हिन्दू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह में पंद्रह दिनों के अंतराल पर दो पक्ष आते हैं, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। दोनों पक्षों में एक अमवस्या तिथि और एक पूर्णिमा तिथि आती है और इस दौरान दो एकादशी की तिथि आती है। हर महीने आने वाली एकादशी तिथि का अलग-अलग महत्व होता है। एक साल में करीबन 24 एकादशी व्रत आते हैं ,इन्हीं एकादशी तिथि में से एक अजा एकादशी है जिसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, इस दिन विशेष रूप से व्रत रखने और पूजा पाठ का विशेष महत्व है। अजा एकादशी व्रत आने वाले 27 अगस्त को रखा जाएगा। आइये जानते हैं इस एकादशी व्रत से जुड़े पौराणिक कथा और इस दिन के महत्व के बारे में।
अजा एकादशी व्रत का महत्व
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भादो मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। इस एकदशी व्रत की जानकारी विशेष रूप से भगवान् श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को दी थी। पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जब युधिष्ठिर ने भगवान् श्री कृष्ण से भादो माह में आने वाली एकादशी के महत्व के बारे में पुछा तो उन्होनें बताया की, भादो माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत रखकर विधि विधान से पूजा पाठ करने पर व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्ति पा सकता है और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। इसलिए इस दिन व्रत रखकर विधि विधान के साथ पूजा पाठ करने का ख़ास महत्व हैं।
अजा एकादशी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
असल में अजा एकादशी व्रत की कथा सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी है। राजा हरिश्चंद्र अपने सत्य वचनों के लिए इतिहास के पन्नों में आज भी जीवित हैं। एक बार मुनि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की कर्तव्यनिष्ठा और सत्यता की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने सत्यवादी राजा से उनका राजा पाठ और कुछ सोने के सिक्के मांगे। राजा ने पहले विश्वामित्र को राज पाठ दे दिया लेकिन जब स्वर्ण मुद्राएं देने की बारी आयी तो उनके पास कुछ नहीं बचा था। कहते हैं कि राजा हरिश्चंद्र ने विश्वामित्र को किये वादे के मुताबिक पांच सोने के सिक्के चुकाने के लिए दर-दर की ठोकरें खायी। इस दौरान वो अपनी पत्नी और बेटे से भी बिछड़ गए। राजा कर्ज चुकाने के लिए शमशान में काम करते और वहां लाशों को जलाने के बदले मृत व्यक्ति के परिवार वालों से कर लेते थे।
एक बार उनके बेटे को सांप ने काट लिया जिसके बाद उनकी पत्नी अपने बेटे को लेकर उसी शमशान घाट गयी जहाँ राजा काम करते थे। उन्होनें नियम अनुसार अपनी पत्नी से भी कर माँगा लेकिन उनके पास देने को कुछ नहीं था। राजा हरिश्चंद्र खुद इस दुःख की स्थिति से काफी व्यथित थे, अंत में उनकी पत्नी ने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा उन्हें कर के रूप में दिया। उनकी ऐसी हालत देख ईश्वर भी पसीज गये और हरिश्चंद्र को उनका राज पाठ तो लौटाया ही साथ ही साथ उनके बेटे को भी जीवित कर दिया। कहते हैं की जिस दिन ये घटना हुई उस दिन अजा एकदशी व्रत था और राजा हरिश्चंद्र के साथ ही उनकी पत्नी ने भी सुबह से कुछ खाया नहीं था। बहरहाल दोनों को एकदशी व्रत का लाभ बेटे के पुनः जीवित होने के रूप में मिला।