हर वर्ष हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाने वाला गोगा नवमी का त्योहार आज, 25 अगस्त को देशभर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। इस पर्व का महत्व मुख्यरूप से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बेहद ज्यादा होता है, जिसमें से ये पर्व राजस्थान का लोकपर्व है, जिसे गुग्गा नवमी के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदी पंचांग के अनुसार ये पर्व हर वर्ष भाद्रपद के कृष्णपक्ष की नवमी तिथि को आता है, जो इस वर्ष आज यानी 25 अगस्त को है। वहीं इंग्लिश कैलेंडर की माने तो ये पर्व जुलाई से अगस्त महीने में पड़ता है। इस दिन विशेष तौर से गोगाजी महाराज व नागों की पूजा किये जाने का विधान है। इस पर्व को गोगा देव (श्री जाहरवीर) के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
गोगा नवमी का धार्मिक महत्व
हिन्दू धर्म के अनुसार इस दिन गोगा देवता की पूजा करने से व्यक्ति की सांपों से रक्षा होती है, जिससे उसे किसी भी प्रकार का कोई भी सर्प भय नहीं सताता है। चूँकि गोगा देव को सांपों के देवता की उपाधि प्राप्त है, इसलिए इस दिन सर्प पूजन का भी विशेष महत्व होता है। गोगा देव की ये ख़ास पूजा श्रावणी पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन से ही आरंभ हो जाती है जो अगले 9 दिनों यानी नवमी तिथि तक चलती है इसलिए इसे गोगा नवमी कहते हैं।
इस पर्व को लेकर मान्यता है कि पौराणिक काल में गोगा देव महाराज का जन्म नाथ संप्रदाय के योगी गोरक्षनाथ के आशीर्वाद के बाद ही हुआ था। दरअसल, योगी गोरक्षनाथ ने गोगा देव की माता बाछल को प्रसाद रूप में अभिमंत्रित गुग्गल दिया था जिसके बाद ही उन्हें गोगा देव (जाहरवीर) की अपने पुत्र के रूप में प्राप्ति हुई थी।
निकाली जाती है गोगा बाबा की पवित्र छड़ी यात्रा
उनके जन्मोत्सव की ख़ुशी में ही यह पर्व बहुत ही श्रद्धा और विश्वास के साथ देशभर में मनाया जाता है। जिस दौरान बाबा जाहरवीर के सभी भक्त अपने घरों में अपने ईष्टदेव या देवी की एक वेदी बनाकर अखंड ज्योति जागरण सम्पन्न करते हैं। जिसके बाद गोगा देव जी की पूजा-आराधना करते हुए उनकी पौराणिक कथा सुनते हैं। ये प्रथा सालों से चली आ रही है, जिसे जाहरवीर का जोत कथा जागरण कहा जाता है। कई राज्यों में इस अवसर पर भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है। साथ ही इस पर्व के दिन गोगा जी महाराज की शोभायात्राएं भी निकाली जाती हैं। जिस दौरान भक्त अपने घरों में जाहरवीर पूजा और हवन कर गोगा देव को खीर तथा मीठे मालपुए का भोग लगाते हैं।
गोगा नवमी के पूजन की विधि
- भाद्रपद कृष्ण नवमी यानी गोगा नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर रोज़मर्रा के कामों से निवृत्त होकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहने।
- इसके बाद पूजा घर की साफ़-सफाई कर वहां वीर गोगाजी की मिट्टी की बनी मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें।
- उस प्रतिमा को गंगाजल के छींटे मारकर शुद्ध करें।
- इसके बाद गोगा देव जी की पूजा करते हुए उन्हें रोली, चावल से तिलक लगाएँ।
- इसके बाद उनकी कथा सुने व दूसरों को भी सुनाए।
- इसके बाद गोगा नवमी का लोक गीते गाए और अंत में उन्हें प्रसाद का भोग लगाएँ।
- गोगा देव जी को खीर, चूरमा, गुलगुले आदि का ही भोग लगाएँ।
- कई लोग इस पर्व पर गोगा देव जी की घोड़े पर सवार प्रतिमा की पूजा करते हैं।
- जिस दौरान गोगाजी के घोड़े के आगे दाल रखते हुए उसकी भी पूजा की जाती है।
- मान्यता है कि रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों को जो रक्षासूत्र (राखी) बांधती हैं, वह गोगा नवमी के दिन खोला जाता है, जिसे इसके बाद गोगा देव जी के सामने अर्पित किया जाता है।
- ऐसा करने से कहा जाता है कि इसके बाद बहन-भाई की रक्षा खुद गोगा देव जी करते हैं।
गोगा जयंती पर गाए जाने वाला लोक गीत
भादवे में गोगा नवमी आगी रे, भगता में मस्ती सी छागी रे,
गोगा पीर दिल के अंदर, थारी मैडी पे मैं आया,
मुझ दुखिया को तू अपना ले, ओ नीला घोड़े आळे।
मेरे दिल में बस गया है गोगाजी घोड़ेवाला,
वो बाछला मां का लाला वो है, नीला घोड़े वाला,
दुखियों का सहारा गोगा पीर।