शनि से जुड़ी इन बातों का अवश्य रखना ध्यान, तभी मिलेगी सभी कष्टों से मुक्ति!

ज्योतिष विज्ञान में शनि बेहद को क्रूर व पापी ग्रह माना जाता है, इसी कारण शनि की साढ़े साती, ढैया और पनौती का नाम सुनने भर से ही लोग डर जाते हैं। लेकिन वास्तव में ये शनि का असल स्वभाव नहीं होता है, बल्कि शनि देव तो बेहद न्यायप्रिय होते हैं इसलिए भी उन्हें कलियुग के न्यायाधीश का दर्जा प्राप्त होता है। जो अपने कर्तव्य अनुसार ही हर व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर फल देते हैं। इसमें जहाँ बुरे कर्म करने वालों को शनि दंडित करते हैं, तो वहीं अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को शनि शुभ फलों की प्राप्ति कराते हैं।

शनि की स्थिति से ही संभव हो सका था रावण पुत्र मेघनाद का अंत

शनि के इसी स्वभाव के चलते शास्त्रों में भी शनि देव के क्रोध और उसकी स्थिति को लेकर आपको कई उदाहरण सुनने को मिलते हैं। उन्ही में से एक के अनुसार माना जाता है कि, रावण पुत्र मेघनाद की कुंडली में रावण ने सारे ग्रहों को पकड़कर कुंडली के सबसे शुभ माने जाने वाले 11वें घर या भाव में क़ैद कर दिया था। परन्तु लंकापति रावण भी शनि देव को रोक न सका और उन्होंने रावण की लाख कोशिशों के बावजूद भी अपना पैर मेघनाद की कुंडली के अनिष्ट-कारक 12वें भाव में बढ़ा दिया। शनि देव की इसी चाल के कारण अपराजेय समझे जाने वाले मेघनाद का अंत संभव हो पाया।

कुंडली में शनि की स्थिति

वैदिक ज्योतिष की बात करें तो उसमें भी शनि को कर्म और सेवा का कारकतत्व प्रदान होता है। अतः जातक की नौकरी और व्यवसाय से जुड़ी जानकारी के लिए शनि की स्थिति को ही देखा जाता है। किसी भी कुंडली में शनि का शुभ प्रभाव होने पर व्यक्ति को लगातार सफलता और समृद्धि मिलती है, जबकि किसी कुंडली में शनि का कमजोर स्थिति से होना जातक को नौकरी में बाधा, लगातार संघर्ष, सफलता मिलने में देरी, नौकरी छूट जाने और तबादले का भय, आदि दिक़्क़तों से ग्रस्त रखता है।

ये माना गया है कि कुंडली के अलग-अलग भावों में शनि का फल भी अलग-अलग मिलता है। शनि को सूर्य पुत्र भी कहा जाता है। शनि देव के फलों के चलते राजा को रंक और रंक को राजा बनते देर नहीं लगती है। तो चलिए आइए आज आपको बताते हैं उन 6 अचूक उपायों के बारे में जिनसे आप शनि के प्रकोप को तो शांत कर ही सकते हैं साथ ही उनकी कृपा-दृष्टि को भी आकर्षित करते हैं :–

1. नियमित हनुमान चालीसा का पाठ

माना जाता है कि नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनिदेव के प्रकोप से बचा जा सकता है। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति शनि की ढैया या साढे साती से ग्रस्त है और शनि द्वारा दिए कष्टों से पीड़ित हैं, तो उस जातक के लिए हनुमान चालीसा का पाठ सबसे बड़े रामबाण उपाय की तरह है। इसके पीछे की मुख्य वजह को समझे तो माना जाता है कि हनुमान जी ने ही लंका में दशग्रीव के बंधन से शनि देव को मुक्ति दिलाई थी। इसके अलावा एक मान्यता अनुसार ये भी कहा जाता है कि कलियुग में अभिमान होने के कारण एक बार शनिदेव भगवान हनुमान जी के पास गए और बोले – “तुमने मुझे त्रेता में ज़रूर बचाया था, लेकिन अब यह कलिकाल है। मुझे अपना काम करना ही पड़ता है। इसलिए आज से तुम्हारे ऊपर मेरी साढ़े साती शुरू हो रही है। मैं तुम पर आ रहा हूँ।” इतना कहते ही शनिदेव हनुमान जी के मस्तक पर सवार हो गए। जिस कारण हनुमान जी को सिर पर ज़ोर से खुजली होने लगी, जिसे मिटाने के लिए भगवान हनुमान ने अपने सिर पर एक विशाल पर्वत रख लिया और उसके नीचे शनिदेव दब गए। जिसके बाद ही शनि देव ने हनुमान जी से प्रार्थना करते हुए ये वचन दिया कि आज के बाद वो हनुमान जी को या उनके भक्तों को कभी परेशान नहीं करेंगे। इसलिए माना जाता है कि हनुमान चालीसा के स्तोत्रों में बहुप्रचलित और अंनत शक्ति संपन्न है, जिसका पाठ करने से शनि देव के भी सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।

2. निरंतर करें शनि मंत्र का जाप

शास्त्रों में कहा जाता है कि मंत्रों में इतनी शक्ति होती है कि उनका उपयोग कर मरे हुए व्यक्ति को भी ज़िन्दा किया जा सकता है। इसलिए हर देवी-देवता का अपना मंत्र निर्धारित होता है, जिसे सही तरीके से, पूर्ण विधि-पूर्वक जपने से आप देवी-देवता को बेहद सरलता से प्रसन्न कर सकते हैं। ऐसा ही शनि देव के साथ भी किया जा सकता है। शनि देव को प्रसन्न कर कोई भी जातक उनके शुभ फलों का भागी बन सकता है। इसलिए माना जाता है कि शनि देव के मंत्र “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनिश्चराय नमः” का 40 दिनों में मात्र 19,000 बार जाप करने से शनि की साढ़ेसाती में बहुत लाभ मिलता है।

शास्त्रों अनुसार शनि देव के बीज मन्त्रों में मौजूद हर एक अक्षर की अपरिमित शक्ति उसकी ढैया और साढ़े साती के ताप को खत्म करती हैं। ऐसे में यदि कोई शनि देव के इस मन्त्र का जाप करता है तो वो उसे शनि के शुभ फलों का लाभ मिलता है। इसके अलावा दशरथ कृत शनि स्तोत्र भी शनि के दुष्प्रभावों से बचने का सबसे कारगर उपाय है।

3. तेल, तिल, और छाया पात्र का दान

माना जाता है कि तिल, तेल और छाया पात्र दान शनिदेव को अत्यन्त प्रिय हैं। ऐसे में इन चीज़ों का दान कर शनि की शान्ति संभव है। क्योंकि कहा जाता है कि इन चीज़ों का दान शनि देव के सभी कष्टों से निजात दिलाने में कारगर है। जिसमें से छाया पात्र दान की विधि बहुत ही सरल होती है। इसके लिए आपको मिट्टी के किसी बर्तन में सरसों का तेल लेना है, फिर उसमें अपनी छाया देखकर उसे किसी को दान कर दें। इस दान से शनि के आपके ऊपर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को तो ख़त्म किया ही जा सकता है, साथ ही आप उनका आशीर्वाद भी प्राप्त कर पाने में सक्षम बनते हैं।

4. धारण करें धतूरे की जड़

वैदिक ज्योतिष अनुसार भिन्न-भिन्न जड़ों को बाजू या गले में धारण कर अलग-अलग ग्रहों की शान्ति सुनिश्चित की जा सकती है। इसको लेकर कई विशेषज्ञ तो ये भी कहते हैं कि रत्न धारण करना कभी-कभी नुक़सानदायक होता है, लेकिन जड़ धारण करने से ऐसी कोई भी आशंका नहीं रहती है। जहाँ रत्न अलग-अलग ग्रहों की शक्ति बढ़ाने का काम करते हैं, तो वहीं जड़ियाँ ग्रहों की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देने का कार्य करती हैं। इसलिए ही शनि देव को प्रसन्न करने व उनकी कृपा पाने के लिए व्यक्ति को धतूरे की जड़ धारण करने की सलाह दी जाते है। इसके लिए व्यक्ति को धतूरे की जड़ का छोटा-सा टुकड़ा लेकर किसी कपड़े में लपेट कर अपने गले या हाथ में बांधकर धारण करना होता है। जिसके बाद शनि की ऊर्जा उस व्यक्ति को सकारात्मक रूप से मिलने लगेगी और जल्दी ही उसको अपने जीवन में आए बदलाव भी महसूस होंगे।

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5. शनि की शानि के लिए धारण करें सात मुखी रुद्राक्ष

हिन्दू धर्म में जड़ियों की ही तरह रुद्राक्ष को भी हानि रहित महाउपाय माना गया है। क्योंकि शनि देव को भगवान शिव का भक्त बताया गया है इसलिए ही सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना न सिर्फ़ भगवान शिव को प्रसन्न करता है, बल्कि आपको शनि देव का आशीर्वाद भी दिलाता है। पुराणों अनुसार सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने से घर में सुख-समृद्धि के साथ ही लक्ष्मी माता की कृपा भी हमेशा बनी रहती है। साथ ही सेहत से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्याओं में भी इसे बहुत प्रभावी माना गया है। आप इस रुद्राक्ष को किसी भी सोमवार या शनिवार के दिन गंगा जल से शुद्ध करके धारण कर सकते हैं। जिसके बाद आपको शनि देव के सभी कष्टों से छुटकारा मिल पाएगा और साथ ही समृद्धि भी प्राप्त हो पाएगी।

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6. नाव की कील का छल्ला और काले घोड़े की नाल

मान्यता अनुसार नाव की कील का छल्ला और काले घोड़े की नाल के प्रयोग से भी शनि देव के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। ऐसे में जो भी व्यक्ति शनि की अंतर्दशा या महादशा से पीड़ित है या उनसे मिलने वाले कष्टों और असफलताओं से परेशान हैं, तो उसके लिए नाव की कील का छल्ला धारण करना सबसे कारगर उपाय है। इसके प्रभाव से शनिदेव के हर प्रकार के कष्टों से निजात पाई जा सकती है। वहीं यदि किसी के घर व ऑफ़िस में स्थितियाँ विपरीत चल रही हैं तो ऐसे में काले घोड़े की नाल घर या दफ्तर में लगाना बेहद उपयोगी साबित होता है। इसके प्रभाव से हमेशा घर और ऑफ़िस में सुख, शांति व समृद्धि का वातावरण रहता है।

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