ज्योतिष विज्ञान में शुक्र ग्रह को सुखमय वैवाहिक जीवन, प्रसिद्धि, प्रतिभा, सौंदर्य, आरोग्य और कला का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि जब शुक्र का राशि परिवर्तन होता है तो इसका दूसरी सभी राशियों पर किसी-न-किसी रूप से विशेष प्रभाव पड़ता है। ऐसे में जिन जातकों की जन्म कुंडली में शुक्र मजबूत होता है, उनका जीवन खुशहाल एवं उनकी काया निरोगी होती है।
ज्योतिष विज्ञान में भी सभी ग्रहों के गोचर का समस्त राशियों के लिए अलग अलग महत्व बताया गया है। इनमें शुक्र का गोचर विशेष महत्व रखता है। अब यही शुक्र बीते 31 मार्च 2022 दिन गुरुवार को सुबह 08 बजकर 54 मिनट पर शनि देव की राशि कुंभ में अपना गोचर कर चुके हैं। शुक्र इस राशि में इसी अवस्था में अगले माह अप्रैल 27 तक रहेंगे और फिर अपना पुनः गोचर कर जाएंगे। चलिए अब जानें वो कारगार उपाय जिन्हें अपनाकर आप भी अपनी कुंडली में शुक्र को मजबूत कर सकेंगे।
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निम्नलिखित उपायों से शुक्र को अपनी कुंडली में बनाएं मजबूत:-
- सफेद रंग के वस्त्रों को अपने जीवन का अंग बनाएं। विशेष तौर पर सोमवार के दिन सफेद वस्त्र अवश्य धारण करें।
- प्रत्येक शुक्रवार के दिन शुक्रवार के व्रत का पालन करें। इस दौरान माता महालक्ष्मी को सफेद मिष्ठान्न अर्पण करें। इससे कुंडली में शुक्र की स्थिति को मजबूत किया जा सकता है।
- शुक्रवार के दिन स्फटिक की माला से “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः” मंत्र का जाप करने से भी शुक्र को मजबूत किया जा सकता है।
- प्रत्येक शुक्रवार को गरीबों और ज़रूरतमंदों को सफेद वस्त्र, सफेद मिठाई, दूध, चीनी वगैरह दान करें।
- गले में स्फटिक की माला पहनें और हाथ में चांदी का कंगन पहनें। इस उपाय से जन्म कुंडली में शुक्र की मजबूती होती है।
शुक्र ग्रह से संबंधित मंत्र
शुक्र का मंत्र
शुक्र महाग्रह मम दुष्टग्रह, रोग कष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरू कुरू हूं फट्।
शुक्र का वैदिक मंत्र
ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।।
शुक्र का नाम मंत्र
ॐ शुं शुक्राय नमः
शुक्र का तान्त्रिक मंत्र
ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः
शुक्र का पौराणिक मंत्र
ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम।
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इन राशियों पर होगी शुक्र की विशेष कृपा
तो चलिए अब आइए जानते हैं कि शुक्र के इस गोचर से किन राशि के जातकों को सबसे अधिक लाभ होगा :
मेष राशि :
शुक्र के गोचर से मेष राशि के जातकों को शुभ फल प्राप्त होने की संभावना है। विशेषज्ञों अनुसार 31 मार्च से इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। नौकरीपेशा जातकों को भी प्रमोशन व पदोन्नति मिलेगी। व्यापार के क्षेत्र में भी जातकों का प्रदर्शन अच्छा रहेगा। कार्यक्षेत्र में मान-प्रतिष्ठा अर्जित होगी। फंसे हुए पैसे या संपत्ति मिलने के योग भी बनेंगे। विदेशी संपर्क वाले मित्र काम आएंगे और उनकी मदद से आर्थिक लाभ मिलेगा।
वृषभ राशि :
शुक्र वृषभ राशि के जातकों के लिए उनके स्वामी होते हैं, इसलिए शुक्र का हर गोचर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। 31 मार्च को शुक्र कुंभ में अपना स्थान परिवर्तन करते हुए भी आपके लिए शुभ व सकारात्मक परिणाम देने का कार्य करेंगे। इससे आपको अपने किसी पुराने निवेश व धन से लाभ मिलेगा। सरकारी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को विभाग की ओर से विशेष पुरस्कार प्राप्त हो सकता है। प्रेम संबंधों के लिहाज से भी अवधि उचित रहेगी। वरिष्ठ अधिकारी प्रसन्न रहेंगे और साथ ही आप कार्यक्षेत्र, समाज व परिवार में दूसरो से सराहना प्राप्त करेंगे।
तुला राशि :
यह समयावधि तुला राशि के जातकों के लिए धन आगमन के योग बनाएगी। पारिवारिक जीवन काफी सुखद रहेगा। परिवार को कोई शुभ समाचार मिलेगा। कई जातकों के लिए लाभदायक यात्राओं के योग बन रहे हैं। व्यापारिक क्षेत्र में भी बड़े मुनाफे मिलने की उम्मीद है। यदि आप कोई नया काम करने की सोच रहे थे तो उनके लिए समय अनुकूल है। क्योंकि इस दौरान आप जिस भी काम में हाथ डालेंगे, वहां आपको निश्चित ही सफलता प्राप्त होगी। जीवनसाथी के साथ अच्छा खासा वक्त व्यतीत होगा।
धनु राशि :
धनु राशि वालों के लिए शुक्र का यह गोचर विजयकारक है। चारों तरफ सकारात्मक और शुभ फलदायक परिणाम मिलेंगे। अलग-अलग माध्यमों से आप पर खूब धन बरसेगा। कोर्ट में चल रहे मुकदमों में आपकी जीत होगी। विरोधी परास्त होंगे। कार्यस्थल पर कुछ जातकों को कई नई जिम्मेदारियां भी मिल सकती हैं। जीवन शैली में भी शुक्र देव के कारण अच्छे बदलाव आ सकते हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी होगी। व्यापार का विस्तार भी दूर तक होने की संभावना है।
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शुक्र स्त्रोत का पाठ
नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ देव दानव पूजित। वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमो नम:।। देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदांगपारग:। परेण तपसा शुद्ध शंकरो लोकशंकर:।। प्राप्तो विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम:। नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे।। तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भसिताम्बरः। यस्योदये जगत्सर्वं मंगलार्हं भवेदिह।।
अस्तं याते ह्यरिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपिणे। त्रिपुरावासिनो दैत्यान शिवबाणप्रपीडितान।। विद्यया जीवयच्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन। ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन।। बलिराज्यप्रदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नम:। भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्वं गीर्वाणवन्दितम।। जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनम:। नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि।।
नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने। स्तवराजमिदं पुण्य़ं भार्गवस्य महात्मन:।। य: पठेच्छुणुयाद वापि लभते वांछित फलम। पुत्रकामो लभेत्पुत्रान श्रीकामो लभते श्रियम।। राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम। भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं सामहितै:।। अन्यवारे तु होरायां पूजयेद भृगुनन्दनम। रोगार्तो मुच्यते रोगाद भयार्तो मुच्यते भयात।।
यद्यत्प्रार्थयते वस्तु तत्तत्प्राप्नोति सर्वदा। प्रात: काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत:।। सर्वपापविनिर्मुक्त: प्राप्नुयाच्छिवसन्निधि:। इति स्कन्दपुराणे शुक्रस्तोत्रम।।
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