संकष्टी चतुर्थी कल: जानें महत्व और पूजा विधि !

हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी को एक प्रमुख पर्व माना जाता है। जिस दौरान विशेष तौर पर विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार जिस तरह किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले विशेष रूप से सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। ठीक उसी प्रकार आज हम आपको संकष्टी चतुर्थी के महत्व और इस दिन की जाने वाली पूजा अर्चना की संपूर्ण विधि के बारे में बताएँगे। आइये जानते हैं आखिर हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी को क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त

संकष्टी चतुर्थी को सकट चौथ भी कहा जाता है। इस दिन किया जाने वाला व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूरा होता है, इसलिए इस माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी कल यानी सोमवार, 19 अगस्त को है। इसी लिए कल रात 09 बजकर 21 मिनट पर चंद्रमा उदय के बाद चंद्र को अर्घ्य देकर और गणेश जी का विधि-विधान से पूजन किया जाएगा।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

हिन्दू पंचांग अनुसार हर महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ही संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाए जाने का विधान है। ये मुख्य रूप से हर माह में दो बार आती है, जो दो प्रकार की होती हैं। इसमें से पूर्णिमा तिथि के बाद आने वाली चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी और आमवस्या के बाद आने वाली चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी वाले दिन विशेष तौर से भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना को महत्व दिया जाता है। क्योंकि मान्यता अनुसार ये कहा जाता है कि इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना करने से किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन में आने वाले सभी विघ्नों से मुक्ति मिल सकती है। इसके अलावा इस ख़ास दिन गणेश जी की विधि अनुसार पूजा-आराधना करने से व्यक्ति को स्वस्थ्य संबंधी हर प्रकार की समस्याओं से भी निजात मिल जाती हैं। इन्ही वजह से इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना करने का और उनको समर्पित व्रत रखने का विशेष महत्व होता है।

संकष्टी चतुर्थी पर ऐसे करें भगवान गणेश जी की पूजा

  • इस दिन सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करने के बाद स्वच्छ-साफ़ सुथरे वस्त्र धारण करें।
  • अब उत्तर दिशा की ओर एक चौकी पर लाल या पीले रंग का साफ़ कपड़ा बिछाए।
  • इसके पश्चात उसपर भगवान श्री गणेश की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें।
  • इसके बाद उस मूर्ति पर गंगाजल का छिड़काव कर उसे शुद्ध करें।
  • अब सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें।
  • इसके बाद पूजन विधि शुरू करते हुए सबसे पहले गणेश जी को जल, दूर्वा, अक्षत, पान अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान गणेश की पूजा करें और उन्‍हें जल भी अर्पित करें।
  • जल में तिल मिलाकर ही अर्घ्‍य दें।
  • अब श्री गणेश जी को धूप एवं दीप दिखाते हुए उनसे अपने अच्छे जीवन की कामना करें। इस दौरान “गं गणपतये नम:” मंत्र का लगातार जाप करते रहें।
  • इसके बाद भगवान गणेश का पाठ करें।
  • इस दौरान गणेश जी की वंदना और उनकी आरती करें।
  • इसके बाद शाम के समय उन्हें प्रसाद का भोग लगाए।
  • प्रसाद के रूप में गणेश जी को मोतीचूर के लड्डू, बूँदी और पीले मोदक अवश्य चढ़ाएं। मान्‍यता है कि ऐसा करने से धन-सम्‍मान में वृद्धि होती है।
  • अब चतुर्थी पूजा विधि संपन्न करने के लिए त्रिकोण के अगले भाग पर एक घी का दीया, मसूर की दाल और सात सबूत मिर्च रख दें।
  • अंत में पूजा विधि संपन्न होने के बाद दूध, चंदन और शहद से चंद्रदेव को अर्घ दें और स्वयं प्रसाद ग्रहण कर अपना उपवास खोले।
  • इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखें कि गणेश जी को तुलसी कदापि न चढ़ाएं। क्योंकि कहा जाता है कि ऐसा करने से
  • वह नाराज हो जाते हैं। मान्‍यता है कि तुलसी ने गणेश जी को शाप दिया था।
  • इसलिए उन्‍हें शमी का पत्ता और बेलपत्र ही अर्पित करें।
  • इस दिन तिल का दान करना बेहद शुभ होता है।
  • व्रत वाले दिन ज़मीन के अंदर होने वाले कंद-मूल का सेवन नहीं करना चाहिए। यानी कि मूली, प्‍याज, गाजर और चुकंदर न खाए।

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