दशहरा विशेष: रावण से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

सनातन धर्म के अनुयायी भगवान राम, मां सीता और रावण के बारे में यूँ तो सभी भली-भाँती परिचित होंगे। जिसमें भगवान राम से जुड़े हर छोटे-बड़े तथ्यों के बारे में हमे शुरुआत से ही बताया जाता रहा है। लेकिन रावण से जुड़ी कुछ रोचक लेकिन बेहद रहस्मयी बातें आप शायद ही जानते होंगे। आज हम आपके लिए अपने इस लेख के माध्यम से वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य के अलग-अलग भागों से संग्रहित करके रावण से जुड़े इन्ही रोचक तथ्यों को लेकर आए हैं। जिससे इस बात का ज्ञात होता है कि लंकापति रावण केवल दुराचारी ही नही था बल्कि धर्म में बहुत विश्वास भी करता था और जो बहुत बड़ा महाज्ञानी था। तो चलिए जानते हैं रावण से जुड़े कुछ तथ्य:-

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रावण से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  • रावण संहिता, हिन्दू ज्योतिषशास्त्र अनुसार न केवल एक बहुत महत्वपूर्ण बल्कि बेहद प्राचीन पुस्तक भी हैं। जिसको लेकर माना जाता है कि इसकी रचना खुद ज्ञानी रावण ने ही की थी। 
  • मान्यता अनुसार रावण उन्ही प्रजापति पुलत्स्य के पौत्र थे जो ब्रह्मा जी के दस पुत्रो में से एक थे। ऐसे में रावण को ब्रह्मा जी का पडपौत्र भी माना जाता था। हालांकि रावण ने अहंकार में आकर अपने पिताजी और दादाजी से हटकर धर्म का साथ न देते हुए अधर्म का साथ दिया था। 
  • माना जाता है कि रावण अपने ज्ञान और शक्ति से तीनों लोकों का स्वामी बन गया था जिसके चलते उसने न केवल इंद्र लोक पर बल्कि पृथ्वी लोक के एक बड़े हिस्से पर भी अपनी नकारात्मक शक्तियाँ बढ़ाने के लिए कब्ज़ा किया था। 
  • रामायण में इस बात का उल्लेख भी आपको मिल जाएगा कि रावण में भगवान राम से युद्ध करने से पहले उन्ही के लिए एक महायज्ञ भी किया था। माना जाता है कि भगवान राम चूँकि विष्णु जी के अवतार थे इसलिए रावण ने भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए उसके नाम का यज्ञ करने से पहले भगवान राम के नाम का यज्ञ किया था।
  • रामायण अनुसार राम जी ने रावण से बातचीत के दौरान एक बार उसे महा-ब्राहमण कहकर भी पुकारा था क्योंकि राम जी भी उसके इस ज्ञान से परिचित थे कि रावण 64 कलाओं में निपुण है। अपने उसी ज्ञान के कारण उस वक़्त रावण को असुरो में सबसे बुद्धिमान व्यक्ति बताया जाता था। 
  • रावण अधर्मी तो था लेकिन साथ ही भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त था। इस बात का उदाहरण उस वाक्य के दौरान भी मिलता है जब राम जी ने समुद्र पार करने से एक रात पहले भगवान शिव की आराधना के लिए यज्ञ करने का निश्चय किया। इस यज्ञ के लिए उन्हें एक विद्वान पंडित की आवश्यकता थी, जिसके लिए उन्होंने रावण को यज्ञ के लिए न्यौता भेजा क्योंकि रावण स्वयं एक बड़ा विद्वान पंडित था। न्यौता पाकर रावण अपने आराध्य महादेव के यज्ञ के लिए मना नही कर सकता और रामेश्वरम पहुँच उसने यज्ञ पूरा किया। इस समय बताया जाता है कि यज्ञ संपन्न होने के बाद राम जी ने पंडित रावण को नमन करते हुए उसी को हराने का आशीर्वाद भी माँगा जिसके जवाब में रावण ने उनको “तथास्तु” कहते हुए उनकी विजय के लिए आशीर्वाद दिया था। 
  • रावण को विज्ञान में भी महारथ हासिल थी। इसका उदाहरण पुष्पक विमान था। जिसका निर्माण स्वयं रावण ने किया था। 
  • रावण को इतना प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी माना जाता था कि उसे अपनी स्वयं की कुंडली का अध्ययन कर ये ज्ञात हो गया था कि उसकी मौत भगवान विष्णु के अवतार के हाथों ही होगी। साथ ही उसे ये भी पता था कि विष्णु जी के हाथों मरने से ही उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी, जिससे उसके असुर रूप का विनाश होगा। 

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  • रावण बहुत बड़ा विद्वान व एक अच्छा शासक था। जिसके कारण ही उनका नाम लंकापति पड़ा था। उसके राज्य का हर घर सोने से बना हुआ था, तभ लंका को सोने की लंका कहा जाता था। ये लंका रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से छीनी थी।
  • रामायण अनुसार माना जाता है कि भगवान राम से पराजित होने के बाद जब रावण मृत्यु शय्या पर लेटा हुआ था तब राम जी ने अपने अनुज लक्ष्मण को उसके पास बैठने को कहा था ताकि रावण के मरने से पहले लक्ष्मण जी उससे उनका ज्ञान और राजपाट चलाने जैसे गुण सीखा सके। 
  • रावण में कला का ज्ञान भी कूट-कूट कर भरा हुआ था। उन्हें संगीत का बहुत शौक था। माना जाता है कि रावण वीणा बजाने में इतना माहिर था कि जब भी वो वीणा बजाता उससे निकलने वाली मधुर ध्वनि और उसका संगीत सुनने के लिए स्वर्ग से देवता पृथ्वी पर आ जाते थे। इतना ही नहीं भारत के शास्त्रीय वाद्य यंत्र रूद्र वीणा की खोज भी किसी और ने नहीं बल्कि खुद रावण ने ही की थी। वो भगवान शिव की आराधना रात-दिन वीणा बजाकर ही करता था। 
  • ज्ञानी और विद्वान के साथ-साथ रावण बेहद शक्तिशाली भी था। माना जाता है कि अपने पुत्र मेघनाथ के जन्म के समय उसे अमर बनाने के लिए रावण ने सभी नवग्रहों को अपने अधिकार में लेते हुए ग्रहों को 11वे स्थान पर रहने को कहा था। परंतु कर्मफल दाता शनिदेव उसकी बात मानने से इंकार करते हुए मेघनाथ की जन्म कुंडली में 12वे स्थान पर विराजमान हो गए थे। जिसके चलते रावण उनसे इस कदर नाराज़ हुआ कि उसने शनिदेव पर आक्रमण तक कर दिया और उन्हें कुछ समय के लिए बंदी भी बना लिया था। 

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  • पौराणिक मान्यताओं अनुसार रावण को ‘रावण’ नाम स्वयं भगवान शिव ने दिया था। दरअसल, रावण चाहता था कि शिव जी कैलाश पर्वत को छोड़कर उसके साथ लंका आ जाएँ। लेकिन जब उसकी इस बात पर शिव जी राजी नही हुए तो उसने कैलाश पर्वत को ही उठाकर लंका ले जाने का प्रयास किया। जिस दौरान महादेव ने उसे रोकने के लिए अपना एक पैर कैलाश पर्वत पर रख दिया। इससे रावण की अंगुली पर्वत के नीचे दब गयी और रावण दर्द से चिल्लाने लगा। रावण ने शिव जी को मनाने के लिए दर्द में ही शिव तांडव किया जिसे देख भगवान ने उसका नाम रावण रखा, जिसका अर्थ होता  है ‘तेज आवाज में दहाड़ने वाला’।
  • रावण को दशानन भी कहा जाता था जिसके मतलब होता है दस सिर वाला। रावण के 10 सिरों को लेकर दो प्रकार के मत सुनने को मिलते है। जिसमें से एक मत के अनुसार रावण के दस सिर नही थे बल्कि वो केवल एक 9 मोतियों की माला से बना एक भ्रम था जिसको उसकी माता जी ने उसके जन्म के वक़्त उसका सिर उन 9 मोतियों में देखकर उसे दस सिर वाला बताया था। जबकि एक अन्य मत के अनुसार ये माना जाता है कि रावण भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त था। उसने एक बार महादेव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप करते हुए खुद अपने सिर को धड़ से अलग कर महादेव को चढ़ा दिया था। जिसके बाद भगवान शिव ने उससे खुश होकर उसके द्वारा सिर के किये गए हर टुकड़े से उसका एक नया सिर बनाया, जिसके बाद ही उसके दस सिर हो पाएँ थे।  

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  • कहा जाता है कि रावण की पत्नी मन्दोदरी बेहद धर्मी महिला थी और उसके चलते ही भगवान राम को विजय प्राप्त हुई थी। दरअसल, जब रावण राम जी से युद्ध के दौरान हार के निकट था तो उसने एक महा यज्ञ करने का आवाहन किया। जिसके सफल होने पर वो युद्ध जीत जाता। लेकिन इसके लिए उसे यज्ञ करते हुए अपने स्थान पर बैठना ज़रुरी था। इसके लिए राम जी ने बाली पुत्र अंगद को रावण के उस यज्ञ में बाधा डालने के लिए भेजा। परन्तु कई प्रयासों के बाद भी अंगद यज्ञ में बाधा नहीं डाल सका। ऐसे में वो रावण की पत्नी मन्दोदरी ही थी जिसके कटु शब्दों ने रावण को यज्ञ के दौरान अपना स्थान छोड़ने के लिए मजबूर किया था। 
  • तथ्यों के अनुसार रावण और कुंभकर्ण पहले जन्म में भगवान विष्णु के द्वार-पाल जय और विजय थे। जो एक ऋषि से श्राप मिलने के कारण राक्षस कुल में जन्में थे और उन्हें बाद में अपने ही आराध्य के अवतार से लड़ना पड़ा था। जिसके बाद उन्हें अपने राक्षस रूप से मोक्ष की प्राप्ति हो सकी थी। 
  • रावण को एक स्त्री से श्राप मिला हुआ था कि वो जब भी किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श करेगा तो उसका अंत तो जाएगा, जिसके कारण ही रावण ने सीता माता को बंदी तो बनाया लेकिन उन्हें कभी नही छुआ था।
  • आपको ये बात सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती है लेकिन जैन धर्म की रामायण में रावण को माता सीता का पिता बताया गया है। 

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  • कई सबूत दर्शाते हैं कि लाल किताब का असली लेखक रावण ही था। कहा जाता है कि अहंकार में रावण ने अपनी शक्तियाँ खो दी थी। साथ ही उसने लाल किताब का प्रभाव भी खो दिया था। उसके द्वारा लिखी लाल किताब ही अरब में पाई गई थी। जिसका अनुवाद बाद में उर्दू और पारसी भाषा में किया गया। 
  • माना जाता है कि रावण बाली से भी एक बार पराजित हो चूका था, जिन्हें  सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त था। 

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आशा है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

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