से जुड़ी कथा बता देते हैं
अपरा एकादशी से जुड़ी कथा
धर्म ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, महिध्वज नामक एक धर्मात्मा और पराक्रमी राजा हुआ करता था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बहुत ही अधर्मी प्रवृति का व्यक्ति था तथा अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन वज्रध्वज ने मौका पाकर बड़े भाई की हत्या कर दी और उसे जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे दबा दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा महिध्वज को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई और वह उसी पेड़ पर प्रेतात्मा स्वरुप रहने लगा।
प्रेत योनि में रहते हुए राजा वहां से गुजरने वाले लोगों को डराने और परेशान करने लगा। एक दिन धौम्य नामक ऋषि ने उस पेड़ के समीप से गुज़रते हुए राजा की आत्मा को उत्पात मचाते देखा। अपनी तपशक्ति से ऋषि ने इसका कारण जाना और उस प्रेत रूपि राजा को पेड़ से उतरने का आदेश दिया। ऋषि धौम्य ने राजा की दशा को देखते हुए उनको मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा। जिसके पुण्य स्वरूप राजा को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वह ऋषि को धन्यवाद करते हुए स्वर्ग लोक चला गया।
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आइये अब आपको अपरा एकादशी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बता देते हैं।
अपरा एकादशी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें
- अपरा एकादशी को अचला एकादशी भी कहा जाता है।
- ऐसी मान्यता है कि एकादशी के नियमों का दशमी से लेकर द्वादश तक पालन करना चाहिए।
- अपरा एकादशी के दिन भक्त व्रत रखते हैं। व्रती को इस दिन अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए। इस दिन आप फलाहार कर सकते हैं। फलाहार में आप गाय का दूध तथा फलों का सेवन कर सकते हैं।
- एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भूल कर भी नहीं करना चाहिए।
- माना जाता है कि इस दिन पान और कत्थे का सेवन भी वर्जित है।
- मांस-मदिरा, लहसुन, प्याज और अंडे इत्यादि जैसे तामसिक भोजन भी इस दिन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
- एकादशी के दिन जातकों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- घर के बड़े बुजुर्गों, माता-पिता और साधू-संतो का आदर सत्कार करना चाहिए।
- इस विशेष दिन कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति घर के दरवाजे पर आये तो उसको दान अवश्य दें।
- इस दिन क्रोध न करें । किसी भी तरह के वाद-विवाद से बचें।
- इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को छल-कपट, किसी की बुराई अथवा झूठ नहीं बोलना चाहिए।
- भगवान के भजन कीर्तन में अपना मन लगायें।
- अपरा एकादशी के दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। मान्यता है कि एकादशी पर जो व्यक्ति विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है, उस पर सदैव भगवान विष्णु की विशेष कृपा रहती है।
- एकादशी की रात्रि को जागरण करें।
- एकादशी के दिन भूमि खोदना भी वर्जित माना गया है।
- एकादशी के दिन तुलसी जी के पत्तों को तोड़ना नहीं चाहिए। पूजा के लिए एक दिन पहले ही तुलसी जी के पत्ते तोड़ कर रख लें। अन्यथा व्रत अधूरा माना जाता है।
- इस दिन गौ दान और गौ सेवा करना भी भक्तों को परम पुण्य मिलता है।
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