अजा एकादशी 2020: विधिनुसार व्रत रखने से होते हैं सभी प्रकार के पापों से मुक्त!

अजा एकादशी 15 अगस्त यानि शनिवार को मनाई जाएगी। अजा एकादशी हर साल भाद्रपद यानि भादो माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है इस व्रत को धारण करने वालों को उनके द्वारा जीवन में किए गए समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यदि आपको अपने जीवन में चल रही समस्याओं का समाधान चाहते हैं, तो हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषी से बात करने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

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अजा एकादशी जिसे कामिका एकादशी भी कहते हैं, इस दिन खासतौर पर श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। शास्त्रों के अनुसार सभी एकादशी व्रत में से अजा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ फलों की प्राप्ति होती है। तो चलिए इस लेख में आपको इस दिन से जुड़ी हर एक खास बात बताते हैं –

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अजा एकादशी शुभ मुहूर्त और समय :

अजा एकादशी पारणा मुहूर्त

16, अगस्त को 05:50:59 से 08:28:36 तक 

अवधि

2 घंटे 37 मिनट

नोट: बता दें कि यह मुहूर्त केवल दिल्ली के लिए प्रभावी होगा। अपने क्षेत्र का पारणा मुहूर्त देखने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

अजा एकादशी का महत्व

एकादशी व्रत हर महीने रखे जाने वाला व्रत है, जिसमें व्यक्ति को अपने इंद्रियों, आहार, मन और व्यवहार पर संयम रखने की आवश्यकता होती है। अजा एकादशी का व्रत साल में आने वाली सभी एकादशी के व्रत से श्रेष्ठ माना जाता है। हिन्दू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति को उसके द्वारा जीवन भर में किए सभी पापों से मुक्ति मिलती है, और मृत्यु उपरांत स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इस व्रत के महत्व के विषय में सबसे पहले श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। कृष्ण ने कहा था कि जो भी व्यक्ति कृष्ण पक्ष की एकादशी को श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करेगा, उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। 

अजा एकादशी व्रत की पौराणिक और धार्मिक महत्ता के चलते प्राचीन समय से लेकर आज तक आज यह व्रत रखे जाने का विधान है। इस व्रत की महत्ता आप इसी बात से समझिए कि इस दिन से जुड़े कथा को केवल सुनने मात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। अजा एकादशी के व्रत से इन्सान को लोभ-काम आदि से ऊपर उठकर धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती हैं। 

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अजा एकादशी के दिन भूलकर भी न करें ये काम

वैसे तो हर एकादशी का व्रत बेहद खास होता है और उस दिन से जुड़े कुछ नियम होते हैं, जिनका व्रती को पालन करना होता है, लेकिन यदि आप अजा एकादशी का व्रत रखते हैं तो आपको विशेषतौर पर नीचे बताई गयी कुछ बातों का पालन करना होता है। जैसे कि- 

  • दशमी तिथि की रात को यानि एकादशी से एक दिन पहले मसूर की दाल खाने की मनाही होती है। ऐसा माना गया है कि अगर जातक व्रत से पहले मसूर की दाल का सेवन करे, तो उसे शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होती है। 
  • अजा एकादशी व्रत वाले दिन शहद का सेवन या इस्तेमाल करना भी अशुभ माना गया है। ऐसा करने से आपके द्वारा रखा गया अजा एकादशी का व्रत सफल नहीं माना जाता है।
  • भगवान विष्णु की विशेष कृपा पाने के लिए व्रत रखने वालों को दशमी और एकादशी के दिन पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। 
  • अजा एकादशी का व्रत रखने वाले को चने, चने का आटा या करोदों आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए। यहाँ तक कि आप पूजा आदि में भी चने का इस्तेमाल न करें  

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ऐसे करें अजा एकादशी की पूजा 

अजा एकादशी व्रत को रखने वाले जातकों को दशमी तिथि से ही इस व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए।    

  • सबसे पहले एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करें और साफ़ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें।  
  • अब पूजा स्थल को अच्छे से साफ़ करें और वहां लाल या पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र रखें। 
  • भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाएं, धूप, दीप, नेवैद्य, फूल और फल चढ़ाकर पूरी  भक्तिभाव से पूजा करें। पूजा में तुलसी का प्रयोग ज़रूर करें, ऐसा करने से भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं। 
  • इस दिन माता लक्ष्मी की भी पूजा किए जाने का विधान है, इसलिए माता की भी विधिपूर्वक पूजा करें। 
  •  इसके बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। पाठ खत्म होने के बाद आरती करें। 
  • अजा एकादशी में निराहार और निर्जल रहकर व्रत का पालन करें। हालांकि यदि ऐसा संभव न हो तो आप फलाहार कर सकते हैं। 
  • इस व्रत में रात में जागरण व् कीर्तन करें। 
  • द्वादशी के दिन प्रातः काल विधिवत पूजा-पाठ करने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। 
  • अब स्वयं व्रत का पारणा करें। अजा एकादशी व्रत के पारणा मुहूर्त की जानकारी ऊपर तालिका में दी गयी है।  

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अजा एकादशी व्रत कथा

अजा एकादशी व्रत की कथा सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र से जुड़ी है। अपने सत्य वचनों के लिए राजा हरिश्चंद्र आज भी इतिहास के पन्नों में जीवित हैं। एक बार देवताओं ने मिलकर इनकी सत्यता की परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा को एक स्वप्न आया, जिसमें उन्होंने देखा कि अपना सारा राजपाट उन्होंने ऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया है। अगले दिन राजा हरिश्चन्द्र ने विश्वामित्र को अपना सारा राज-पाठ सौंप दिया और राजमहल छोड़कर जाने लगे, तब विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा के रुप 500 सोने की मुद्राएं मांगी। 

राजा हरिश्चन्द्र ने विश्वामित्र से कहा कि उन्होंने अपने पूरे राजपाट के साथ-साथ राज्यकोष भी दान में उन्हें में दे दिया और अब उनके पास अपनी पत्नी और बेटे के अलावा कुछ नहीं बचा। राजा ने विश्वामित्र की मांग को पूरा करने के लिए अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को एक चांडाल को बेच दिया और बदले में मिली स्वर्ण मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दीं।  वे अपनी पत्नी और बेटे से बिछड़ गए और उस चांडाल के यहाँ काम करने लगे। चांडाल ने राजा को श्मशान भूमि पर होने वाले दाह संस्कार की वसूली का काम दे दिया।

एक दिन राजा आधी रात के समय श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे। तभी वहां एक स्त्री बिलखते हुए अपने पुत्र का शव हाथ में लिए पहुंची। वो महिला कोई और नहीं बल्कि राजा हरिश्चन्द्र की पत्नी थी, जो अपने पुत्र के मृत्य शरीर का दाह-संस्कार करने वहां आयी थी।  अपने धर्म का पालन करते हुए राजा ने अपनी पत्नी से दाह संस्कार के लिए पैसे माँगे। राजा राजा की पत्नी के पास उन्हें देने के लिए धन नहीं था, इसलिए उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर कर के रूप में राजा का दे दिया। 

राजा हरिश्चंद्र की कर्त्तव्य निष्ठा देख भगवान वहां प्रकट हुए और उनका राज पाठ उन्हें लौटा दिया और साथ ही राजा के पुत्र को भी जीवित कर दिया। कहा जाता है कि जिस दिन यह घटना हुई थी, उस दिन अजा एकदशी व्रत था। राजा हरिश्चंद्र के साथ ही उनकी पत्नी ने भी सुबह से अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था। दोनों को ही इस एकदशी व्रत का फल मिला। 

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आशा करते हैं अजा एकादशी के बारे में इस लेख में दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी।

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