अमृत सिद्धि योग अपने नामानुसार बहुत ही शुभ योग है। इस योग में सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। दिन और नक्षत्र के विशेष संयोजन से अमृत सिद्धि योग का निर्माण होता है, जिसमें किया गया कोई भी कार्य हमेशा शुभ फल प्रदान करता है। सनातन धर्म में किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य करने से पहले शुभ मुहूर्त का विचार अवश्य किया जाता है। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में किया जाने वाला कोई भी कार्य या अनुष्ठान हमेशा सफल होता है और अच्छे परिणाम प्रदान करता है। साथ ही इसका प्रभाव भी लंबे समय तक रहता है।
एस्ट्रोसेज के इस विशेष ब्लॉग में हम आपको अमृत सिद्धि योग की तिथि, समय और इस शुभ योग के निर्माण में विभिन्न नक्षत्रों की अहम भूमिका सहित कई और चीजों के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे। साथ ही इस योग के दौरान किए जाने वाले या वर्जित कार्यों के बारे में भी बताएंगे।
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अमृत सिद्धि योग का महत्व, तिथि और समय
ज्योतिष के अनुसार, अमृत सिद्धि योग की अवधि 6 से 12 घंटे तक रहती है और साल में कई बार यह योग बनता है। यह योग यात्रा, नौकरी के साक्षात्कार, परीक्षा, दुकान खोलने, खरीदारी, वाहन या जमीन बेचने आदि कामों के लिए बेहद शुभ माना जाता है। अमृत सिद्धि योग तब बनता है, जब कोई विशेष दिन किसी विशेष नक्षत्र के तहत आता है। अर्थात यह योग किसी खास दिन पर खास नक्षत्र के होने से ही बनता है। जनवरी के महीने में अमृत सिद्धि योग दो बार बन रहा है। पहला 18 जनवरी 2023 को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से शाम 05 बजकर 23 मिनट तक और दूसरा 27 जनवरी 2023 को सुबह 07 बजकर 12 मिनट से शाम 6 बजकर 37 मिनट तक। आइए जानते हैं नक्षत्र क्या होता है और इसका क्या महत्व है।
वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र का महत्व
वैदिक ज्योतिष में, नक्षत्र को चंद्र महल के रूप में जाना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चंद्र देव एक नक्षत्र में एक ही दिन रहते हैं। प्रत्येक चंद्र महल की लंबाई लगभग 13°20′ के आसपास होती है। प्रत्येक नक्षत्र को 4 पदों में विभाजित किया गया है, जिसका प्रत्येक पद 3°20′ लंबा होता है।
चंद्रमा हर राशि में लगभग 2.3 दिनों तक रहते हैं। साथ ही चंद्रमा को नक्षत्रों के स्वामी भी कहते हैं। इसलिए यह ग्रहों की स्थिति की देखभाल करते हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की भविष्यवाणी करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का विशेष महत्व है। किसी विशेष दिन किसी विशेष नक्षत्र में चंद्रमा की स्थिति का आकलन शुभ या अशुभ मुहूर्त की गणना के लिए किया जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, नक्षत्र हमारे कर्मों को भी दर्शाते हैं।
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कैसे बनता है अमृत सिद्धि योग
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि अमृत सिद्धि योग विशेष वार और नक्षत्र के संयोजन से बनता है। आइए जानते हैं कि इस योग का निर्माण कब और कैसे होता है:
- रविवार को हस्त नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
- सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र हो तो
- मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र हो तो
- बुधवार को अनुराधा नक्षत्र हो तो
- गुरुवार को पुष्य नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
- शुक्रवार को रेवती नक्षत्र हो तो
- शनिवार को रोहिणी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
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अमृत सिद्धि योग में क्या करें और क्या न करें
आइए अब जानते हैं अमृत सिद्धि योग के दौरान कौन से शुभ कार्य किए जा सकते हैं और कौन से कार्य नहीं करने चाहिए:
कर सकते हैं ये कार्य
- व्यापारिक कार्य, नए अनुबंध, नया व्यापार शुरू करना।
- भूमि, वाहन या सोना आदि खरीदना।
- किसी परीक्षा प्रतियोगिता के लिए उपस्थित होना।
- नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भरना या नौकरी के लिए इंटरव्यू देना।
- मुकदमा दायर करना
- दुकान या रिटेल स्टोर खोलना
- चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करना
- विदेश यात्रा के लिए जाना
अमृत सिद्धि योग एक शुभ योग है लेकिन इस दौरान कुछ कार्यों को करना अशुभ माना जाता है। आइए जानते हैं वे कौन से कार्य हैं:
न करें ये कार्य
- गृह प्रवेश व भवन निर्माण आदि कोई भी शुभ कार्य इस दौरान नहीं करना चाहिए। उसे आगे के लिए स्थगित कर देना चाहिए क्योंकि इस दौरान यह कार्य करना अशुभ माना जाता है।
- अगर यह योग गुरुवार के दिन बन रहा हो तो विवाह जैसा शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
- वहीं अगर यह योग शनिवार के दिन बन रहा हो तो यात्रा नहीं करनी चाहिए। विशेष रूप से दक्षिण दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए।
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