काल भैरव को भगवान शिव का ही रूप माना जाता है। मान्यता है कि इनकी पूजा से भक्तों के सभी दुःख दूर हो जाते हैं और उनकी सारी अनसुनी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं। हालाँकि काल भैरव की साधना को बेहद कठिन माना गया है। भगवान भैरव की आराधना करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है, और साथ ही साथ कोर्ट-कचहरी में चल रहे मुक़द्दमों में भी जीत मिलती है। तंत्र साधना के लिए काल भैरव अष्टमी बेहद ही उत्तम मानी जाती है। काल भैरव अष्टमी के दिन व्रत और पूजा का विशेष विधान होता है।
जानें कब मनाई जाएगी काल भैरव अष्टमी?
नवंबर में काल भैरव अष्टमी 19 नवंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी। पुराणों में भैरव साधना के बारे में कहा गया है कि ये बहुत ही कठिन साधना होती है। भैरव बाबा की साधना करने के लिए सात्विकता और एकाग्रता का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी माना गया है। मान्यता के मुताबिक मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान शिव भैरव बाबा के रूप में अवतरित हुए थे। इसी वजह के चलते इस दिन को काल भैरव अष्टमी के रूप में मनाते हैं।
पूजन विधि:
भैरव बाबा की पूजा सदैव षोड्षोपचार पूजा सहित करनी चाहिए और इस दिन रात में जागरण करना चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि मार्गशीष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान काल भैरव का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि भगवान काल भैरव का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था इसलिए रात में भजन कीर्तन करते हुए भैरव कथा और पूजा-आरती करने से भक्तों को विशेष पुण्य मिलता है। भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराने का भी अपना महत्व बताया गया है।
शुभ मुहूर्त :
अष्टमी तिथि प्रारंभ : शाम 3 बज-कर 45 मिनट से (19 नवंबर 2019)
अष्टमी तिथि समाप्त : दोपहर 1 बज-कर 45 मिनट (20 नवंबर)
काल भैरव की पूजा का महत्व :
भैरव अष्टमी के दिन व्रत और विधि विधान से पूजा करने से शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों का नाश हो जाता है। इस दिन भैरव बाबा की विशेष पूजा अर्चना की जाती है जिससे भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं। इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन और पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है और ऐसा करने वाला भक्त निर्भय हो जाता है और हर तरह के कष्ट से दूर हो जाता है। अगर किसी इंसान पर तांत्रिक क्रिया का प्रभाव है तो काल भैरव अष्टमी के दिन पूजा पाठ करने से इन सभी क्रियाओं के प्रभाव को नष्ट किया जा सकता है।
काल भैरव की पूजा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा, जादू-टोना और भूत-प्रेत आदि से किसी भी तरह का कोई डर नहीं रहता। शिव पुराण में कहा गया है कि ”भैरवः पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मनः। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहितारूशिवमायया।” जिसका मतलब है कि, “भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं लेकिन अज्ञानी मनुष्य शिव की माया से ही मोहित रहते हैं।”