वाल्मीकि जयंती कल, जानें महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

महर्षि वाल्मीकि के जन्म दिन को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को प्रकट दिवस के रूप में भी मनाते हैं। महर्षि वाल्मीकि एक महान ऋषि थे। उन्होंने ही रामायण की रचना की थी। वाल्मीकि जी का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। वर्ष 2019 में यह तिथि 13 अक्टूबर को पड़ रही है। आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहते हैं। यह तिथि धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।

वाल्मीकि जयंती 2019 शुभ मुहूर्त

सूर्योदय अक्टूबर 13, 2019, 06:20:24
सूर्यास्त अक्टूबर 13, 2019, 17:54:15
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ अक्टूबर 13, 2019, 00:39 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त अक्टूबर 14, 2019,  02:40 बजे तक

नोट: ऊपर दिया गया समय नई दिल्ली (भारत) के लिए है। अपने शहर के अनुसार पूर्णिमा तिथि का समय जानने के लिए यहाँ क्लिक करें – अश्विन पूर्णिमा

कौन थे महर्षि वाल्मीकि?

पौराणिक शास्त्रों में महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि के नाम से जाना जाता है। महर्षि वाल्मीकि का वास्तविक नाम रत्नाकर था और वे भील जाति से संबंध रखते थे। ऐसा कहा जाता है कि रत्नाकर एक डाकू था। एक बार उन्होंने जंगल के रास्ते जा रहे नारद मुनि को लूटने की कोशिश की थी। लेकिन नारद मुनि ने उनके हृदय को परिवर्तित कर दिया। 

उन्होंने लूट-पाट जैसे पापों रास्ता त्याग दिया और फिर ईश्वर की तपस्या में लीन हो गए, जिसके फलस्वरूप उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और तभी से उनका नाम महर्षि वाल्मीकि पड़ गया। आगे चलकर उन्होंने ही भगवान श्री राम की पत्नी माँ सीता को अपने आश्रम में शरण दी थी और उनकी संतान लव-कुश को शिक्षा दी थी। 

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वाल्मीकि जयंती मनाने की विधि 

  • वाल्मीकि जयंती के दिन, प्रातः जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए एवं अपने इष्ट देवताओं की पूजा करनी चाहिए। 
  • इस दिन महर्षि वाल्मीकि के जीवन को प्रदर्शित एक शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में शामिल श्रद्धालु वाल्मीकि जी से संबंधित भजन गाते हैं। 
  • इस दिन ग़रीब और ज़रुरत मंद लोगों को भंडारा खिलाया जाता है। इसके अलावा दान-दक्षिणा का भी कार्यक्रम होता है। 
  • मंदिरों को फूलों और झालरों से सजाया जाता है। साथ ही कई मंदिरों में रामायण का मंचन कर उनके जीवन पर प्रकाश डाला जाता है। 

शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा के दिन ही वाल्मीकि जयंती मनायी जाती है। यह पूर्णिमा तिथि बेहद ख़ास होती है। इस दिन व्रत रखा जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार आश्विन पूर्णिमा के दिन चंद्रमा एवं पृथ्वी दोनों एक-दूसरे के बेहद नजदीक होते हैं। इसके कारण माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों द्वारा अमृत वर्षा होती है जो हमारे जीवन के दुष्प्रभाव को दूर करने के साथ ही हमारे लिए एक सकारात्मक वातावरण को तैयार करती हैं।

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