परमा एकादशी : दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति कराता है यह व्रत, जानें पूजन विधि

परमा एकादशी जिसे कई जगहों पर पुरुषोत्तम एकादशी भी कहते हैं, अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह बात तो हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि प्रत्येक वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं। लेकिन मलमास में एकादशी की संख्या 24 से बढ़कर 26 हो जाती है। इस साल परमा एकादशी 13 अक्टूबर, मंगलवार को मनाई जाएगी।

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तो आइये जानते हैं परमा एकादशी की व्रत की कथा, इस दिन की पूजन विधि और परमा एकादशी के महत्व के बारे में संपूर्ण जानकारी।

कब है परमा एकादशी/ शुभ मुहूर्त 

सबसे पहले बात परमा एकादशी के शुभ मुहूर्त की।

परमा एकादशी : 13-अक्टूबर, 2020 – दिन मंगलवार

परमा एकादशी पारणा मुहूर्त : (14, अक्टूबर को) 06 बज-कर 21 मिनट 36 सेकंड से 08 बज-कर 39 सेकंड 41 मिनट तक 

कुल अवधि :2 घंटे 18 मिनट

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सभी एकादशी की तरह परमा एकादशी भी भगवान विष्णु को समर्पित होती है। मान्यता है कि इस दिन पूजा और उपवास करने से दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति अवश्य होती है। क्योंकि यह एकादशी परम दुर्लभ सिद्धियों की दाता मानी गयी है इसलिए इसका नाम परमा एकादशी है।

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परमा एकादशी पूजन विधि 

किसी भी पूजा को सही ढंग से पूरा करने के लिए ये बेहद ज़रूरी है कि आपको पूरा करने से सही विधि अवश्य पता हो। तो आइये जानते हैं कि परमा एकादशी की सही पूजन विधि क्या होती है। 

  • अन्य किसी भी व्रत/पूजन की तरह परमा एकादशी का नियम भी सामान्य है लेकिन इस दिन का व्रत लगातार पांच दिनों तक किया जाता है।
  • इस दिन भी सुबह उठकर स्नानादि करें और फिर हाथ में फल-फूल लेकर व्रत का संकल्प लें।
  • पूजा करने के बाद पांच दिनों तक व्रत रखें। जिसमें एकादशी से अमावस्या तक जल का त्याग किया जाता है। केवल भगवत चरणामृत लिया जाता है। कहते हैं कि जो कोई भी मनुष्य इस कठिन व्रत को पूरा कर लेता है उसे दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
  • पांचवें दिन किसी ब्राह्मण को सामर्थ्यानुसार दान-दक्षिणा देने के बाद ही यह व्रत पूरा होता है।
  • हालाँकि कुछ लोग अपनी स्वेच्छा से इस उपवास का पारण द्वादशी के दिन भी कर लेते हैं।

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क्या है परमा एकादशी का महत्व 

यूँ तो साल में पड़ने वाली प्रत्येक एकादशी का व्रत जीवन में सुख-समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिये किया जाता है। लेकिन अधिक मास में व्रत-उपवास, दान-पुण्य करने का अलग और विशेष ही महत्व बताया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस मास में पुरुषोत्तम भगवान की विशेष कृपा होती है। परमा एकादशी पूजा और उपवास के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो कोई इंसान आर्थिक संकट से जूझ रहा है, या मृत्योपरांत मोक्ष की कामना रखते हैं उन्हें परमा एकादशी का उपवास अवश्य रखना चाहिए।

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एकादशी के दिन वैसे तो भगवान विष्णु की पूजा का विधान बताया गया है, लेकिन इस दिन की पूजा में यदि आप तुलसी माता की भी पूजा करें, तो इससे आपके जीवन में किसी भी तरह की आर्थिक परेशानी दूर हो जाती है।

इसके अलावा परमा एकादशी की पूजा में इन मन्त्रों का ज़रूर करें जप 

मंत्र 

ॐ सुभद्राय नमः, ॐ सुप्रभाय नमः ।।

नमस्कार मंत्र

मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी 

नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते

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परमा एकादशी व्रत कथा 

काम्पिल्य नामक नगरी में सुमेधा नाम के एक ब्राह्मण अपनी पत्नी पवित्रा के साथ रहते थे। दोनों पति-पत्नी बेहद नेक और धर्मपरायण थे। उनके पास जो कुछ भी था उसमें वो अपने अतिथियों का स्वागत भी करते थे, लेकिन उन्हें निर्धनता का दुःख भी होता था। एक दिन सुमेधा ने अपनी पत्नी से कहा कि अब मैं धन कमाने के लिए परदेस जाना चाहता हूँ।

तब सुमेधा की पत्नी ने कहा कि, हम भगवान की पूजा करते हैं, लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, किसी का कोई बुरा नहीं करते हैं, लेकिन फिर भी यदि हम ऐसे हैं तो इसमें ज़रूर भगवान की कोई मर्ज़ी होगी। या शायद ये हमारे पूर्व-जन्म का फल हो इसलिए आप कहीं मत जाइये। अपनी पत्नी की बात मानकर सुमेधा ने परदेस जाने का विचार त्याग दिया

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एक दिन कौण्डिल्य ऋषि उधर से गुज़र रहे थे तो ब्राह्मण दंपति के यहां विश्राम के लिये रूक गये। ब्राह्मण दंपत्ति ने ऋषि का खूब आदर सत्कार किया। बाद में सुमेधा ने ऋषि से अपनी गरीबी दूर करने का कोई उपाय पूछा। तब महर्षि कौण्डिल्य ने उनसे कहा कि, ‘हे विप्रवर मलमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जो कि परमा एकादशी होती है यदि इस दिन विधिनुसार आप अपनी पत्नी के साथ इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और उपवास रखते हैं तो आपके दिन भी अवश्य ही बदल जायेंगे। इसके बाद दोनों ने ऋषि के बताये अनुसार ही दोनों ने उपवास रखा। जिसके बाद सच में दोनों के दिन बदल गये। सिर्फ इतना ही नहीं, परमा एकादशी व्रत के प्रभाव से सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने के बाद उन्होंने मृत्युपर्यंत विष्णु लोक की भी प्राप्ति हुई।

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