हिन्दू धर्म में एकादशी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। ज़्यादातर श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं। एकादशी के सभी व्रतों का अपना एक अलग महत्व होता है। इसी प्रकार आमलकी एकादशी भी श्रद्धालुओं के बीच काफ़ी महत्वपूर्ण मानी जाती है, जो फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन मनाई जाती है।
इस दिन लोग भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं। उनकी पूजा करते हैं तथा आंवले का सेवन करते हैं और आंवले का ही दान करते हैं।
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आमलकी एकादशी का महत्व
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। आमलकी का अर्थ होता है आंवला, जिसे धर्म शास्त्रों और आयुर्वेद में श्रेष्ठ बताया गया है। मान्यताओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने सृष्टि के निर्माण के दौरान ब्रह्मा जी को अवतरित किया था, ठीक उसी दौरान आंवले के वृक्ष को भी धरती पर जन्म दिया था। कहा जाता है कि आंवले के वृक्ष के हर हिस्से में ईश्वर का वास होता है, इसीलिए इसे आदि वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है।
पद्म पुराण के अनुसार आमलकी एकादशी के दिन व्रत करने से सैकड़ों तीर्थ दर्शन के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है तथा समस्त यज्ञों के बराबर फल मिलते हैं। आमलकी एकादशी का व्रत करने वाला श्रद्धालु मोक्ष प्राप्त करता है। इस दिन लोग आंवले के वृक्ष की विधि विधान से पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं।
भारत में आमलकी एकादशी को आंवला एकादशी, आमलका एकादशी, रंगभरी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। रंगभरी एकादशी इसलिए कहते हैं क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव माता पार्वती को उनके द्विरागमन के बाद काशी लेकर आए थे। काशी के लोग इस एकादशी को माता पार्वती के स्वागत दिवस के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार करते हैं और इसी दिन से काशी में 6 दिनों तक होली का पर्व शुरू हो जाता है।
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आमलकी एकादशी 2022: तिथि एवं पारण मुहूर्त
आमलकी एकादशी मनाने की तिथि: 14 मार्च, 2022 (फाल्गुन, शुक्ल पक्ष, एकादशी)
दिन: सोमवार
आमलकी एकादशी पारण मुहूर्त: प्रातः 06:31:35 से 08:55:08 तक (15 मार्च, 2022 को)
पारण अवधि: 2 घंटे 23 मिनट
आपको बता दें कि एकादशी का व्रत खोलने की प्रक्रिया को पारण कहते हैं। जिसे व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात किया जाता है, यानी कि व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद आप अपना व्रत खोल सकते हैं या यूं कहें कि समाप्त कर सकते हैं।
नोट: यह मुहूर्त नई दिल्ली, भारत के लिए दिया गया है। यदि आप अपने शहर का मुहूर्त जानना चाहते हैं तो एस्ट्रोसेज पंचांग पर अपना शहर डालकर शुभ मुहूर्त की सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
आमलकी एकादशी पूजन विधि
आमलकी एकादशी में आंवले का विशेष महत्व होता है, इसलिए इस दिन पूजा से लेकर भोजन तक हर चीज़ में आंवले का उपयोग शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं कि आमलकी एकादशी की पूजा विधि क्या है।
- प्रातः जल्दी उठें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत संकल्प लें।
- व्रत संकल्प लेने के बाद पवित्र स्नान करें।
- स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें तथा घी का दीपक/दीया जलाएं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- पूजा करने के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे नवरत्न युक्त कलश स्थापित करें। यदि आंवले का वृक्ष आपके आसपास न हो तो घर पर ही भगवान विष्णु को आंवला प्रसाद के रूप में अर्पित करें।
- यदि आंवले का वृक्ष आपको मिल जाता है तो धूप, दीप, चंदन, रोली, पुष्प (फूल), अक्षत आदि से वृक्ष की पूजा करें और फिर उसी वृक्ष के नीचे किसी निर्धन, ज़रूरतमंद या ब्राह्मण को भोजन कराएं।
- व्रत के अगले दिन यानी कि द्वादशी को स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और पूजा करने बाद किसी ज़रूरतमंद या ब्राह्मण को कलश, वस्त्र और आंवला आदि दान करें। इसके बाद आप अपने व्रत का पारण कर सकते हैं यानी कि व्रत खोल सकते हैं।
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आमलकी एकादशी व्रत कथा
प्रमुख पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि प्राचीन समय में राजा चित्रसेन के राज्य के लोगों की एकादशी के व्रत में बहुत आस्था थी। वे सभी एकादशी के दिन सच्ची निष्ठा से व्रत रखते थे। राजा चित्रसेन भी आमलकी एकादशी को बहुत मानते थे।
एक दिन राजा चित्रसेन शिकार करने निकले और जंगल में बहुत दूर तक निकल गए। जहां उन्हें कुछ डाकुओं ने घेर लिया और उन पर हमला करने लगे। हालांकि डाकुओं के हमले का राजा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि जैसे ही डाकू उन पर शस्त्र चलाते थे, शस्त्र पुष्प में परिवर्तित हो जाते थे। धीरे-धीरे डाकुओं की संख्या बढ़ने लगी और राजा उनके हमलों से अचेत होकर मूर्छित हो गए और ज़मीन पर गिर गए। तभी राजा चित्रसेन के शरीर से एक दिव्य शक्ति निकली, जिसने सभी डाकुओं का अंत कर दिया। अंत करने के बाद वह दिव्य शक्ति वापस राजा के शरीर में समा गई।
कुछ समय बाद जब राजा चित्रसेन को होश आया तो उन्होंने देखा कि डाकुओं का अंत हो चुका है। यह सब देखकर उन्हें बहुत हैरानी हुई कि आख़िरकार यह सब कैसे हुआ और किसने किया? तभी अचानक से एक आकाशवाणी हुई कि ‘हे राजन! यह सारे दुष्टजन तुम्हारे द्वारा किए गए आमलकी एकादशी के व्रत के प्रभाव से मारे गए हैं। इसी व्रत की वजह से तुम्हारे शरीर के अंदर से आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति प्रकट हुई और उसने इन सभी पापियों का अंत कर दिया है।’
यह सुनकर राजा चित्रसेन अति प्रसन्न हुए और वापस अपने राज्य जाकर उन्होंने अपनी प्रजा के सभी लोगों को यह बात बताई। तब से राजा चित्रसेन और उनकी प्रजा का विश्वास आमलकी एकादशी पर और अधिक बढ़ गया। इसके बाद राजा ने अपने राज्य के बाहर भी आमलकी एकादशी का प्रचार कराया ताकि लोगों का भला हो सके।
आमलकी एकादशी पर भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए करें ये ख़ास उपाय
- अपनी क्षमता के अनुसार दान-पुण्य करें क्योंकि दान-पुण्य करने से भगवान प्रसन्न होते हैं।
- यदि संभव हो तो पवित्र नदी गंगा में स्नान करें क्योंकि इसे शुभ माना जाता है।
- एकादशी की रात में भागवत कथा एवं भजन-कीर्तन करते हुए भगवान विष्णु की पूजा करें।
- आमलकी एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु को एकाक्षी नारियल अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि पूजा करने के बाद एकाक्षी नारियल को एक पीले कपड़े में बांध कर अपने पास रखने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- पीले रंग के 21 ताज़ा फूलों की माला भगवान विष्णु पर चढ़ाएं।
- आंवले के वृक्ष के तने पर सात बार सूत का धागा लपेटें और घी का दीपक/दीया जलाएं।
- नरसिंह भगवान को खोए से बनी मिठाई का भोग लगाएं।
शादी में अड़चनें आ रही हैं तो आमलकी एकादशी के दिन करें ये ज़रूरी उपाय
यदि आपके विवाह में लगातार अड़चनें आ रही हैं तो इसके लिए एक आसान सा उपाय बताया गया है, जिसे आमलकी एकादशी के दिन करने से आपकी यह समस्या दूर हो सकती है।
- एक साफ़ एवं स्वच्छ पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर कुछ आंवले रखिए।
- फिर उस पर लाल सिंदूर लगाएं, पेठा चढ़ाएं और धूप-दीप जलाकर पूजा करें।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें।
- इसके बाद उस पीले कपड़े में आंवले लपेटकर घर की तिजोरी में रख दें।
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