मुंडन संस्कार का क्या है विशेष महत्व, जानें इसकी संपूर्ण विधि

हिन्दू धर्म के सभी 16 संस्कारों में मुंडन संस्कार भी एक महत्वपूर्ण संस्कार है। बच्चे के जन्म के बाद उसके सिर पर पाए जाने वाले केश या बाल अशुद्ध माने जाते हैं। हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार 84 लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद मनुष्य योनि में जन्म होता है। पौराणिक तथ्यों के आधार पर ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्म के कुकृत्य कार्य और ऋणों से मुक्ति के लिए मुंडन संस्कार द्वारा शिशु के जन्मकालीन बाल काट दिए जाते हैं। आज इस लेख के जरिये हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर क्या है मुंडन संस्कार का महत्व और क्या है इसे संपन्न करने की सही विधि। हिन्दू धर्म के सभी संस्कारों में मुंडन संस्कार की विशेष अहमियत के बारे में आज इस लेख के जरिये हम आपको बताने जा रहे हैं। आईये विस्तार से जानते हैं मुंडन संस्कार के महत्व और उसे पूरा करने की सम्पूर्ण विधि के बारे में।

मुंडन संस्कार को संपन्न करने का सही समय

विशेषतौर पर मुंडन संस्कार शिशु के जन्म के महज एक वर्ष पूरे होने के बाद ही करा लेना चाहिए। हालाँकि यदि आप शिशु के एक वर्ष पूरे होने पर मुंडन संस्कार नहीं करवा पाते हैं तो कम से कम दो अथवा तीन वर्ष पूरे होने तक जरूर करवा लें। ऐसा माना जाता है कि बच्चे का मुंडन संस्कार जितनी जल्दी संपन्न करवाया जाता है उसका मानसिक विकास भी उतनी ही जल्दी होता है। इसलिए शिशु के जन्म के करीबन तीन वर्ष पूरे होने तक मुंडन संस्कार अवश्य करवा लेना चाहिए।

मुंडन संस्कार का विशेष महत्व

हिन्दू धर्म के सभी 16 संस्कारों में मुंडन संस्कार को विशेष महत्व इसलिए दिया जाता है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि मनुष्य का जन्म करीबन 84 लाख विभिन्न योनियों में होने के बाद मनुष्य योनि में होता है। जन्म के समय शिशु के सिर पर पाए जाने बाल उसके पिछले जन्म के ऋणों और पाप कर्मों का प्रतीक माने जाते हैं, इसकी शुद्धि के लिए ही मुंडन संस्कार संपन्न करवाया जाता है। जन्म से पूर्व शिशु के मस्तिष्क में बहुत से ऐसे पाश्विक संस्कार और विचार रहते हैं जिसे मनुष्य योनि में जन्म के बाद पूरी तरह से हटाना बेहद आवश्यक होता है। ऐसा माना जाता है कि अगर मुंडन संस्कार ना करवाया जाय तो शिशु के मन मस्तिष्क पर पिछले जन्म के अनुपयुक्त प्रभाव विद्यमान रहते हैं। इन्हें जड़ से हटाने और उसके स्थान पर मानवतावादी विचारों को प्रतिस्थापित करने के लिए मुंडन संस्कार को क्रियान्वित किया जाता है। अगर मनुष्य योनि में जन्म हुआ है तो शिशु के अंदर मनुष्य के गुण आना बेहद आवश्यक है। मुंडन संस्कार के दौरान शिशु के सिर से उसके जन्मकालीन बालों को हटाया जाता है और इसके साथ ही साथ शिशु के मस्तिष्क से उसके पूर्व जन्म के जो भी ऋण और पाप कर्म होते हैं उसका निवारण हो जाता है। मुंडन संस्कार विशेषरूप से किसी धार्मिक स्थल पर ही करवाना चाहिए जिससे शिशु को वहां के दिव्य वातावरण का लाभ मिल सके। मुंडन संस्कार के दौरान बहुत सी ऐसी विधि होती हैं जिसका प्रतिपादन विधिवत करवा लेना चाहिए।

इस प्रकार से करें मुंडन संस्कार की तैयारी

  1. मस्तक लेपन

मुंडन संस्कार के दौरान सबसे पहले शिशु के बालों को पानी में गाय का दूध, दही और घी मिलाकर भिगोते हैं। हिन्दू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है, जो कि काफी परोपकारी और सौम्य प्रवृति की होती हैं। लिहाजा शिशु के बालों को गौ पदार्थों से इसलिए भिगोया जाता है ताकि उसके अंदर भी गौ माता के सभी परोपकारी गुण समा सकें। गाय का दूध ,दही और घी को स्नेहहिल माना जाता है, और जब शिशु के मस्तक को उससे भिगोया जाता है तो ये प्रार्थना की जाती है कि शिशु में भी गौ माता के समान ही प्रेम भाव और स्नेह भाव उत्पन्न हो सके। मुंडन संस्कार के दौरान इस क्रिया के करवाए जाने के पीछे यही उद्देश्य होता है कि शिशु का मानसिक विकास नैतिक और वांछनीय दिशा में हो ना कि अनैतिक और अवांछनीय दिशा में। मुंडन संस्कार के दौरान सबसे पहले माता पिता शिशु को गोद में लेकर उसके सिर को दूध, दही और घी के मिश्रण से गीला करें। इस दौरान

“ॐ सवित्रा प्रसूता दैव्या, आप उदंतु ते तनूम।
दीर्घायुत्वाय वर्चसे “(पार.गृ.सू.2.2.1)

मंत्र का परस्पर जाप करें। माता पिता देवी देवताओं से इस दौरान शिशु के उत्तम भविष्य और मस्तिष्क विकास की कामना करें।

  1. त्रिशिखा बंधन

मनुष्य के मस्तिष्क को अपने आप में एक चमत्कार का केंद्र माना गया है। मनुष्य के मस्तिष्क को परस्पर तीन भागों में विभाजित किया गया है, जो हैं निर्माण केंद्र, पोषण केंद्र और नियंत्रणपरक केंद्र। मस्तिष्क के इन तीन केंद्रों को परस्पर ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र यानि की शिव से सम्बंधित माना जाता है। मुंडन संस्कार के समय शिशु के बालों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है, तीनों हिस्सों को कुश से बंधे कलावे से बाँधा जाता है। सिर के बालों को तीन हिस्सों में बांटा जाता है पहला गुच्छा आगे की तरफ और बाकी दो हिस्से परस्पर सिर के दायें और बाएं तरफ बाँधे जाते हैं। सबसे पहले सिर के दाएं बालों के गुच्छे जिसे ब्रह्मा ग्रंथि भी कहते हैं, उसमें मंत्रोउच्चारण के साथ ही कलावा बाँधा जाता है। इस दौरान

“ॐ ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद विसीमतः सुरुचो वेनआवः।
सबुधन्या उपमा अस्यविष्ठा, सतश्च योनिमसतश्च विवः “(1.3.3)

मन्त्र का जाप करें। इसी तरीके से शिशु के सिर के बाएं हिस्से के बालों को कलावा से बांधें और भगवान विष्णु से कामना करें कि बच्चे के मस्तिष्क का संचालन केंद्र विष्णु जी की शक्तियों से प्रतिबद्ध हो। इस दौरान

“ॐ इदं विष्णुविर्चक्रमे, त्रेधा निदधे पदम्।
समूढमस्य पाश्वसुरे स्वाहा। “(5.1.5)

मन्त्र का परस्पर जाप करें। इसी प्रकार से शिशु के सिर के अगले हिस्से के बालों को कलावा से बांधें और रूद्र देव अर्थात शिव जी से कामना करें की शिशु के मस्तिष्क पर किसी भी प्रकार के असुर शक्तियों का वर्चस्व ना हो। इस दौरान नीचे दिये गये मंत्र का जाप करें।

“ॐ नमस्ते मन्यव, उतो तइषवे नमः।
बाहुभ्यामुत ते नमः।” (1.6.1 )  

  1. छुरा पूजन

मुंडन संस्कार के लिए प्रयोग किया जाने वाला छुरा या उस्तरा भी ऐसे ही होने चाहिए जो विशेष रूप से इन्हीं प्रयोजनों में इस्तेमाल किया जाने वाले हों। ध्यान रखें कि इस संस्कार के लिए पुरानी कैंची या उस्तरे का प्रयोग ना करें बल्कि नया और तेजधार उस्तरा ही इस्तेमाल करें। प्राचीन काल में अमूमन मुंडन संस्कार के दौरान पुरोहित ही अपने पास रखे नए उस्तरे से मुंडन संस्कार संपन्न करते थे, लेकिन आजकल ये काम नाई द्वारा करवाया जाता है। इस क्रम में इस बात का विशेष ध्यान रखें कि प्रयोग किया जाने वाला उस्तरा या कैंची इससे पहले कभी इस्तेमाल ना किया गया हो। जिस औजार का इस्तेमाल मुंडन संस्कार के लिए किया जाने वाला हो उसे सबसे पहले मिट्टी का लेप लगाकर गर्म पानी से अच्छी प्रकार से धो लें। इसके पश्चात उस छुरी या उस्तरे को पूजा के लिए तैयार की गयी तस्तरी में रखें। इसके बाद छुरी पर कलावा बाँधें और धूप, दीप, फूल और अक्षत से विधिवत पूजन करें। छुरे या उस्तरे के इस पूजन का विशेष उद्देश्य यह है कि मुंडन संस्कार के लिए प्रयोग किया जाने वाला औजार मन्त्रों की शक्ति से समाहित हो सके। इस दौरान अभिभावक नीचे दिये गये मंत्र का उच्चारण करें।

“ॐ यत क्षुरेण मज्जयता सुपेशसा, वप्ता वपति केशान।
छिन्धि शिरो मस्यायुः प्रमोषीः। “(पा.गृ.सृ.2.1.17)

  1. त्रिशिखाकर्तन

शिशु के सिर के बालों को तीन विभिन्न केंद्रों में विभाजित करने के बाद दैवीय शक्तियों से कामना की जाती है कि शिशु में किसी भी प्रकार के कुसंस्कार और दुष्प्रवृतियां ना आयें। जिस प्रकार से जंगल में पनपने वाले जंगली पौधों को समय-समय पर काटना जरूरी होता है उसी प्रकार से शिशु के जन्म के बाद उसके जन्मकालीन केशों को काटना बेहद आवश्यक होता है। चूँकि शिशु के केशों को तीन हिस्सों में बांटा जाता है, ब्रह्मा ग्रंथि, रूद्र ग्रंथि और विष्णु ग्रंथि। ब्रह्मा ग्रंथि कर्तन को काटने का उद्देश्य ये होता है कि शिशु के मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का द्वेष, ईर्ष्या और विध्वंसक विचार ना आये। इस प्रकार विष्णु कर्तन और रूद्र कर्तन के पीछे मुख्य उद्देश्य क्रमशः ये होता है कि शिशु के मस्तिष्क को परस्पर पोषण मिलता रहे और ईश्वरीय मर्यादा में किसी भी प्रकार कि कोई अन्य शक्ति का हस्तक्षेप ना होने पाए। मुंडन संस्कार के दौरान विशेषरूप से पुरोहित ही शिशु के बालों की तीनों ग्रंथियों को परस्पर मंत्रोउच्चारण के साथ काटते हैं। इस दौरान वहां मौजूद सभी लोगों को ये कामना करनी चाहिए कि विनाशक शक्तियों का नाश हो रहा है और उसकी जगह रचनात्मक प्रवृतियों के लिए स्थान बन रहा है। ब्रह्मा ग्रंथि को काटने के दौरान विशेष रूप से

“ॐ येनावपत सविता क्षुरेण, सोमस्य राज्ञो वरुणस्य विद्वान्।
तेन ब्राह्मणो वपतेदमस्य,गोमानश्वानयमस्तु प्रजावान। “(-अथर्व.6.6.7.3)

मंत्र का उच्चारण किता जाता है। विष्णु ग्रंथि को काटने के दौरान

“ॐ येन धाताबृहस्पते, अग्नेरिन्द्रस्य चायुषेवपत।
तेन त आयुषे वपामि, सुश्लोक्याय स्वस्तये।(आश्र्व.गृ.सू.1.17.12)”

मन्त्र का जाप करना चाहिए। इसी प्रकार रूद्र ग्रंथि को काटने के दौरान नीचे दिये गये मंत्र का जाप किया जाना चाहिए।

“ॐ येन भूयश्च रात्र्यां, ज्योक च पश्याति सूर्यम।
तेन त आयुषे वपामि, सुश्लोक्याय स्वस्तये।(आश्र्व.गृ.सू.1.17.12)

  1. नव वस्त्र पूजन

नव वस्त्र पूजन का तात्पर्य यह है कि मुंडन संस्कार के वक़्त शिशु के जन्मकालीन केशों को हटाकर जिस प्रकार मनुष्य जीवन में उसका स्वागत किया जाता है ठीक उसी प्रकार नए वस्त्र पहनाकर उसमें नए संस्कार डालने की कोशिश की जाती है। जिस प्रकार से सांप अपनी केचुली बदलकर नए जीवन में प्रवेश करता है ठीक उसी प्रकार मुंडन संस्कार के दौरान शिशु को भी पिछले जन्म के कृत्यों से मुक्त करवाने के लिए उसके जन्मकालीन बालों को हटाया जाता है और साथ ही पुराने वस्त्रों को उतारकर नए वस्त्र धारण करवाए जाते हैं। इस क्रम में एक तस्तरी में शिशु के नए वस्त्रों को रखा जाता है और उसपर अक्षत और फूलों को चढाने के साथ ही

“ॐ तस्माद यज्ञात्सर्वहुत, ऋच चः समानि जज्ञिरे।
छन्दा सि जज्ञिरे तस्माद, यजुस्तस्मादजायत “ (31.7)

मन्त्र का उच्चारण किया जाता है। नव वस्त्र पूजन के समापन के बाद अग्नि स्थापना कर विशेष आहुति का आयोजन किया जाता है और इस दौरान गायत्री मंत्र के उच्चारण के साथ ही विशेष आहुतियां दी जाती हैं। इस विशेष हवन के दौरान खीर में मेवा मिलाकर

“ॐ भूभुर्वः स्वः।
अग्नि आयू षि पवस आ सुवोर्जमिषं च नः।
आरे बाधस्वदुच्छुना स्वाहा।
इदं अगन्ये इदं न मम (19.37.35.16)

 

मन्त्र का उच्चारण करते हुए क्रमशः पांच आहुतियां दें। इसके बाद शिशु को नव वस्त्र धारण करवाकर मुंडन संस्कार को पूरा किया जाता है।

  1. मुंडन संस्कार

विशेष आहुति संपन्न होने के बाद शिशु को माता के साथ उस स्थान से बाहर भेज दिया जाता है, क्योंकि यज्ञ स्थान पर मुंडन संस्कार संपन्न नहीं किया जाता है। यज्ञ स्थल के समीप ही किसी स्थान पर शिशु को माता की  गोद में बिठाकर मुंडन संस्कार का समापन किया जाता है। नाई या पुरोहित के द्वारा शिशु के केश काटने के दौरान माता विशेष रूप से शिशु को बहलाने फुसलाने के साथ ही साथ मन ही मन गायत्री मंत्र का जाप भी करें। उपस्थित लोग ईश्वर से कामना करें कि शिशु के जन्मकालीन बालों को हटाने के साथ ही उसके पूर्व जन्म के कृत्यों से भी उसे छुटकारा मिल जाए। इस दौरान

“ॐ येन पूषा बृहस्पतेः, वयोरिन्द्रस्य चावपत।
तेन ते वपामि ब्रह्मणा, जीवतवे जीवनाय, दीर्घायुष्टवाय वर्चसे। “ (मं.ब्रा.1.6.7)

मन्त्र का जाप करें।  इसके बाद शिशु के काटे गए केशों को गोबर या आटे के गोले में बांधकर उसे जमीन में गाड़ दिया जाता है।

  1. शिखा पूजन

मुंडन संस्कार के दौरान शिशु के सिर से जन्मकालीन केशों को हटाए जाने के बाद मस्तिष्क के मध्य के हिस्से को शिखा यानि की चोटी रखने के लिए छोड़ दिया जाता है। जिस प्रकार से मुस्लिमों में सुन्नत, सिख धर्म में केश रखना आवश्यक माना जाता है, उसी प्रकार से हिन्दू धर्म में सभी हिन्दुओं का शिखा रखना बेहद अनिवार्य माना गया है। मुंडन संस्कार में  बाल काटने के बाद भी शिखा रखी जाती है और इसका संकल्प मुंडन संस्कार के दौरान ही ले लिया जाता है। शिशु के माता पिता मुंडन संस्कार के दौरान शिशु की शिखा के स्थान पर रोली और चावल द्वारा शिखा पूजन करवाते हैं। इस दौरान नीचे दिये गये मंत्र का जाप किया जाता है।

“ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व में। “

  1. स्वस्तिक लेखन

मुंडन संस्कार के बाद पुरोहित या परिवार का श्रेष्ठ व्यक्ति शिशु के मुंडित सिर पर चन्दन या रोली से स्वस्तिक का शुभ चिन्ह बनाते हैं और

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्योअरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥” (25.19)

मन्त्र का उच्चारण करते हैं। इस दौरान सभी उपस्थित जन ईश्वर से कामना करते हैं कि शिशु का जीवन प्रसन्नता, एकाग्रता और पवित्रता से परिपूर्ण रहे। इस क्रिया के बाद मुंडन संस्कार सम्पूर्ण रूप से संपन्न हो जाता है।

हम आशा करते हैं कि मुंडन संस्कार पर आधारित हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

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