जानें क्यों 12 सालों में सिर्फ एक बार की जाती है नंदा देवी राजजात यात्रा!

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माँ नंदा को शिव जी की पत्नी माना जाता है। भारत के उत्तराखंड में होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा एक धार्मिक यात्रा है जिसका आयोजन हर 12 साल पर किया जाता है। इस यात्रा को उत्तराखंड के प्रमुख सांस्कृतिक आयोजनों में से एक माना जाता है। चूँकि ये यात्रा बारह साल में सिर्फ एक बार ही होती है इसलिए इसकी तैयारियों पर ख़ास ध्यान दिया जाता है। आज हम आपको नंदा देवी यात्रा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं आखिर क्या है इस यात्रा की ख़ासियत और क्यों बारह साल पर सिर्फ एक बार ही ये यात्रा की जाती है। 

नंदा देवी को ससुराल भेजने के लिए आयोजित की जाती है ये यात्रा 

आपको बता दें कि नंदा देवी यात्रा असल में उत्तराखंड में पूज्य माँ नंदा को ससुराल भेजने के लिए आयोजित की जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान् शिव की पत्नी नंदा एक बार करीब बारह सालों तक अपने ससुराल नहीं जा पायी थी। इसलिए इस यात्रा का आयोजन हर बारह साल पर ही किया जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि उत्तराखंड के चमोली जिले के पट्टी चांदपुर और श्री गुरु को नंदा देवी का मायका माना जाता है। 

कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत 

माना जाता है कि सातवीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने अपनी राजधानी चांदपुर से बारह वर्षों तक माँ नंदा के मायके में रहने के बाद उन्हें ससुराल भेजने के लिए इस यात्रा का आयोजन किया था। उस समय इस यात्रा का आयोजन मुख्य रूप से राज परिवार के सदस्य, नौटियाल ब्राह्मणों, थोकी ब्राह्मणों और सयानों के मदद से की जाती थी। इसके बाद से लेकर हर बारह वर्ष के अंतराल पर पारंपरिक रूप से इस यात्रा का आयोजन होने लगा। आज नंदा देवी राजजात यात्रा एशिया की सबसे लंबी पैदल की जाने वाली यात्रा मानी जाती है। इसके साथ ही कुमाऊं और गढ़वाली संस्कृति के एक विरासत के रूप में भी इसे देखा जाता है। 

इस प्रकार से आरंभ की जाती है ये यात्रा 

आपको बता दें कि इस धार्मिक यात्रा की अगुवाई विशेष रूप से एक भेड़ करता है। चार सींग वाले इस भेड़ को चौसिंगा खाडू कहा जाता है। यात्रा की शुरुआत होने से पहले नंदा देवी मंदिर में पूजा अर्चना के बाद खाड़ी की पीठ पर एक पोटली बाँध दी जाती है, जिसमें नंदा देवी की श्रृंगार का समान और भक्तों द्वारा चढ़ाएं गए भेंट रखें जाते हैं। इसके बाद इस खाडू की अगुवाई में यात्रा का आरंभ किया जाता है। उत्तराखंड के चांदपुर नोटि गांव से प्रारंभ होकर हिमालय के लिए निकलता है।

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