भारत को अगर मंदिरों का देश कहा जाये तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमारे देश में ऐसे-ऐसे मंदिर हैं जिनके किस्से कहानियों को सुन कर हम अक्सर विस्मित हो जाते हैं। इसी तरह आज हम आपको इस लेख में एक ऐसे ही बेहद अनोखे मंदिर के बारे में बताने वाले हैं जहां आने वाले भक्तों को प्रसाद के तौर पर चरणामृत या फल नहीं बल्कि असली सोने-चांदी के जवाहरात मिलते हैं। कहाँ है यह अद्भुत मंदिर और कहाँ से आता है इतने भक्तों के लिए सोना आज इस लेख में हम आपको ये सारी जानकारी देने वाले हैं।
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महालक्ष्मी मंदिर
मध्यप्रदेश के रतलाम के माणक में मौजूद है माता लक्ष्मी का महालक्ष्मी मंदिर। महालक्ष्मी मंदिर शायद देश और दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां भक्तों को प्रसाद के स्वरूप में सोने और चांदी के आभूषण दिए जाते हों। मंदिर की यह परंपरा आज की नहीं है बल्कि यह सदियों से चलता आ रहा है।
माता महालक्ष्मी के इस मंदिर के कपाट धनतेरस के दिन खुलते हैं और फिर इसे भाई दूज के दिन बंद कर दिया जाता है। धनतेरस के दिन मंदिर के कपाट ब्रह्म मुहूर्त में खुलते हैं और पूरे विधि-विधान से माता की पूजा की जाती है। इस मंदिर में माता लक्ष्मी के अलावा कुबेर की भी पूजा होती है।
मंदिर के कपाट खुलते ही माता के भक्तों का उनके दर्शन के लिए तांता लग जाता है। माता के दर्शन करने वाले भक्त न सिर्फ प्रसाद पाने को बल्कि करोड़ों रुपये के सोने-चाँदी के आभूषण उन्हें चढ़ाने के लिए वहाँ आते हैं। इस दौरान कुछ ऐसे भी भक्त होते हैं जो नोटों की गड्डियाँ लेकर मंदिर पहुंचते हैं और बदले में उन्हें मंदिर की तरफ से टोकन दिया जाता है। बाद में टोकन पर दर्ज राशि के अनुसार भक्तों को उनका पैसा माता को अर्पित करने बाद वापस प्रसाद के रूप में दे दिया जाता है। कई भक्त माता के चरणों में लाखों करोड़ों रुपये के आभूषण अर्पित कर देते हैं जिन्हें मंदिर के पुजारी भक्तों के बीच ही बाँट देते हैं।
महालक्ष्मी मंदिर की एक खास बात यह भी है कि मंदिर को धनतेरस से आठ दिन पहले ही सजाना शुरू कर दिया जाता है और वो भी ऐसे-वैसे नहीं, नोटों की गड्डियों और सोने के आभूषणों से। जी हाँ! इन आठ दिनों के दौरान लगातार भक्त माता के मंदिर में आते रहते हैं और माता को सोने के आभूषण व धन अर्पित करते हैं जिससे मंदिर की सजावट भी होती है।
भक्त नहीं बेचते हैं प्रसाद में मिले आभूषण
महालक्ष्मी मंदिर में वितरण के बाद मिले प्रसाद स्वरूप सोने व चांदी के सिक्के या आभूषणों को भक्त नहीं बेचते हैं। उनका मानना है कि यह धन बेहद शुभ है। ऐसे में वे इस सिक्के या आभूषण को वे घर की तिजोरी में रखते हैं। मान्यता है कि महालक्ष्मी मंदिर से प्राप्त प्रसाद से भक्तों की आय साल भर में ही दोगुनी हो जाती है। लोगों का इस मंदिर में बहुत आस्था है।
और भी हैं प्रसाद
मंदिर में सोने-चांदी के आभूषणों के अलावा पैसे तो मिलते ही हैं लेकिन उसके साथ-साथ और भी तरह के प्रसाद भक्तों को मिलते हैं। इन प्रासादों में श्री यंत्र, कौड़ियाँ, सिक्के, अक्षत और कुमकुम लगी पोटली भी शामिल है।
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महालक्ष्मी मंदिर के इस खास प्रसाद की वजह से अब न सिर्फ स्थानीय लोग बल्कि विदेशों से भी लोग माता के दर्शन के लिए लाइनों में खड़े दिख जाते हैं जो कि यह बताने के लिए काफी है कि माता महालक्ष्मी के इस विशेष मंदिर की ख्याति कहाँ-कहाँ तक पहुँच चुकी है।
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